जयपुर। आठ दिवसीय जयरंगम थिएटर फैस्टिवल के दूसरे दिन जवाहर कला केंद्र और महाराणा प्रताप आॅडिटोरियम में तीन नाटकों के चार शो आयोजित किए गए। सभी शो के प्रति दर्षकों का भारी उत्साह देखा गया। पहला शो दोपहर 12 बजे जवाहर कला केंद्र के कृष्णायन सभागार में सराताज नारायण माथुर के निर्देषन में नाटक खामोष अदालत जारी है का हुआ। दूसरा शो दूसरा शो शाम 4 बजे केंद्र के रंगायन सभागार में मनीष जोषी बिस्मिल के निर्देषन में नाटक पतलून का हुआ। तीसरा और चौथा शो 4 बजे और 7 बजे महाराणा प्रताप सभागार में सौरभ शुक्ला के निर्देषन में नाटक बर्फ का हुआ। तीनों ही नाटक कथानक के अपने अपने मनोभाव और प्रस्तुतिकरण के जुदा अंदाज के कारण दर्षकों द्वारा सराहे गए। इस बार का ये समारोह कला एवं संस्कृति विभाग, कमल नयन बजाज चेरिटेबल ट्रस्ट और जयपुर सिटीजन फोरम के सहयोग से आयोजित किया जा रहा है। जवाहर कला केंद्र इस बार इस फैस्टिवल का वैन्यू पार्टनर है।
सुबह खेला गया नाटक खामोश अदालत जारी है
दूसरे दिन के समारोह की शुरूआत वरिष्ठ रंगकर्मी सरताज नारायण माथुर के निर्देष्न में नाटक खामोष अदालत जारी है के मंचन से हुई। यह नाटक के भीतर नाटक है। मुंबई की एक शौकिया रंगमंडली एक छोटे कस्बे में नाटक करने जाती है। इस मंडली में एक टीचर (मिस बेणारे), एक असफल वकील (सुखात्मे), इंटर फेल साईंटिस्ट, अभिनेता, मंडली का मालिक काशीकर, उसकी पत्नी, सेवक बालु और एक सीधा साधा ग्रामीण युवक( सामंत) है। प्रदर्शन का इंतजार करते हुए वे मजा लेने की मंशा से एक झूठ-मूठ का मुकदमा शुरू करते हैं। अभिनेत्री मिस बेणारे को अभियुक्त की भूमिका अदा करने के लिये कहा जाता है और उस पर भ्रूण हत्या का मुकदमा चलाया जाता है। मुकदमे के दौरान धीरे-धीरे पता चलता है कि सचमुच मिस बेणारे के गर्भ मे मंडली के विद्वान अभिनेता का शिशु पल रहा है और वह अपनी जिम्मेदारी से भाग गया है। अब नाटक में अन्य पात्रों के मुखौटे उतरने शुरू होते हैं। अभिनेताओं की ईर्ष्या, छोटापन और पूर्वाग्रह साफ सामने आते हैं। मुकदमे का अंत इस प्रकार होता है कि मिस बेणारे को वही करने की सजा सुनाई जाती है जिसे करने के लिये उस पर मुकदमा चलाया गया था। यह खेल क्रूरता की सीमा पार कर वीभत्स हो जाता है।
नाटक पतलून
शाम को 4 बजे केंद्र के रंगायन सभागार में मनीष जोषी बिस्मिल के निर्देषन में नाटक पतलून का मंचन किया गया। पतलून मानव इच्छाओं के आधार पर एक नाटक है। नाटक का मुख्य नायक भगवान है जो ग्रामीण पृष्ठभूमि से आता है। वह नौकरी खोजने के लिए एक शहर में स्थानांतरित हो जाता है। उन्हें ईंट कारखाने में नौकरी मिलती है और वह श्रमिक बन जाते हैं। यह नाटक मूल रूप से मोबाइल फोन, कैमरा और अन्य गजेट जैसे गैर जीवति वस्तुओं के लिए मानव की इच्छाओं पर जोर देता है लेकिन जीवित संबंधों के लिए कोई इच्छा नहीं रहती है। नाटक में जादूई भ्रम, कठपुतली, कथक और प्रषिक्षित अभिनेताओं की टीम शामिल थी जिसकी वजह से नाटक अभिनय के साथ साथ लय-ताल से भी सराबोर नजर आया।
नाटक बर्फ में दिखा तकनीक और अभिनय का संगम
समारोह के तहत शाम 4 और उसके बाद 7 बजे महाराणा प्रताप आॅडिटोरियम में सौरभ शुक्ला के चर्चित नाटक बर्फ के हाउसफुल शो हुए। सौरभ शुक्ला का ये थ्रिलर प्ले अपने सैट की वजह से दर्शकों के कौतुहल का विषय रहा। इस नाटक के सैट में कश्मीर की वादियों के अलावा बर्फबारी का भी जीवंत प्रदर्शन देखने योग्य था।
विदेश से सीखकर मॉडीफाई कीं हिंदुस्तानी स्नो मशीनें
नाटक के निर्देषक सौरभ बताते हैं कि थ्रिलर प्ले तैयार करना इतना आसान नहीं होता। वजह यह है कि इसकी तैयारी खास तरह से करनी पड़ती है। बाकी नाटकों में आप कहानी के साथ प्रयोग और ट्रीटमेंट कर सकते हैं लेकिन थ्रिलर प्ले में विजुअल इफेक्ट्स से भी खेलना होता है और फिल्मों के लिए तो हमारे पास काफी आॅप्शन होते हैं लेकिन प्ले करते वक़्त आपको मेहनत करनी पड़ती है। इस प्ले के लिए हमें कश्मीर की भारी बर्फ़बारी दिखानी थी। थ्रिलर प्ले में आप सिर्फ कह कर नहीं रह सकते कि बर्फ़बारी हो रही है। उसे दिखाना भी होगा। इसके लिए उन्हें खास तरह के स्नो मशीन की जरूरत थी। हिंदुस्तान में जो भी स्नो मशीन हैं, उनसे काफी आवाज आती है और प्ले में वह बाधक बन सकती थीं। इसलिए पूरी टीम ने निर्णय लिया कि वो इसे बाहर से मंगवाएंगे। फिर हमने पता किया कि अब्रॉड से अगर हम मंगवाते हैं तो वह काफी महंगी होंगी। फिर एक रास्ता निकाला, हमने विदेश में इस्तेमाल होने वाली स्नो मशीन के पूरे मेकेनिज्म को समझा और फिर उसे यहां की मशीन पर आजमाया और चार मशीनें बना दीं। फिर राघव प्रकाश ने स्टेज डिजाइन अलग तरीके से किया। म्यूजिक अनिल चौधरी ने दिया है। लाइटिंग भी अलग तरह से की गई है। इस नाटक में फिल्म अभिनेता सौरभ शुक्ला और सादिया सिद्दीकी ने अपने अभिनय से दर्षकों का दिल जीत लिया।
कश्मीर में फिल्म शूटिंग के दौरान आया नाटक का आइडिया
उन्होंने बताया कि नाटक की योजना उनके जेहन में तब आयी थी, जब वो एक फिल्म की शूटिंग के लिए कश्मीर गए और वहां कश्मीर को मैनें अपने नजरिये से देखा और महसूस किया कि कश्मीर बहुत सुंदर है, मगर वहां सख्ती और डर का माहौल है। उसी वक्त मैनें सोचा कि इससे जुड़ी एक कहानी लिखूंगा। बर्फ में कश्मीर का सैट है। लेकिन उसमें न तो उमर अब्दुला का नाम है न ही महबूबा मुफ्ती का और न ही आतंकवाद का नाम लिया गया है। लेकिन इसके बावजूद नाटक में उस जगह की राजनीति से लेकर आतंकवाद तक सबका प्रभाव नजर आया।
समारोह में सोमवार को खेले जाने वाले नाटक
समारोह के तहत सोमवार को जवाहर कला केंद्र में नाटकों के चार शो आयोजित किए जाएंगे। दोपहर 12 बजे कृष्णायन में केवल कार्तिक का ए मोमेंट आॅफ साइलेंस, दोपहर 2 बजे कृष्णायन में ही नाटक खास ओ आम शाम 4 बजे रंगायन में बीकानेर के सुधेष व्यास निर्देषित नाटक चार कोट और शाम 7 बजे मध्यवर्ती में अतुल सत्य कौषिक निर्देषित नाटक डिटेक्टिव 9 2 11 का मंचन किया जाएगा। सभी नाटकों में प्रवेष के लिए पहले आओ पहले पाओ के आधार पर स्थान रहने तक रजिस्ट्रेषन की नि:षुल्क सुविधा उपलब्ध रहेगी।