Reservation to the rulers of Bharatpur-Dhaulpur, why not Rajput society

जयपुर। राजस्थान में गुर्जर आरक्षण के बाद अब राजपूत समाज की आरक्षण हुंकार रैलियां सरकार को परेशानी में डाल सकती है। राजपूतों की मांग के बाद ब्राह्मण, वैश्य और कायस्थ समाज भी आरक्षण आंदोलन में कूद सकता है। राजपूत आरक्षण मंच राजस्थान ने ओबीसी आरक्षण के लिए आर पार की लड़ाई का ऐलान कर दिया है। जयपुर में हुई इस बैठक में आरक्षण व्यवस्था पर भी नेता खूब बोले। बैठक में चर्चा हुई कि जब भरतपुर और धौलपुर के जाट समाज को ओबीसी में आरक्षण मिल सकता है तो राजपूत समाज को आरक्षण से वंचित क्यों किया जा रहा है। सवाल उठाए गए कि धौलपुर व भरतपुर के जाट शासक व जाट समाज को राज्य सरकार आरक्षण दे सकती है तो हमें भी आरक्षण दिया जाए। कुछेक राजपूत परिवारों की रियासतों और राजस्थान में राजपूत शासन के आधार पर पूरे राजपूत समाज को यह नहीं माना जा सकता है कि वे भी सम्पन्न थे।

आजादी से पहले भी अधिकांश राजपूत समाज खेती बाडी पर ही आश्रित था और आज भी समाज खेती बाड़ी कर रहा है। आरक्षण व्यवस्था और सरकारी सुविधाएं नहीं होने से राजपूत समाज के युवाओं को रोजगार नहीं मिल रहा है। सक्षम जातियां भी आरक्षण का लाभ ले रही है, जबकि आर्थिक रुप से पिछड़े राजपूत व दूसरी सवर्ण जातियां इससे वंचित है। राजपूत समाज आरक्षण के लिए अब सड़कों पर उतरेगा। उधर, राजपूत समाज की आरक्षण मांग की तैयारियों से सरकार और प्रशासन की नींद उड़ी हुई है। राजपूत समाज की इस हुंकार के बाद ब्राह्मण, वैश्य व दूसरी जातियां भी लामबंद होकर आंदोलन की राह पर चल सकती है। विधानसभा चुनाव से पहले सवर्ण जातियों के आरक्षण से प्रदेश की राजनीति गरमा सकती है। गौरतलब है कि भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में पिछड़ी सवर्ण जातियों को चौदह फीसदी आरक्षण समेत कई तरह की सुविधाएं देने के वादे किए थे, लेकिन इन घोषणाओं पर अमल नहीं होने से सवर्ण जातियों में गुस्सा है।

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