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जयपुर। राजस्थान हाईकोर्ट ने महाधिवक्ता से 11 मई तक पूछा है कि विधायकों को संसदीय सचिव नियुक्त करने के खिलाफ दायर जनहित याचिका में संबंधित संसदीय सचिवों को पक्षकार बनाना क्यों जरूरी है। न्यायाधीश जीके व्यास और न्यायाधीश जीआर मूलचंदानी की खंडपीठ ने यह आदेश दिपेश ओसवाल की ओर से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए।

सुनवाई के दौरान महाधिवक्ता एनएम लोढ़ा ने आपत्ति उठाते हुए कहा कि याचिका संसदीय सचिवों के खिलाफ पेश की गई है, लेकिन इन्हें पक्षकार नहीं बनाया गया है। ऐसे में अदालत संसदीय सचिवों का पक्ष सुने बिना प्रकरण की सुनवाई नहीं कर सकती है। इस पर याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि याचिका संसदीय सचिवों के खिलाफ नहीं है। याचिका विधायकों को संसदीय सचिवों के रूप में नियुक्त करने की सरकार की शक्तियों के खिलाफ पेश की गई है। ऐसे में संसदीय सचिवों का पक्ष जानने की कोई जरूरत नहीं है। सुप्रीम कोर्ट भी ऐसे दिशा-निर्देश दे चुका है। इस पर अदालत ने महाधिवक्ता को बताने को कहा है कि संसदीय सचिवों को पक्षकार बनाना क्यों जरूरी है।

जनहित याचिका में 18 जनवरी 2016 की अधिसूचना से एमएलए सुरेश रावत, जितेन्द्र गोठवाल, विश्वनाथ मेघवाल, लादूराम विश्नोई और भैराराम सियोल तथा 10 दिसंबर 2016 को अधिसूचना जारी कर नरेन्द्र नागर, भीमा भाई डामोर, शत्रुघन गौतम, ओमप्रकाश हुडला और कैलाश वर्मा को संसदीय सचिव नियुक्त कर इन्हें राज्य मंत्री का दर्जा देने को चुनौती दी गई है।

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