Life sentence

जयपुर। छात्र जीवन में नेता बनने के लिए 1997 में आम रास्ता रोक कर विरोध जताने एवं पुलिस के साथ मारपीट कर राजकार्य में बाधा डालने के मामले में मंगलवार को सीबीआई-4 कोर्ट में जज चन्द्रकला जैन ने आरोपी रहे पूर्व मंत्री एवं वर्तमान में नवलगढ़ से विधायक राजकुमार शर्मा, खींवसर-नागौर से विधायक हनुमान बेनीवाल एवं तत्कालीन छात्र नेता सूरतगढ़-हनुमानगढ़ निवासी विजय देहडू की अपील स्वीकार कर बरी कर दिया। एसीएमएम-12 कोर्ट ने 17 दिसम्बर, 2०12 को तीनों आरोपियों को 3 साल की जेल एवं 2०25०-2०25० रुपए के जुमार्ने की सजा से दण्डित किया था। तीनों ने आदेश को डीजे कोर्ट में चुनौती दी। जहां से केस सीबीआई कोर्ट में ट्रांसफर हो गया था। आरोपियों के अधिवक्ता रमेश चन्द्र शर्मा राजकुमार शर्मा, उम्मेद सिंह खींचड़ ने कोर्ट को बताया कि सरकार ने पुलिस के जरिए राजनीतिक दुर्भावना से उपरोक्त मुकदमा दर्ज कराया था। परिवादी तत्कालीन थानेदार लक्ष्मीनारायण ने आरोपियों को पहचानने से ही इनकार कर दिया। पुलिस ने घायल पुलिसकर्मियों का मेडिकल दोपहर डेढ़ बजे कराना बताया, जबकि साक्ष्य अनुसार घटना ढाई बजे की थी। धारा 147 के अपराध में 5 व्यक्तियों का होना जरूरी है, इसमें 3 ही आरोपी बताए हैं। पुलिस ने कोर्ट में घटना के समय राजकार्य में उपस्थित होने संबंधित एक भी दस्तावेज पेश नहीं किया। 3 कारों को सड़क पर लगा कर रास्ता रोकना बताया, लेकिन ना तो वाहनों को जब्त किया और ना ही उनके मालिकों के संबंध में तहकीकात की। एक भी स्वतंत्र गवाह नहीं बनाया। बताया गया अपराध रास्ता रोकने का दफा 283 में वर्णित है, लेकिन ना तो पुलिस ने और ना ही ट्रायल कोर्ट ने उन्हें आरोपी माना। नक्शे-मौके पर ईंट-पत्थर नहीं मिले और ना ही डंडे जब्त किए गए। किसी भी पुलिस कर्मी के खून आलूदा चोट नहीं आई, केवल दर्द होना बताया था। ट्रायल कोर्ट ने बिना साक्ष्य एवं सबूत के दण्डादेश पारित किया है, जिसे रद्द किया जाए।

ट्रायल कोर्ट ने की थी गंभीर टिप्पणी 
एसीएमएम-12 कोर्ट ने 17 दिसम्बर, 2०12 को दिए आदेश में कहा था कि राजनीतिक महत्वाकांक्षा की पूर्ति में लगे हुए हैं, जिससे वे रातोरात नेताओं की नजर में आ जाएं और राजनीति में अपना भविष्य सुरक्षित कर लें, जबकि देश को ऐसे नेता नहीं चाहिए, जिनका जन्म ही भ्रष्ट तरीकों से हुआ है। कोर्ट ने कहा था कि युवा देश के भविष्य हैं, लेकिन उन्हें कानून हाथ में लेने की अनुमति नहीं दी जा सकती। कोर्ट पुलिस को पीटती हुई भी नहीं देख सकती। कोर्ट ने आदेश में यह भी कहा था कि वर्तमान में निर्वाचित जनप्रतिनिधियों द्बारा संसद-विधानसभा में मारपीट व गाली-गलोच की जाती है। संभवत: वह इसी स्तरहीन राजनीति का परिणाम है। आरोपियों के खिलाफ बयान देने वाले पुलिसकर्मियों को संरक्षण देते हुए कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिए थे कि उन्हें प्रताड़ित नहीं किया जाए। कोर्ट ने तीनों आरोपियों को आईपीसी की धारा 332/147 में 3 साल व 1०-1० हजार, धारा 353/149 में 2 साल व 5-5 हजार, धारा 147 में 2 वर्ष व 5-5 हजार तथा धारा 336 के अपराध में दोषी मानते हुए 3 माह की जेल एवं 25०-25० रुपए के जुमार्ने की सजा से दण्डित किया था।

यह था मामला : राजस्थान विश्वविद्यालय के जेसीबोस होस्टल में हुए सामूहिक दुष्कर्म प्रकरण में आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए छात्रों ने 8 सितम्बर, 1997 को सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे तक जनता कर्फ्यू लगाकर महाराजा कॉलेज के सामने 7०-8० छात्रों ने रास्ता रोक, पुलिस के साथ मारपीट की व राजकार्य में बाधा डाली। छात्र पुलिस हाय-हाय के नारे लगा रहे थे। इस संबंध में थानेदार लक्ष्मीनारायण भिण्डा ने लालकोठी थाने में मुकदमा दर्ज कराया था।

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