जयपुर। राजस्थान की राजधानी जयपुर में बालिका गृह के आंगन में पली बढ़ी हुई राजलक्ष्मी 18 साल तक खुद को अनाथ ही समझ रही थी। बचपन से ही बालिका गृह की दीवारों को देखते आई राजलक्ष्मी से जब कोई मां-बाप के बारे में बात भी करता था, तो वह यहां के कर्मचारियों को ही अपना संरक्षक बताती। जो उसकी हर ख्वाहिश को पूरा करते थे। लेकिन किस्मत को तो कुछ ओर ही मंजूर था। राजलक्ष्मी के जीवन में एकाएक नया मोड़ आया और उसकी मां के बारे में पता चल गया। राजलक्ष्मी के कानों में जब उसकी मां के जीवित होने की बात पता चली तो उसकी खुशियों का ठिकाना नहीं रहा। लेकिन उसकी यह खुशी ज्यादा देर तक उसके करीब नहीं रह सकी। राजलक्ष्मी अपनी मां से मिली तो उसके विमंदित होने का पता चला। यह जानकर उसके पैरों तले जमीन सरक गई। उससे भी ज्यादा मानसिक पीड़ा तो तब उभरी जब उसे पता चला कि उसकी मां का दुष्कर्म हुआ और वह एक दुष्कर्मी पिता की संतान है। इस बात को लेकर उसके मन में खासी उधेड़बुन चलती रही। एक पल तो मां के साथ खड़े रहकर उसे इंसाफ दिलाने का हौंसला देता तो दूसरा पल उसे इस पचड़े में नहीं फंसने की ओर इशारा करता। आखिरकार राजलक्ष्मी ने अपने नाम के अनुरुप साहसिक कदम उठाया, उसने विमंदित मां के गुनहगार अपने पिता को ढूंढ निकालने का संकल्प लिया। उसके इस प्रयास में न्यायालय ने भी अहम भूमिका अदा की। कोर्ट ने वर्ष 2016 में जवाहर नगर थाना पुलिस को आदेश देकर राजलक्ष्मी के असली पिता का पता लगाने के लिए डीएनए जांच के आदेश दिए। बता दें करीब 30 वर्ष पूर्व 1987 में राजलक्ष्मी की मां लावारिश हालत में मिली थी। जिसे बाद में विमंदित गृह भेज दिया गया। यहां 7 साल रहने के उपरांत राजलक्ष्मी की मां के गर्भवती होने का पता चला तो प्रशासन में हड़कंप मच गया। मामला पुलिस तक पहुंचा तो जांच में खुलासा हुआ कि विभाग के ही कर्मचारी महिला कर्मचारियों से सांठगांठ से विमंदित गृह की महिलाओं से दुष्कर्म करते थे। इस मामले में पुलिस ने कुछ कर्मचारियों को गिरफ्तार किया, जिनमें एक राजलक्ष्मी का पिता भी था। प्रकरण के खुलने के उपरांत राजलक्ष्मी के पिता को कोर्ट ने 5 साल के लिए जेल भेज दिया। इसी कर्मचारी से ही राजलक्ष्मी का डीएनए मैच कर गया।

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