-लोकपाल सेठी, वरिष्ठ पत्रकार
जिस तेज़ गति से पचपदरा में रिफाइनरी के निर्माण का काम चल रहा है उसको देखते हुए यहाँ पेट्रोल और पट्रोलियम पदार्थों का उत्पादन  निर्धारित समय से पहले ही शुरू होने की संभावनाएं बन रही है निर्धारित लक्ष्य के अनुसार यहाँ उत्पादन  अगले वर्ष के अंत अथवा 2023 के पहले कुछ महीनो में शुरू होना है लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि जिस तरह राज्य सरकार और केंद्र सरकार इस रिफाइनरी को प्राथमिकता दे रही है उसे  देखते हुए यहाँ पेट्रोल उत्पादन का सपना समय से पहले ही पूरा हो जायेगा।
वास्तव में  रिफाइनरी के शुरू होने से पहले ही इससे जुड़े उद्योगों और अन्य व्यापारिक गतिविधियों शुरू हो गई है। जिस तेज़ी से रिफाइनरी और इससे जुड़े उद्योग पनपने शुरू हो गए है  उससे  यह साफ़ है अगले कुछ समय में बाड़मेर, जैसलमेर का इलाका, जहाँ  कभी  कोई उद्योग लगाने और व्यापार करने की सोच भी  नहीं सकता था, राज्य का एक प्रमुख औद्योगिक और व्यापारिक केंद्र बन जायेगा। इंदिरा गाँधी नहर का पानी यहाँ पहुचने से जैसे इस इलाके में कृषि गतिविधियाँ बढी हैं, वैसे ही इस रिफाइनरी से तेल का उत्पादन शुरू होने से औद्योगिक और  व्यापारिक गतिविधियों मेंभारी इजाफा होगा। इससे यहाँ का सारा परिदृश्य ही बदल जायेगा।  अगले कुछ सालों में इस इलाके पर “सबसे पिछड़ा  इलाका” होने का ठप्पा हट जायेगा। पिछले कुछ वर्षों से कभी दूर दूर तक धोरे दिखने वाले इस पश्चिम राजस्थान में अब नज़ारा कुछ और ही हो गया है। कभी यहाँ कोडियों की दम पर भी कोई जमीन लेने को तैयार नहीं था अब वहां  जमीनों के दाम लाखों रूपये प्रति एकड पहुच गए है।
दशकों पूर्व जब रेगिस्तानी अरब देशो में खोज के बाद तेल के विशाल भंडार मिले थे, उस समय  यह महसूस किया गया था कि देश के इस लम्बे चौड़े रेगिस्तानी इलाके में भी तेल मिलने की पूरी संभावना हैइसके चलते कई देसी और विदेशी कंपनियों ने विभिन्न प्रकार के अनुबंधों के अंतर्गत  कच्चे तेल की  खोज आरंभ की। लेकिन जब बरसो की खुदाई के बाद भी यहाँ तेल के भंडारों का पता नहीं चला तो सबको भारी निराशा हुई, इस सदी के आरंभ में केयर्न इंडिया नाम की एक  विदेशी स्वामित्व वाली कंपनी ने अति आधुनिक ड्रिलिंग मशीनों की सहायता इस धोरो की इस धरती के बहुत नीचे तक पहुच कर तेल खोजने का काम शुरू किया। उस समय कोई भी अधिक आशावादी नहीं था। लेकिन जब 2004 एक  कुएं से कच्चे तेल  की धार फूटी तो सब को न केवल आश्चर्य हुआ बल्कि उन्हें विश्वास तक नहीं हुआ। उस समय इसे दुनियां की सबसे बड़ी खोज  बताया गया था। यहाँ माना जाने लगा था कि यहाँ बड़ी मात्रा कच्चा तेल मिलेगा जिससे भारत के पेट्रोल पर आयत की निर्भरता कम हो जायेगी। इसका इलावा भारी मात्र में विदेशी मुद्रा की बचत होगी। तेल की खोज करने वाली कंपनी के अनुसार यहाँ  मिली प्रारंभिक जानकारी के अनुसार धोरो के नीच कच्चे तेल के विशाल भंडार है। 3 हज़ार से अधिक इस इलाके में  कम से कम 473 मिलियन बैरेल तेल है  लेकिन इस बड़ी  खोज के कुछ दिन बाद ही एक बार फिर निराशा जैसा माहौल  फ़ैल गया। यह निराशा यहाँ जमीन के नीचे मिले  कच्चे तेल की गुणवता को लेकर थी। यहाँ मिला कच्चा  सामान्य कच्चे तेल की तुलना में काफी गाढ़ा(हैवी  आयल) था यानि तेल में मिटटी की गाद ज्यादा थी। इस तरह के कच्चे तेल से पेट्रोल निकालने की पूरी तकनीक  अभी तक भारत के पास नहीं थी। इस कच्चे तेल के कई तरह के परीक्षण करने के बाद इस  निष्कर्ष  पर पहुचा  गया कि किस इस कच्चे तेल से पेट्रोल निकालने के लिए इसमें खाड़ी के देशो से मिलने वाले पतले किस्म के कच्चे  तेल को  मिलाकर  इससे पेट्रोल और अन्य उत्पाद बनाए जा सकते है। इसके बाद इस केयर्न इंडिया ने इस इलाके में कई औरकुएं खोदे जिनमे से कम से कम 16 कुओं में कच्चा मिला। यहाँ कुल मिलाकर कच्चे तेल के 52 ब्लाक चिन्हित किये जा चुके है। कुल 16 कुयों में से तीन प्रमुख तेल कुएं मंगला, भाग्यम और ऐश्वर्य हैं। अनुबंध के अनुसार इसी कम्पनी ने यहाँ से कच्चे तेल के औद्योगिक उत्पादन पर काम करना शुरू किया। इसके साथ यह भी तय हुआ कि यहाँ से निकलने वाला कच्चा तेलसेगुजरात के कांडला बंदरगाह में जायेगाऔर वहां से समुद्री मार्ग से मंगलोर रिफाइनरी में शोधन के लिए जायेगा। यह लक्ष्य रखा गया कि प्रतिदिन  डेढ़ मिलियन बैरल तेल निकला जायेगा जो उस उस समय देश में निकले जाने वाले कुल  कच्चे तेल का लगभग  आधा था। बाद में इसे  बढा कर 2 मिलियन बैरल प्रतिदिन कर दिया जायेगा गर्मियों सबसे अधिक तापमान वाले इस  इलाके में तेल निकलना एक बड़ामेहनत वाला काम था। लगातार काम करते करते लगभग 5 वर्ष बाद यहाँ से कच्चे तेल निकालने की तैय्यारियाँ पूरी हुईं। तब मुख्यमत्री अशोक गहलोत ने कच्चे तेल का विधिवत उत्पादन करने के लिए देश के प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह को आमंत्रित किया। इस मौके देश विदेश  से मीडिया लोग इस ऐतिहासिक क्षण को रिपोर्ट करने के लिए पहुँच थे अगस्त 29,2009  यहाँ से कच्चा तेल विधिवत रूप से निकाला जाने लगा। यहाँ से कांडला बंदरगाह 700 किलोमीटर के आस पास है इसलिए तय किया गया की यहाँ से एक पाइप लाइन के जरिये कच्चा तेल वहां  पहुचाया जाये। जब तक इस पाइप लाइन का काम पूरा नहीं होता तब तक तेल टैंकरों के जरिये  तेल की ढुलाई वहा तक की जाये। चूंकि यहाँ से निकलने वाला तेल बहुत गधा था इसलिए इस बात की आशंका थी की यह तेल पाइप लाइन जम कर उसे जाम कर देगा। इसलिए एक विशेष तकनीक के जरिये  हर समय  गर्म रहने वाली पाइप लाइन बनाई जाये।
कच्चे तेल का उपत्पादन शुरू होने के साथ ही बाड़मेर और इसे आस पास के इलाका में व्यापारिक गतिविधियाँ आरंभ हो गयी। एक समय था जब बाड़मेर शहर ठहरने के एक भी होटल नहीं था। लेकिन जिस तेज़ी से बड़ी बड़ी कंपनियों के  प्रतिनिधियों ने यहाँ आना शुरू किया तो एक के बाद एक होटल खुलते चले गए। तकरीबन सभी होटलों में एयर कंडीशन कमरे थे। केयर्न इंडिया ने अपने  कर्मचारियों के लिए के पूरा का पूरा होटल एक लम्बी अवधि के लिए एक करार के अंतर्गत ले लिया। यहाँ बाहर से आने वाले लोगों के लिए उनकी आवशयकता और मांग के अनुसार दुकाने खुल गयी।
यहाँ से कच्चे तेल का उत्पादन शुरू होने के साथ ही यह मांग होने शुरू हो गई कि यहाँ से तेल कहीं और भेजने की बजाये यहीं एक तेल रिफाइनरी क्यों नहीं लगाई जाती। पर यह बात सामने आई कि पाकिस्तान की सीमा से लगते इस इलाके में इतना बड़ा कारखाना लगाया जाना सही नहींहोगा क्योंकि दोनों देशो के बीच युद्ध की स्थिति में यहरिफाइनरी दुश्मन का पहला निशाना हो सकती है। पर कुछ लोगों का तर्क था कि अगर पंजाब में भटिंडा, जो पाकिस्तान की सीमा अधिक दूर नहीं है, में रिफाइनरी लग सकती तो यहाँ क्यों नहीं। यह कहा गया कि यहाँ रिफाइनरी  वित्तीय  रूप से घाटे का सौदा होगी। एक तर्क यह भी था कि यहाँ मिला कच्चा तेल छोटी सी छोटी रिफाइनरी की क्षमता की तुलना में बहुत कम होगा। यह भी विषय आया कि राज्य सरकार खुद रिफाइनरी लगाये या इसमें कोई प्राइवेट पार्टनर शामिल करे। राज्य सरकार का केंद्र से लम्बा विचार विमर्श शुरू तथा और यहाँ लगाये रिफाइनरी लगाये जाने को हरी झंडी मिल गयी। यह  सहमति  बनी कि सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनी एच पी सी एल इसमें भागीदार होगी। जब रिफाइनरी स्थल के चयन का मुद्दा आया तो यह सहमति थी यह बाड़मेर में तेल कुओं के पास लगाई जाये। इसके लिए भूमि का अधिग्रहण भी शुरू हो गया। सहमति के अनुसार इस परियोजना  में एच पी सी एल की भागीदारी शामिल 74 प्रतिशत थी तथा शेष 26 हिस्सेदारी  राजस्थान सरकार की। इसमें राज्य सरकार  दवारा दी जाने वाली जमीन तथा अन्य ढांचागत सुविधाए शामिल है। रिफाइनरी की क्षमता प्रतिवर्ष 9 मिलियन बैरल पेट्रोल होगी। इसके अलावा 29 अन्य उत्पाद होंगे जिसमे नेपथा, डीज़ल तथा अन्य उत्पाद शामिल है। रिफाइनरी बनाने की कुल लागत लगभग 43,000 करोड़ रूपये होगी। इससे 15,000 लोगों को प्रत्यक्ष तथा लगभग 40,000 लोगों को परोक्ष रूप से रोजगार मिलेगा।
201३ में इस रिफाइनरी के निर्माण की विधिवत रूप से नीव रखी लेकिन तकनीकी तथा कुछ अन्य कारणों से निर्माण का काम शुरू नहीं हो सका। पानी की कमी तथा पर्यावरण की कुछ मुद्दों के चलते यहाँ रिफाइनरी लगाया जाना ठीक नहीं पाया गया। फिर यह तय किया कि पास के इलाके  पचपदरा में रिफाइनरी लगाई जा सकती है। इसके लिए फिर से भूमि अधिग्रहण करने का काम शुरू हुआ। रिफाइनरी लगभग 5,000 हेक्टेयर इलाके में फ़ैली है। पर्यावरण मंत्रालय की  हरी झंडी 2017 में जा कर मिली। रिफाइनरी के निर्माण का विधिवत काम 2018 में शुरू हुआ। तब यह कहा गया कि रिफाइनरी 2023 आते आते उत्पदान शुरू कर देगी। चूँकि केंद्र सरकार की नई नीति के अनुसार  बड़ी परियोजनायों  के पूरा होने में किसी भी प्रकार का विलम्ब नहीं होना चाहिए इसलिये रिफाइनरी के काम में तेज़ी आई। इसके चलते अब राज्य सरकार और केंद्र सरकार के अधिकारी यह उम्मीद कर रहे है कि बिना किसी बाधा के जिस तेज़ गति से काम हो रहा है उसको देखते हुए रिफाइनरी निर्धारित समय से पहले ही काम करना शुरू कर देगी। देश इस समय खपत का 80 प्रतिशत पेट्रोल आयत किया जाता हैं। इस रिफाइनरी से उत्पादन शुरू होने से यह घट कर लगभग 70 प्रतिशत रह जायेगा।

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