नई दिल्ली। देश के सरकारी बैंकों का दोगलापन सामने आया है। आम-आदमी, गरीब किसान अगर ऋण की किश्तें समय पर चुका नहीं पाए तो बैंक वाले वसूली के लिए आ धमकते हैं। उनके मकान और जमीनें नीलाम कर देते हैं। वहीं अगर कोई धन्ना सेठ करोड़ों-अरबों रुपया ऋण लेकर चुकाए नहीं तो बैंक वालों को सांप सूंघ जाता है। ना तो वसूली करते हैं और ना ही उनके जमीन-जायदादों को कुर्क करके नीलाम करते हैं। इसी तरह का एक धन्नासेठ विजय माल्या सरकारी बैंकों को पांच हजार करोड़ रुपए की चपत लगाकर देश से फरार हो गया। अब ऐसे ही और भी देश में धन्ना सेठ है, जो जनता की गाढ़ी कमाई के टैक्सों से चल रहे सरकारी बैंकों का 85 हजार करोड़ रुपए दबाए बैठे हैं। मात्र 57 धन्ना सेठों ने इतनी बड़ी राशि दबाए बैठे हैं। वे ना तो बैंकों को लौटा रहे हैं और ना ही देने की नीयत दिखा रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट में पांच सौ करोड़ रुपए से अधिक का ऋण नहीं चुकाने वाले धन्ना सेठों के मामले में यह तस्वीर सामने आई है। दिलचस्प बात यह है कि सरकारी बैंक प्रबंधन ऐसे व्यापारियों और लोगों के नाम भी उजागर नहीं कर रहा है, जो बैंकों का इतना बड़ा नुकसान कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सख्ती दिखाते हुए केंद्रीय बैंकों के प्रबंधन से पूछा कि आखिर क्यों ना ऐसे लोगों के नाम सार्वजनिक कर दिए जाएं। चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, आखिर ये लोग कौन हैं, जिन्होंने इतना बड़ा कर्ज तो ले लिया, लेकिन उसे लौटाया नहीं है। ऐसे लोगों के नाम जनता को क्यों नहीं पता लगना चाहिए। अगर कर्ज सीमा 500 करोड़ रुपए से कम कर दी जाए तो बैंकों के फंसे कर्ज की राशि एक लाख करोड़ रुपए से ऊपर निकल जाएगी। पीठ ने कहा कि अगर लोग आरटीआई के जरिए सवाल पूछते हैं, तो उन्हें जानना चाहिए कि आखिर कर्जे नहीं लौटाने वाले कौन हैं। उसने रिजर्व बैंक से पूछा कि आखिर ऐसे लोगों के बारे में सूचना क्यों रोकी जानी चाहिए। लोगों को यह जानना चाहिए कि आखिर एक व्यक्ति ने कितना कर्जा लिया और उसे कितना लौटाना है। इस तरह की राशि के बारे में लोगों को जानकारी मिलनी चाहिए। आखिर सूचना को क्यों छिपाया जाए। बैंक के अधिवक्ता ने इस सुझाव का विरोध करते हुए कोर्ट से कहा, कर्जा नहीं लौटा पाने वाले सभी कर्जदार जानबूझकर ऐसा नहीं कर रहे हैं। केंद्रीय बैंक के अनुसार वह बैंकों के हितों में काम कर रहा है और कानून के मुताबिक कर्जा नहीं लौटाने वाले लोगों के नाम सार्वजनिक नहीं किए जा सकते।
– देश हित में कार्य करे रिजर्व बैंक
पीठ ने कहा, रिजर्व बैंक को देशहित में काम करना चाहिए ना कि केवल बैंकों के हित में। गैर सरकारी संगठन सेंटर फ ॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन की तरफ से पेश अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने बकाया कर्जा राशि के खुलासे का समर्थन किया, साथ ही दिसंबर 2015 के शीर्ष अदालत के एक फैसले का जिक्र करते हुए दावा किया है कि रिजर्व बैंक को सभी सूचना उपलब्ध करानी है। सुनवाई के बाद पीठ ने कहा कि वह कर्जा नहीं लौटाने वालों के नामों के खुलासे संबंधी पहलुओं पर 28 अक्टूबर को सुनवाई करेगी। इससे पहले कोर्ट ने कर्जा नहीं लौटाने वाली बढ़ती राशि पर चिंता जताते हुए कहा था कि लोग हजारों करोड़ रुपये ले रहे हैं और अपनी कंपनियों को दिवालिया दिखाकर भाग जा रहे हैं, लेकिन वहीं पन्द्रह-बीस हजार रुपए का कर्जा लेने वाले गरीब किसानों व आम आदमी परेशान होते हैं।

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