नई दिल्ली। हमारे देश में जेलों की किस तरह के हालात है यह तो समाचार-पत्रों और टीवी चैनलों के माध्यम से पता चल ही जाता है मगर सरकार और प्रशासन का इस और कोई ध्यान नहीं। जेलों में भी सुधार की और कई आवश्कय चीजों में सुधार की बहुत सी गुंजाइस है जिस पर राज्य सरकारें ध्यान नहीं दे रही है। इसी पर आज सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश की जेलों में भरे विचाराधीन कैदियों के मामले में जरूरी कदम नहीं उठाए जाने पर राज्य सरकारों को लताड़ लगाई है। कोर्ट ने कहा कि जेल उन विचाराधीन कैदियों से भर रखा है जिन्हें छोड़ा जा सकता है। कोर्ट ने आगे कहा कि यह चौंकाने वाला है कि राज्य सरकारें कैदियों को छोड़े जाने पर जरूरी कदम नहीं उठा रही हैं। यह हाल तब है जब जेल में जरूरत से ज्यादा कैदी भरे हुए हैं।
कोर्ट ने इस मामले में यूपी, एमपी और महाराष्ट्र सरकार को निर्देश जारी कर कहा है कि दस दिनों के अंदर जेलों से संबंधित और विस्तृत रिपोर्ट भेजें। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के प्रिजन स्टैटिस्टिक्स इंडिया, 2015 रिपोर्ट के मुताबिक, भारत की कई जेलें, कैदियों की संख्या के लिहाज से छोटी पड़ रही हैं। भारतीय जेलों में क्षमता से 14 फीसदी ज्यादा कैदी रह रहे हैं। इस मामले में छत्तीसगढ़ और दिल्ली देश में सबसे आगे हैं, जहां की जेलों में क्षमता से दोगेुने से ज्यादा कैदी हैं। भारतीय जेलों में बंद 67 फीसदी लोग विचाराधीन कैदी हैं। यानी ये वो कैदी हैं जिन्हें मुकदमे, जांच या पूछताछ के दौरान हवालात में बंद रखा गया है, न कि कोर्ट द्वारा किसी मुकदमे में दोषी करार दिए जाने की वजह से।