जयपुर। राज्य उपभोक्ता आयोग राजस्थान ने गुरुवार को एक ऐतिहासिक फैसले में इलाज में लापरवाही बरतने के मामले में जयपुर के नामी संतोकबा दुर्लभजी अस्पताल और उसकी चिकित्सक डॉ.प्रीति शर्मा पर पचास लाख रुपया का हर्जाना लगाया है। आयोग ने आदेश में कहा है कि एक महीने के भीतर यह हर्जाना राशि दुर्गापुरा जयपुर निवासी विकास आर्य को दी जाए। आयोग ने परिवाद तारीख से 9 फीसदी ब्याज समेत यह हर्जाना देने को कहा है। परिवादी विकास आर्य पेशे से पत्रकार हैं। दुर्लभजी अस्पताल के चिकित्सक डॉ.प्रीति शर्मा की लापरवाही से उनके नवजात बेटे वासु को मस्तिष्क का सेरीबल पाल्सी रोग हो गया था। ऑपरेशन के बाद चिकित्सक ने बच्चे की केयर ठीक से नहीं की। नवजात के गले से गर्भनाल नहीं हटाने से मस्तिष्क को ऑक्सीजन पहुंच नहीं पाई, जिसके चलते नवजात सेरीबल पॉल्सी जैसी गंभीर बीमारी की चपेट में आ गया। चिकित्सक और अस्पताल प्रबंधन ने अपनी गलती तक नहीं मानी। चिकित्सक की इस लापरवाही का खामियाजा वासु को तो भुगतना पड़ रहा है, वहीं पिता विकास आर्य और मां श्वेता आर्य पर दोहरी जिम्मेदारियां आ गई। सेरीबल पॉल्सी की वजह से बच्चा का विकास रुक गया। दिमागी और शारीरिक कमजोरी के चलते वासु की पूरी जिम्मेदारी माता-पिता पर आ गई। विकास आर्य व उनकी पत्नी श्वेता ने बच्चे का एक स्वस्थ बच्चे की तरह लालन-पोषण किया। चिकित्सक और अस्पताल प्रबंधन की गलती से जो पीड़ा उन्हें और उनके बच्चे को भुगतनी पड़ रही है, वो किसी को नहीं भुगतने पड़े, इसके लिए कानूनी लड़ाई लडऩे का फैसला किया। बकौल विकास आर्य (रेल परिक्रमा, संपादक), चिकित्सक और अस्पताल प्रबंधन के खिलाफ कानूनी लड़ाई लडऩे का फैसला इसलिए भी लेने पड़ा क्योंकि चिकित्सकों की लापरवाही से मरीजों की मौत होने और गंभीर बीमारी की चपेट में आने के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। चिकित्सक व अस्पताल प्रबंधन खुद की गलती मानते नहीं है, बल्कि मरीज व परिजनों को ही दोषी ठहराते हैं। कम ही लोग इनके खिलाफ कोर्ट में जाने की हिम्मत कर पाते हैं। समाज में दोषी लोगों पर कानूनी लड़ाई का संदेश देने और बेटे वासु के साथ जो हुआ, उसका अहसास अस्पताल प्रबंधन व चिकित्सक को कराने के लिए सोलह साल पहले राज्य उपभोक्ता आयोग राजस्थान में परिवाद दाखिल किया। हालांकि इस लड़ाई को लडऩे में सोलह साल लग गए। कई तरह की कानूनी अड़चने और दबाव भी झेलने पड़े, लेकिन हिम्मत नहीं हारी। बेटे बासु की अच्छी परवरिश और देखभाल के साथ कानूनी लड़़ाई भी पूरी शिद्दत के साथ लड़ी भी। हालांकि जंग जीतने में सोलह साल लग गए। आयोग के फैसले से उन मरीजों और पीडितो को भी सबल मिलेगा, जो चिकित्सकों की लापरवाही से गंभीर बीमारी की चपेट में आ गए या अपने परिजनों को खो चुके हैं। उन अस्पताल प्रबंधन और चिकित्सकों को भी एक सबक है, जो पैसे कमाने के चक्कर में अस्पतालों में भर्ती मरीजों के इलाज में कोताही बरतते हैं। विकास आर्य कानूनी जंग तो जीत गए, लेकिन चिकित्सक की लापरवाही से सेरेबली पॉल्सी से पीडित बेटे वासु की जिम्मेदारी की जंग उन्हें ताउम्र उठानी पड़ेगी। वैसे वो और उनकी पत्नी श्वेता आर्य बेटे वासु की बेहतर जिंदगी की जिम्मेदारी बखूबी निभा भी रहे हैं। वासु की उम्र बढ़ तो रही है, लेकिन दिमाग आज भी बच्चों जैसा है तो शरीर साथ दे नहीं पाता है। ऐसे में माता-पिता बेटे वासु की लाठी बनकर बखूबी सेवा ही नहीं कर रहे हैं, बल्कि स्पेशल स्कूल उमंग में वासु को लेकर जाते हैं, ताकि उसके जीवन में भी उमंगें हिलोरें मारती रहे।

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