• संजय कुमार

जयपुर।  जयपुर के पब्लिक ट्रांसपोर्र्ट सिस्टम को सुधारने के लिए केन्द्र के सहयोग से बस रैपिड ट्रांसपोर्ट सिस्टम 10 साल पहले शुरु किया गया था। करीब 500 करोड़ रूपए की इस परियोजना में लोगों को सुविधाजनक यात्रा कराने के लिए 139 किलोमीटर में कॉरिडोर बनाया जाना था। इनमें 380 लो-फ्लोर बसों को चलाया जाना था पर सरकारी तंत्र और राजनीति ने एक अच्छे बड़े प्रोजेक्ट को फेल कर दिया। इससे पहले नई दिल्ली में यह परियोजना तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के कार्यकाल के समय यह योजना फेल हो चुकी थी न ढंग से बसें चल पाई और न ही कॉरिडोर पूरी तरह बन पाया। सड़कों पर यातायात को कम करने के लिए इसे शुरु किया था पर हुआ इसका उल्टा। सड़कों पर लगातार वाहनों की भीड़ बढ़ गई और दुर्घटनाओं में भी कमी नहीं आई। जयपुर में भी लगभग यही स्थिति है। सीकर रोड़ पर 7 किलोमीटर में बना दो लेन का कॉरिडोर खाली ही पड़ा रहता है। कई दिक्कते होने के कारण टोंक रोड़ गर्वनमेंट हॉस्टल पर यह कॉरिडोर बन ही नहीं पाया। कॉरिडोर के नाम पर अजमेर रोड़ पर एलिवेटेड़ रोड़ और दुर्गापुरा पर फ्लाईओवर ही बन पाया है।

नई दिल्ली में आप सरकार ने आते ही इस कॉरिडोर को तोड़ कर इसे आम यातायात के लिए खोल दिया है। जयपुर में भी इन कॉरिडोर को हटाकर सामान्य यातायात के लिए खोल दिया जाए तो भीड़भाड़ वाली सड़कों पर काफी राहत मिल सकती है। 500 करोड़ रुपए फूंकने के बाद  यह योजना फेल साबित हुई है। शुरू से ही विवादित रही इस योजना में कई खामियां रही। इसके बावजूद जेडीए ने इसे परियोजना को आधे अधूरे ढंग से पूरा किया। 139 किमी में बनने वाला कॉरिडोर सिर्फ हरमाडा से पानीपेच और अजमेर रोड पर बी-2 बाईपास से मानसरोवर इस्कॉन रोड ही बन पाया।

ऐसे हुआ फेल

500 करोड़ रुपए में जेडीए अजमेर रोड पर कुछ मीटर की एलीवेटेड रोड और दुर्गापुरा में फ्लाईओवर बना पाया। बस कॉरिडोर बनाने के नाम पर हरमाडा से पानीपेच तक 7 किमी का फ्लाईओवर और अजमेर रोड बी-2 बाईपास से न्यू सांगानेर रोड तक कॉरिडोर ही बना पाया। इससे जयपुर की ट्रेफिक समस्या सुधरने की बजाय बिगड़ती चली गई। टोंक रोड पर सड़क की चौड़ाई कम होने के कारण लो फ्लोर बसें मिक्स ट्रेफिक में चलाई जाने लगी। इस योजना के फेल होने का सबसे बड़ा कारण जयपुर में बीआरटीएस के लिए सड़कें छोटी होना हैं। बीआरटीएस के लिए सड़क की चौड़ाई कम से कम 45 मीटर होना जरूरी हैं। इतनी चौड़ी सड़क  बाहरी इलाकों में है लेकिन मुख्य मार्गो पर सड़कों की चौड़ाई इतनी नहीं है। ऐसे में बीआरटीएस उपयोगी नहीं हैं। राज्य सरकार खुद इस प्रोजेक्ट में खामी के कारण इसे बंद कर चुकी हैं।  बीआरटीएस का उद्देश्य यह था कि सड़कों पर वाहनों की संख्या में कमी लाना और सार्वजनिक यातायात में यात्री भार बढ़ाना हैं। जेडीए की ओर से बनाए गए काम्प्रेहेसिव मोबिलिटी प्लान (सीएमपी) में बताया गया है कि सार्वजनिक यातायात में 13 प्रतिशत कमी आई हैं जबकि वाहनों की संख्या बढ़ कर १५ लाख हो गई है। इनमें अकेले 10 लाख से अधिक दुपहिया वाहन हैं।

खटारा होने लगी बसें :

बीआरटीएस प्रोजेक्ट के तहत चलने वाली बसों को निर्धारित दूरी तक ही चलाया जा सकता हैं। रोडवेज के अधिकारियों के मुताबिक एक बस की अवधि 8 लाख किमी होती हैं। जैसे जैसे बसें पुरानी होती जाती है। उनकी कार्य चालन की अवधि कम होती होती जाती हैं। लगभग 8-9 साल में ये बसें कंडम हो जाती हैं। लो फ्लोर बसों का भी लगभग यही हाल है। इन बसों का शुरू से ही रखरखाव नहीं हुआ जिससे इन बसों की हालत खराब होने लगी। रास्ते में बसें खराब होने के कारण यात्रियों को दिक्कत होने लगी। घाटा बढऩे लगा। इसे देखते हुए लो फ्लोर बस चलाने के लिए अनुबंध करने की योजना तैयार की गई। अहमदाबाद की एक फर्म ने 15 रुपए प्रति किमी के हिसाब से रेट मांगी। अधिक दरें होने के कारण बसों को निजी क्षेत्र को संचालन के लिए नहीं दिया गया।

यात्रा में अधिक समय

सड़क पर वाहनों की संख्या अधिक होने के कारण इन बसों में यात्री गंतव्य तक पहुंचने में ज्यादा समय लेंगे। बीआरटीएस का उद्देश्य यह है कि सड़कों पर दोपहिया वाहनों में चलने वाले यात्री बसों में यात्रा करें। सड़कों पर वाहनों की भीड़भाड़ के कारण इनकी गति कम होगी जिससे यात्रियों को समय अधिक लगेगा।

तैयार कोरिडोर छह माह से बंद:

जेडीए ने अजमेर रोड बी टू बाईपास से न्यू सांगानेर रोड मानसरोवर तक छह महीने से कॉरिडोर बना रखा है लेकिन छह महीने से इसे चालू नहीं कर पाए। इसमें बसें नहीं चलाई जा रही। बसों की कमी के कारण इसे खोला नहीं गया है फिलहाल बीआरटीएस की बसों को उन मार्गो पर चलाया जा रहा है जिन पर यात्री भार अधिक है। दूसरी खेप में आने वाली बसों को इस कोरिडोर में उतारा जाएगा। अजमेर रोड पर सिर्फ क्वींस रोड तक एलीवेटेड रोड बन पाई। हरमाडा से सांगानेर तक बनने वाला कॉरिडोर सिर्फ पानीपेच तक ही बन पाया। टोंक रोड पर सड़कों की चौड़ाई कम होने के कारण इसे बनाया नहीं जा सका।

सिर्फ अहमदाबाद में सफल

बीआरटीएस  परियोजना अहमदाबाद, दिल्ली, इंदौर, भोपाल, जयपुर, अजमेर, जोधपुर, अमृतसर, भुवनेश्वर, हुबली, कोलकाता, लुधियाना, पुणे और मुंबई समेत कई शहर थे। इनमें से अधिकतर में ये मॉडल फेल हो गया। दिल्ली और जयपुर में इसके लिए कॉरिडोर बनाने में काफी दिक्कतें आई। बाद में इसे बिना कॉरिडोर चलाना तय किया गया। यह मॉडल सिर्फ अहमदाबाद में सफल रहा। वहां पहले फेज में 30 किमी कॉरिडोर बनाया गया। दूसरे फेज में इसे बढ़ा कर 90 किमी किया गया। इसके सफल होने का कारण पहले 30 किमी में कॉरिड़ोर बनाया गया। इसके रास्ते में आने वाली अतिक्रमण या सड़क चौड़ी करने जैसी बाधाओं को हटाया गया। इसके बाद कॉरिडोर बढ़ा कर 90 किमी किया गया। अहमदाबाद का मॉडल देश में सबसे सफल मॉडल साबित हुआ। इसे कई पुरस्कार भी मिले हैं।

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