Fake documents

जयपुर । फर्जी दस्तावेजों के आधार पर करोडों रुपए की जमीन हडपने के मामले में मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट कोर्ट के 12 जनवरी को आदेश देने एवं 17 जनवरी को परिवादी की ओर से कंटेम्ट याचिका पेश होने के बाद आखिरकार जवाहर सर्किल थाना पुलिस ने 18 जनवरी को डॉ. नरेश कुमार त्रेहान सहित आधा दर्जन आरोपियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 467, 468, 471, 420, 120 बी, 199, 200, 177 एवं 181 में एफआईआर दर्ज कर जांच शुरु कर दी है। कंटेम्ट याचिका में आरोपी एसएचओ राजेश सोनी की बजाय मुकदमा एसआई छीतर मल रैगर ने दर्ज कर जांच एसआई मुंशीलाल शर्मा को सौंपी है।

एडवोकेट ए. के. जैन ने बताया कि सीबीआई कोर्ट-5 के 25 अक्टूबर, 2017 के आदेश की अनुपालना में सीएमएम कोर्ट ने 12 जनवरी को डॉ. त्रेहान के अलावा व्यवसायी राजन नन्दा, रितु नन्दा, शिवेन्द्ग मोहनसिंह, गिरीश बिहारी माथुर व मानवेन्द्ग मोहन सिंह सहित अन्य के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के आदेश दिए थे। कोर्ट ने थानाधिकारी को आदेश दिये है कि परिवाद पत्र का परीक्षण कर संबंधित व्यक्तियों के विरूद्ध मुकदमा दर्ज कर नियमानुसार अनुसंधान कर नतीजा कोर्ट में पेश करें। कोर्ट ने पुलिस को छूट दी कि परिवाद में अंकित आरोपियों एवं लिखी गई धाराओं तक ही अनुसंधान सीमित नहीं रखे बल्कि उचित एवं निष्पक्ष जांच करें। कोर्ट ने आदेश में यह भी कहा है कि परिवादी ने राजनीतिक द्बेषतावश या ख्याति प्राप्ति के लिए मिथ्या रिपोर्ट दर्ज करवाई है, तो उसके खिलाफ भी कार्यवाही अमल में लाई जावे।

परिवादी को सीबीआई कोर्ट से मिला था न्याय:-
परिवादी राजकुमार के अधिवक्ता आदित्य जैन एवं शंकरलाल गुर्जर ने बताया कि उपरोक्त मामले में एफआईआर दर्ज कराने के लिए जवाहर सर्किल एसएचओ को 3 दिसम्बर, 2015 को रिपोर्ट दी थी। डीसीपी ईस्ट को भी रिपोर्ट देने के बाद भी मुकदमा दर्ज नहीं होने पर 11 दिसम्बर को कोर्ट में परिवाद पेश किया था। कोर्ट ने भी एफआईआर दर्ज करने के आदेश देने की बजाय 18 जून, 2016 को धारा 200 में स्वयं ही जांच करने के आदेश दिया। आदेश को डीजे कोर्ट में चुनौती दी गई। सीबीआई कोर्ट-5 ने उक्त आदेश को 25 अक्टूबर, 2017 को रद्द करते हुए परिवादी को पुन: सुनकर विधि सम्मत आदेश पारित करने के लिए फाईल लौटा दी। सीबीआई कोर्ट ने आदेश में कहा था कि इस प्रकरण में जिस उद्देश्य के लिए करोडों रुपए की भूमि आवंटन की गई थी, उसे आरोपियों द्बारा विभिन्न कार्यो में प्रयोग किया जा कर स्वयं को तथा सहयोगियों को अनुचित लाभ पहुंचा कर पर व सत्ता का दुरुपयोग किया जाना प्रथमदृष्टया जाहिर हुआ है। प्रकरण करोडों रुपए की जमीन से संबंधित है, जिस कारण प्रकरण में काफी दस्तावेजात जब्त किया जाना एवं सघन जांच किया जाना आवश्यक है, जोकि परिवादी के धारा 200 के बयानों पर किया जाना सम्भव नहीं है। सीएमएम कोर्ट ने एफआईआर के आदेश नहीं देकर न्यायिक भूल की है।

यह है मामला :-
परिवाद में कहा गया कि राजस्थान इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट नियम, 1974 के तहत सार्वजनिक कार्य के लिए सोसायटी रजिस्ट्रेशन एक्ट के पंजीकृत संस्थाओं को रियायती दर पर भूमि आवंटित की जा सकती है। इसके अलावा व्यावसायिक उपयोग के लिए भूमि सिर्फ नीलामी के जरिए ही देने का प्रावधान है। डॉक्टर त्रेहान ने 1995 को सरकार से सुपर स्पेशलिटी अस्पताल बना कर गरीबों को सस्ता इलाज मुहैया कराने के लिए रियायती दर पर भूमि मांगी। इस पर जेडीए ने 2730 रुपए प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से भूमि देने का प्रस्ताव दिया। 2 नवम्बर, 1995 को तत्कालीन सीएम भ्ौरोंसिंह श्ोखावत को त्रेहान ने सस्ती दरों पर देने के लिए पत्र लिखा। 1998 में सत्ता परिवर्तन हुआ और जमीन की बंदरबांट का ख्ोल शुरु हो गया। सचिव जीएस सन्धु ने 15 नवम्बर, 1999 को जेडीसी को पत्र लिखा।

बाद में सीएम के प्रभाव से 25 सितम्बर, 2001 को 4.7 एकड भूमि मात्र एक रुपए में त्रेहान की एस्कोर्ट हार्ट इस्ट्टीयूट एंड रिसर्च सेंटर को आवंटित की गई। आवंटन में शर्त थी कि 10 प्रतिशत बेड गरीबें को फ्री इलाज के लिए रहेंगे। 2 वर्ष में अस्पताल का निर्माण कार्य पूरा हो जायेगा। व्यावसायिक उपयोग नहीं होगा। रहन/बेचान/किराये पर नहीं दे सकेंगे। संस्था बंद होने पर जमीन स्वत: ही जेडीए की होगी। आरोप है कि भूमि हडप कर लाभ कमाने के लिए जांलधर-पंजाब में 30 मई 2000 को एक व्यवसाय कंपनी एस्कोर्ट हार्ट इस्ट्टीयूट एंड रिसर्च सेंटर लि. जिसमें मुख्य श्ोयर होल्डर राजन नंदा एवं ऋतु नंदा को बनाया, के नाम से बना कर आरोपियों ने षडयंत्र रचकर आवंटन चेरिटेबल संस्था के स्थान पर कंपनी के नाम कर करने की मांग की।

तत्कालीन जेडीसी निहालचन्द गोयल ने कार्यवाही शुरु कर दी। फाईल आने पर सचिव आरएस गठाला ने 31 जनवरी, 2001 को नोटिंग की कि नियमानुसार किसी व्यवसाय कंपनी को आवंटन हो ही नहीं सकता। बाद में आरक्षित दर के 60 प्रतिशत की दर पर पूर्ण रूप से व्यावसायिक उपयोग की अनुमति 8 मई, 2005 को मंत्रीमण्डल ने दे दी। नियमों के विपरीत जाकर बिना अनुमति कंपनी के शेयर भी अंतरित किए गए। 31 अगस्त, 2005 को ऋतु नंदा के शेयर शिवेन्द्ग मोहनसिंह को तथा अन्य के शेयर मानवेन्द्ग मोहन सिंह व फोर्टिस हेल्थ केयर लिमिटेड को अन्तरित कर दिये और जेडीए को सूचना ही नहीं दी।

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