China will become the biggest consumer of Colored Jamstones next year: Lee
जयपुर। जयपुर में चल रही इंटरनेशनल कलर्ड जैमस्टोन एसोसिएशन कांग्रेस 2017 (आईसीए) के दौरान आज चीन में कलर्ड जैमस्टोन्स के नए ट्रेंड्स विषय पर सत्र हुआ। इस सत्र का संचालन गोंगडोंग जैम एंड जेड एक्सचेंज (जीडीजीजेई) के अध्यक्ष, जही वई ली द्वारा किया गया। ली ने चीन में कलर्ड जैमस्टोन्स के खपत के ट्रेंड की जानकारी देते हुए बताया कि चीन में वार्षिक बिक्री 80 बिलियन अमेरिकन डॉलर है और जिसमें से 10 बिलियन अमेरिकन डॉलर की बिक्री कलर्ड जैमस्टोन्स की है। ज्वैलरी ट्रेड के संदर्भ में चीन दुनिया में दूसरे नम्बर पर है। वहां के लोगों में इसके बारे में जागरूकता और खरीद की दर भी काफी अधिक है। वहां वर्ष भर प्रत्येक श्रेणी के जैमस्टोन की कीमत लगातार बढती रही है। अपने ब्रांड जीडीजीजेई के बारे में ली ने बताया कि उनकी गोंगडोंग-हांगकांग-मकाउ-बिग बे एरिया के लिए वन बैल्ट वन रोड पर नीति बनाने की आकांक्षा है। जीडीजीजेई को कुछ ढांचागत सुधार, ट्रेड फेसीलिटेशन और अन्य विकास रणनीतियां तैयार किए जाने की उम्मीद है। उन्होंन कहा कि प्राथमिकता वाली नीतियों के साथ नया कॉम्प्रिहेन्सिव एक्सचेंज प्लेटफार्म जो कलर्ड जैमस्टोन्स के लिए ही विशेष तौर पर डिजाइन किया गया हो तथा अधिक सुविधाजनक कस्टम क्लीयरेंस हो तो इस उद्योग को अधिक लाभ होगा। उन्होेंने इस बात पर जोर दिया कि एक खुली इन्क्लुसिव पॉलिसी बननी चाहिए और कलर्ड जैमस्टोन मार्केट में हो रहे नए डवलपमेंट को आगे बढ़ाने के लिए वैज्ञानिक मापदण्डों को आपसी समझ के साथ चुना जाना चाहिए। ली को उम्म्मीद है कि चीन की जैम्स और ज्वैलरी इंडस्ट्री अगले वर्ष तक 25 बिलियन डॉलर प्रतिवर्ष तक पहुंच जाएगी। चीन दुनिया में कलर्ड जैमस्टोन्स का सबसे बडा उपभोक्ता बनने की दिषा में आगे बढ रहा है। इस द्विवार्षिक आयोजन के विषेष आकर्षण के तौर पर जयपुर की जैम्स एंड ज्वैलरी इंडस्ट्री के दो विषेषज्ञों ने जैम्स के मॉस प्रोडक्षन और भारतीय उपमहाद्वीप में जैम्स एंड ज्वैलरी के इतिहास पर चर्चा की।
जैम स्टोन्स का मॉस प्रोडक्शन: निर्मल बरडिया
जैमस्टोन्स के मॉस प्रोडक्षन के विषय पर भारतीय ज्वैलर, श्री निर्मल बरडिया ने बताया कि तकनीक किस तरह से जैमस्टोन्स की माइनिंग से लेकर कटिंग और पॉलिशिंग तक की प्रक्रिया को स्ट्रीमलाइन कर रही है। उन्होंने बताया कि माइनिंग मषीनरी तकनीकी रूप से काफी आधुनिक हो गई है और इससे ना सिर्फ जैमस्टोन्स अधिक मात्रा में मिल रहे है, बल्कि इनकी वैरायटी भी काफी विस्तृत हो गई है। सही रंग के आधार पर स्टोन्स की छंटाई कर खरीदना अब ज्यादा आसान हो गया है। उन्होेंने विस्तार से बताया कि तकनीक ने किस तरह जैमस्टोन मैन्युफेक्चरिंग की प्रत्येक प्रक्रिया जैसे रफ जैमस्टोन प्लानिंग, मेकिंग प्रीफॉर्म, सही आकार और शेप देने, जैमस्टान मे छेद करने, नए शेप बनाने और गुणवत्ता नियंत्रण आदि  को आसान बना दिया है। बडे पैमाने पर उत्पादन होने से ज्वैलर्स अधिक एक्युरेसी, सही पॉलिषिंग, नए शेप विकसित करने और बेहतर गुणवत्ता नियंत्रण के संदर्भ में सुनिष्चित हो सकते हैं। उत्पादन के इस तरीके के कारण फैषन ज्वैलरी बनाना ज्यादा आसान हो गया है, क्योंकि ज्वैलर्स के पास अब पहले के मुकाबले ज्यादा विकल्प उपलब्ध है। उन्होंने यहां तक कहा कि जैम्स एंड ज्वैलरी का भविष्य अधिक उत्पादन के हिसाब से ही तय होगा।
भारतीय उपमहाद्वीप में जैम और ज्वैलरी का इतिहास: सुधीर कासलीवाल
जयपुर के प्रसिद्ध ज्वैलर एवं जैम पैलेस के सुधीर कासलीवाल ने भारतीय उपमहाद्वीप में जैम और ज्वैलरी के इतिहास के बारे में जानकारी दी। उन्होंने सिंधु घाटी सभ्यता से अब तक ज्वैलरी के विभिन्न उपयोगों के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि ज्वैलरी के अनेक उपयोग है और यह भारत के सामाजिक आर्थिक ढांचे का हमेषा से हिस्सा रही है। प्रत्येक महिला चाहे उसका स्टेटस कुछ भी हो वह ज्वैलरी अवश्य पहनती है। यह निजी सम्पत्ति, सामजिक स्तर और प्रतिष्ठा का प्रतीक है। महिलाओं के अतिरिक्त राजाओं और उनके दरबारी भी अपने सामर्थ्य और पसंद के हिसाब से ज्वैलरी पहनते थे। उन्होंने कहा कि भारत में तो देवी देवताओं को भी उनके भक्तों की ओर से अपनी भक्ति के प्रदर्षन के तौर पर ज्वैलरी चढ़ाई जाती है। उन्होंने आगे बताया कि यूरोपियन प्रभाव के चलते प्रसिद्ध ज्वैलर कार्टियर द्वारा लाई गयी  ज्वैलरी की डिजाइन, सैटिंग और प्लेसमेंट में बदलाव आने लगे हैं। कार्टियर ने राजपरिवारों के लिए ज्वैलरी बनाना षुरू किया और ये राजपरिवार उसके डिजाइनों के नियमित ग्राहक बन गए। उन्होंने अपनी पुरानी गोल्ड ज्वैलरी को आधुनिक डिजाइंस में बदल लिया।

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