-कौशल मूंदड़ा-

उदयपुर।
लम्बे समय से राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच दूरियों की सुर्खियों पर उपचुनाव के बहाने ही सही, लेकिन एक बार तो विराम लग गया है। माना जाए तो दोनों ही अपनी-अपनी अदावत को एक तरफ रखकर कांग्रेस पार्टी और उसके कार्यकर्ताओं के लिए ऐसा संकेत दे गए जो पार्टी को मजबूत करने की दिशा में नई ऊर्जा प्रदान करने वाला है और आने वाले समय में यदि दोनों के बीच की दूरियां वे आपसी चर्चा से सुलझा लेते हैं तो यह उपचुनाव राजस्थान कांग्रेस के राजनीतिक इतिहास में नई इबारत लिखेगा। हालांकि, राजनीतिक गलियारों में यह भी चर्चा है कि कहीं यह सिर्फ चुनावी समीकरण न हो।
वल्लभनगर के दिवंगत विधायक गजेन्द्र सिंह शक्तावत की बात करें तो पिछले समय में वे सचिन के पक्षधर बताए जाने लगे थे, लेकिन मुख्यमंत्री गहलोत के भी वे कम चहेते नहीं थे। गहलोत सरकार के पिछले कार्यकाल में भी सरकार में ऊंचे ओहदे पर थे। गहलोत का उन पर स्नेह काफी पहले से माना जाता है। ऐसे में उनके जाने के बाद वल्लभनगर उपचुनाव गहलोत और पायलट दोनों के लिए महत्वपूर्ण हैं। यह कहा जा सकता है कि गहलोत के लिए शक्तावत का परिवार एक पारिवारिक संबंध की स्थिति रखता है, तो पायलट के लिए गजेन्द्र शक्तावत का उनके पक्ष में समर्थन इस परिवार से उन्हें जोड़ता है। दोनों अपनी-अपनी जिम्मेदारी निभाने यहां आते ही, यह लगभग सभी में चर्चा थी।
लेकिन, जब दोनों हेलीकॉप्टर में साथ आए, जब सचिन ने ड्राइवर की सीट संभाली और गहलोत उनके साथ आगे वाली सीट पर ही बैठकर सभा स्थल पहुंचे, तब ये दृश्य सभी की हैरानी का कारण बने। इन दृश्यों ने राजनीतिक विश्लेषकों को फिर यह कहने को मजबूर कर दिया कि राजनीति में कभी भी कुछ भी स्थायी नहीं होता। रात को क्या होता है और सुबह आंख खुलने पर क्या हो जाता है।

गहलोत-पायलट के साथ-साथ आने को लेकर सुर्खियां भी बनी और जब वे साथ आए तो वल्लभनगर की कांग्रेस में उपचुनाव से पहले उठ रहे बगावत के सुर कहां तक टिके रहते, उन्हें भी क्षीण होना ही था। दिवंगत विधायक गजेन्द्र सिंह शक्तावत के भाई देवेन्द्र सिंह शक्तावत ने कुछ समय पहले ताल ठोकी थी जिसका साफ संकेत था कि उन्हें टिकट नहीं मिला तो वे चुप नहीं रहेंगे। हालांकि, उनकी नाराजगी पर स्व. गजेन्द्र सिंह की पत्नी प्रीति शक्तावत ने सहज-सधा हुआ बयान दिया था कि देवेन्द्र बड़े भाई हैं, वे इस पर कुछ नहीं कहेंगी, उनके (प्रीति) के लिए आलाकमान का निर्णय ही महत्वपूर्ण होगा। आलाकमान जो भी निर्णय करेंगे, वल्लभनगर के लिए सोच-समझ कर करेंगे। कुल मिलाकर इसके बाद बयानों के ज्यादा तीर नहीं चले थे।
अब जबकि, गहलोत और पायलट प्रीति शक्तावत के लिए साथ-साथ मैदान में नजर आए, तब सिर्फ वल्लभनगर ही नहीं, पूरे राजस्थान के लिए ही यही संकेत गया कि आपसी मुद्दों का मसला अपनी जगह है और पार्टी की प्रतिष्ठा अपनी जगह। और, राजस्थान के दोनों ही नेताओं का भी यही संकेत देने का उद्देश्य रहा होगा। इसके अगले ही दिन जिले के प्रभारी मंत्री प्रतापसिंह खाचरियावास ने भी मीडिया में यह बयान दिया कि किसी भी तरह की आशंका नहीं है, वल्लभनगर में कांग्रेस कार्यकर्ता एक हैं और जीत ही उनका लक्ष्य है। उन्होंने लगे हाथ भाजपा पर भी पलटवार कर दिया कि बागी तो वहां हैं, वहां कार्यकर्ता की कदर नहीं है।
कहीं न कहीं खाचरियावास के बयान ने भाजपा कार्यकर्ताओं को भी कचोटा ही होगा। भाजपा के लिए तो वल्लभनगर और धरियावद दोनों ही सीटों पर बागियों ने ताल ठोक रखी है। वल्लभनगर में उदयलाल डांगी ने प्रत्याशियों की घोषणा के साथ ही उनका नाम नहीं आने पर निर्दलीय का पर्चा भर दिया। अगले ही दिन वे हनुमान बेनिवाल की आरएलपी के पाले में चले गए। उनकी इस बगावत से उन्हें कितना फायदा होगा यह तो वक्त बताएगा, लेकिन बेनिवाल की आरएलपी को इस क्षेत्र में पांव जमाने का अच्छा अवसर मिल गया है, बैठे-बिठाए ऐसा केंडीडेट मिला जो पूर्व में भाजपा के टिकट पर लड़ चुका है। डांगी के बागी होने से भाजपा को अपने वोट बंटने की आशंका तो है ही, डांगी के आरएलपी से लड़ने के ऐलान के बाद पर्चा उठाने की संभावनाएं भी क्षीण हो गई हैं।

यही स्थिति धरियावद में भाजपा के लिए बनी है जहां दिवंगत विधायक गौतम मीणा के पुत्र कन्हैयालाल जो टिकट के प्रबल दावेदार माने जा रहे थे, उनके बजाय खेत सिंह मीणा को टिकट दिया। भाजपा केलूपोश की झोपड़ी से उम्मीदवार ढूं़ढ़ कर लाने का दावा कर रही है, वल्लभनगर और धरियावद में नए चेहरों को सामने लाने के नए प्रयोग की भी बातें हो रही हैं, लेकिन स्थानीय स्तर पर बगावत के नुकसान को लेकर हर कोई आशंकित है। यदि कन्हैया को मनाने में भाजपा नाकाम रहती है तब यहां मुकाबला त्रिकोणीय होने की संभावना है। धरियावद में कांग्रेस ने पूर्व विधायक नगराज मीणा में पुनः विश्वास जताया है।
वल्लभनगर सीट की बात करें तो वहां कांग्रेस में बागी भले ही नहीं हैं, लेकिन वहां दोनों ही प्रमुख दलों कांग्रेस-भाजपा को रणधीरसिंह भीण्डर की जनता सेना लम्बे समय से चुनौती देती आ रही है। इस बार जनता सेना से रणधीरसिंह और उनकी पत्नी दीपेन्द्र कुंवर दोनों ने पर्चा भरा है। अब दोनों में से पर्चा कौन उठाता है, यह देखने वाली बात है। कयास यह भी हैं कि रणधीर सिंह पर्चा उठा सकते हैं ताकि कांग्रेस की महिला उम्मीदवार से सामने महिला उम्मीदवार का विकल्प मतदाताओं को उपलब्ध हो। भाजपा ने यहां हिम्मतसिंह झाला को उम्मीदवार बनाया है जिनकी कोई विशेष राजनीतिक पृष्ठभूमि नहीं बताई जाती, अलबत्ता वे समाजसेवी के रूप में क्षेत्र में अच्छी पैठ रखते हैं।

-बागी कन्हैयालाल माने, प्रदेश मंत्री पद दिया।

धरियावद विधानसभा क्षेत्र में बीजेपी से नाराज हो कर निर्दलीय पर्चा भरने वाले कन्हैयालाल को बीजेपी आला कमान ने मना लिया है। बीजेपी के वरिष्ठ नेता राजेन्द्र सिंह राठौड़ ने कन्हैयालाल से बात की, जिसके बाद कन्हैयालाल मान गए हैं। कन्हैयालाल को प्रदेश मंत्री बनाया है। चुनावी समर से हटने के बाद धरियावद में अब बीजेपी व कांग्रेस में सीधी टक्कर होगी।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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