नई दिल्ली। इस वर्ष जुलाई में देश के राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का कार्यकाल खत्म होने जा रहा है। ऐसे में देश के अगले राष्ट्रपति के चयन को लेकर सभी राजनीतिक दलों में अभी से हलचल देखने को मिल रही है। हाल ही जहां भाजपा के प्रमुख समर्थकों में माने जाने वाली शिवसेना ने आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत का नाम उछाल कर इस मुद्दे को हवा दी। वहीं भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी के नाम भी राष्ट्रपति पद के लिए आगे आए। इन सबके बीच अब यह खबर निकल कर सामने आ रही है कि देश के प्रमुख विपक्षी दल अब भाजपा समर्थित उम्मीदवार के खिलाफ एक साझा उम्मीदवार उतारने पर विचार कर रहे हैं। इस दशा में एक स्थिति यह भी उभर सकती है जब विपक्षी दल भाजपा समर्थित उम्मीदवार के खिलाफ अपनी रणनीति का प्रयोग न करें और उसे अपना समर्थन दे दें। इस दशा में केवल ही नाम उभरकर सामने आ रहा है वह देश के मौजूदा राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का। अगर भाजपा नीत गठबंधन यदि प्रणब मुखर्जी को दोबारा राष्ट्रपति बनाने का समर्थन करते हैं तो विपक्षी दल उनका विरोध नहीं करेंगे। वैसे यह भी चर्चाएं सामने आ रही है कि प्रणब मुखर्जी को राष्ट्रपति पद के लिए दूसरी पारी देने के लिए विपक्षी दल उनका नाम आगे बढ़ा सकते हैं। वर्ष 2012 में जब प्रणब मुखर्जी को राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार बनाया गया, उस समय जदयू, शिवसेना ने उनका समर्थन किया था। हालांकि भाजपा पीए संगमा के पक्ष में दिखी। विपक्ष की मंशा है कि एनडीए अपना उम्मीदवार पहले घोषित करे। सप्ताहभर पहले ही जदयू अध्यक्ष व बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सहित पश्चिम बंगाल सीएम ममता बनर्जी, मायावती, शरद यादव व अन्य नेताओं ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात कर साझा उम्मीदार मंच पर लाने की बात की थी। जिस लिहाज से भाजपा को यूपी और उत्तराखंड में प्रचंड बहुमत मिला उस लिहाज से अपने उम्मीदवार को राष्ट्रपति बनवाने में एनडीए को मुश्किल नहीं आएगी। बता दें राष्ट्रपति का चुनाव लोकसभा, राज्यसभा और सभी राज्यों के सभी सदनों विधानसभा व विधान परिषद के संयुक्त वोटों के द्वारा होता है। जिनमें केन्द्र शासित प्रदेश दिल्ली व पुदुच्चेरी भी शामिल है।

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