नई दिल्ली। तीन तलाक को लेकर जारी ऐतिहासिक सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को स्पष्ट कर दिया कि बहुविवाह व निकाह हलाला की भी समीक्षा की जाएगी। लेकिन पहले सिर्फ तीन तलाक पर ही सुनवाई करेंगे। बहुविवाह व निकाह हलाला के मामले में अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कोर्ट से मांग की थी। कोर्ट ने कहा कि देश में मौलिक अधिकार व अल्पसंख्यकों के अधिकारों के हम संरक्षक है। जस्टिस ललित ने अटॉर्नी जनरल से पूछा कि अगर हम तीन तलाक को खत्म करते हैं तो आगे क्या रास्ता होगा। इस पर रोहतगी ने कहा कि सभी प्रकार के तलाक बुरे ही हैं। जरुरत पड़ती है तो वह एक कानून भी लाएंगे। देश में मुस्लिम महिलाओं को समान अधिकार नहीं मिल पाए हैं। जबकि दूसरे देशों में स्थिति भिन्न है। वहां भारत के मुकाबले महिलाओं को ज्यादा अधिकार प्राप्त है। तीन तलाक मुस्लिम महिलाओं को उनके अधिकारों से वंचित ही रखता है। विश्व में सुडान, ईरान, सऊदी अरब, इराक, लीबिया सरीखे देशों में तीन तलाक सरीखे कानून को पूरी तरह खत्म किया जा चुका है। ऐसे में हम ऐसा क्यों नहीं कर सकते? तीन तलाक पीडि़ताओं की पैरवी करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता राम जेठमलानी ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 14 और 15 देश में सभी नागरिकों को बराबरी का हक देता है। इनके अनुसार तीन तलाक असंवैधानिक है। याचिकाकर्ता शायरा बाने के वकील ने कहा कि तीन तलाक इस्लाम का अभिन्न अंग नहीं है। अनेक मुस्लिम देश इसे खत्म कर चुके हैं। यहां तलाक के लिए न्यायिक आदेश अनिवार्य है। मुस्लिम महिला आंदोलन से जुड़ी जकिया सोमन के वकील आनंद ग्रोवर ने कहा कि दिल्ली व गुवाहाटी हाईकोर्ट ने अपने फैसलों में इसे गैर इस्लामी बताया। तीन तलाक का प्रावधान अंग्रेजों का बनाया कानून है, इस्लाम धर्म में तीन तलाक गुनाह ही है।

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