नई दिल्ली। भीषण गर्मी का दौर शुरू होने के साथ एक निराशाजनक खबर सामने आई है। स्काईमेंट से मिले संकेतों की माने तो इस बार मानसून कमजोर हो सकता है। केवल पूर्वी भारत खासकर ओडिशा, झारखंड और पश्चिमी बंगाल में अच्छी बरसात हो सकती है। इनको छोड़कर देश के अन्य हिस्सों में मानसूनी बरसात औसत से कम होगी। इसके पीछे एक कारण अलनिनो का भी उभरकर सामने आ रहा है। मानसून के सैकंड हॉफ में अलनीनो की 60 फीसदी आशंका है। इस तरह इस बार देश में औसतन 95 फीसदी ही बारिश होगी। इसी तरह लंबी अवधि जून से लेकर सितंबर तक देश में 887 एमएम से कम बारिश होगी। जो इस बार चिंता का सबब बन सकता है। देश में खरीफ की फसल की बुआई बारिश के भरोसे होती है। ऐसे में कृषि आधारित अर्थव्यवस्था लिए यह संकेत अच्छे नहीं है। 5 फीसदी से कम बरसात होने से इसका असर खेती पर पड़ेगा। अमूमन अलनीनो के नाम से मौसम अनुसंधानकर्ताओं की परेशानियां बढ़ जाती है। स्थिति को देखे तो अलनीनो के प्रभाव से विश्व में बाढ़ और सूखे सरीखे मौसमी बदलाव सामने आते हैं। हवाओं की दिशा बदलने, कमजोर पडऩे और समुद्र के सतही पानी का तापमान बढऩे से अलनीनो सक्रिय होता है। जिससे बारिश के प्रमुख क्षेत्र बदल जाते हैं। जिन इलाकों में कम बारिश तो वहां ज्यादा और जहां ज्यादा तो वहां कम बारिश होती है। ऐसी स्थिति प्रत्येक 10 साल में 2 से 3 बार सामने आती है। जब अलनीनो के कारण प्रशांत महासागर के पानी का तापमान कहीं-कहीं 10 से. तक बढ़ जाता है। पेरू के तट पर सबसे अधिक तापमान बढ़ता है, लेकिन इसक प्रभाव दूर-दूर तक देखने को मिलता है। इसके कारण दक्षिणी अमेरिका, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया से लेकर दक्षिण-पूर्वी एशिया की ओर बहने वाली हवाओं की गति बेहद सुस्त पड़ जाती है। जिसके कारण इन इलाकों में सूखे के हालात बनते हैं।

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