-संसद व राष्टÓपति से मंजूर एसटी-एससी एक्ट को दिल्ली के वकीलों ने सुप्रीम कोट में दी चुनौती
जयपुर। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद एससी-एसटी एक्ट में लाए गए नरेन्द्र मोदी सरकार के संशोधित कानून को चुनौती दे दी गई है। संशोधित कानून में पुराने प्रावधान जोड़ते हुए इसे संसद के दोनों सदनों से पारित करवाया और फिर राष्टÓपति से मंजूरी मिलने के साथ इसे लागू कर दिया है। इस संशोधित एक्ट को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करके चुनौती दी गई है। यह याचिका एडवोकेट प्रिया शर्मा और पृथ्वीराज चौहान ने दायर की है।
याचिका में संशोधित कानून को असंवैधानिक बताते हुए बताया है कि इस संशोधित कानून से फिर बेगुनाहों को फंसाया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने एक्ट के दुरुपयोग को देखते हुए आदेश दिए थे कि बिना जांच किसी की गिरफ्तारी नहीं होगी और उसे अग्रिम जमानत का लाभ मिल सकेगा। इस आदेश में बदलाव करते हुए केन्द्र सरकार ने संशोधित एक्ट संसद में पारित करवाकर फिर से लागू कर दिया। याचिका में कहा कि इस याचिका तक लंबित रहने तक कोर्ट नए कानून के अमल पर रोक लगाए।
केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार ने इस संशोधित कानून के जरिए एससी-एसटी एक्ट में धारा १८ए जोड़ी है। इस धारा के मुताबिक, इस कानून का उल्लंघन करने वाले के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच की जरुरत नहीं है और न ही जांच अधिकारी को गिरफ्तारी करने से पहले किसी से इजाजत लेने की जरुरत है। संशोधित कानून में ये भी कहा गया है कि इस कानून के तहत अपराध करने वाले आरोपी अग्रिम जमानत के प्रावधान का लाभ नहीं मिलेगा। याचिका में इन सभी प्रावधानों को असंवैधानिक बताते हुए इस पर रोक लगाने की गुहार की गई है।
सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी एक्ट के दुरुपयोग के एक मामले में ऐतिहासिक आदेश दिया था कि बिना उच्च अधिकारी की जांच के बिना इस एक्ट में किसी की गिरफ्तारी नहीं हो सकेगी। आरोपी अग्रिम जमानत का लाभ प्राप्त कर सकेगा। इस आदेश के बाद दलित संगठनों के विरोध प्रदर्शन और नाराजगी को देखते हुए केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार ने इस एक्ट में फिर से संशोधन करते हुए पुराने प्रावधान जोड़ दिए। साथ ही धारा १८ए नई जोड़ी गई है।
मोदी सरकार के इस संशोधिक एक्ट को लेकर सवर्ण समाज और ओबीसी समाज पुरजोर विरोध कर रहा है। इसे लेकर देशव्यापी बहस चल रही है। भाजपा और मोदी सरकार की खिलाफत खुलकर सामने आ रही है। जिस तरह से दलित संगठनों ने विरोध प्रदर्शन किया, उसी तरह सवर्ण और ओबीसी समाज भी विरोध में उतर आया है।