-बाल मुकुंद ओझा
देशी की राजधानी दिल्ली पर पराली प्रदूषण का खतरा फिर मंडराने लगा है। यह खतरा आसपास के राज्यों में किसानों द्वारा पराली जलाने से हो रहा है। इन राज्यों में खरीफ की कटाई शुरू हो चुकी है। इस बीच ठंड की आहट के साथ दिल्ली-एनसीआर समेत उसके आसपास के राज्यों में प्रदूषण के स्तर में भी इजाफा देखने को मिल रहा है। पंजाब और हरियाणा में किसानों द्वारा पराली जलाए जाने का सिलसिला जारी है। सरकार द्वारा तमाम प्रयासों के बावजूद किसान पराली जला रहे हैं। अब केंद्र सरकार ने पराली के मामले में पंजाब और हरियाणा सरकारों को आड़े हाथों लिया है। केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कहा कि पंजाब सरकार ने खेतों में पराली जलाने की घटनाएं रोकने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाए हैं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक पंजाब और हरियाणा सालाना लगभग 27 मिलियन टन धान की पुआल पैदा करते हैं। इनमें से लगभग 6.4 मिलियन टन का प्रबंधन नहीं किया जाता है। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के अनुसार, पंजाब में पिछले साल 15 सितंबर से 30 नवंबर के बीच 71,304 खेत में आग लगी थी और 2020 में इसी अवधि में 8,002 खेत में आग लगाई गई थी। फसलों के अवशेष के निपटारे के लिए उसको जलाना अनुचित और हानिप्रद है। किसान जब पराली जलाता है तो वह केवल हवा को ही प्रदूषित नहीं करता अपितु मिट्टी के उपजाऊपन को भी नुकसान पहुंचाता है। दिल्ली सरकार ने अपना विंटर एक्शन प्लान शुरू कर दिया है जिसके अंतर्गत
सबसे पहले किसानों के खेतों में पराली को गलाने के लिए डी-कंपोजर का इस्तेमाल किया जा रहा है ताकि पराली जलाने की जरुरत न पड़े। सरकार ने पिछले साल की तरह इस बार भी पराली गलाने के लिए खेतों में बायो डी-कंपोजर का निःशुल्क छिड़काव शुरू किया है। पिछले साल, दिल्ली के पीएम 2.5 प्रदूषण में पराली का हिस्सा सात नवंबर को 48 प्रतिशत तक पहुंच गया था।
पराली धान की फसल के कटने बाद बचा बाकी हिस्सा होता है जिसकी जड़ें धरती में होती हैं। किसान पकने के बाद फसल का ऊपरी हिस्सा काट लेते हैं क्योंकि वही काम का होता है बाकी अवशेष होते हैं जो किसान के लिए बेकार होते हैं। उन्हें अगली फसल बोने के लिए खेत खाली करने होते हैं तो सूखी पराली को आग लगा दी जाती है। बड़े पैमाने में खेतों में पराली को जलाने से धुएं से निकलने वाली कार्बन मोनो ऑक्साइड और कार्बन डाइऑक्साइड गैसों से ओजोन परत फट रही है इससे अल्ट्रावायलेट किरणें, जो स्किन के लिए घातक सिद्ध हो सकती है सीधे जमीन पर पहुंच जाती है। इसके धुएं से आंखों में जलन होती है। सांस लेने में दिक्कत हो रही है और फेफड़ों की बीमारियां हो सकती हैं। पराली के प्रदूषण के चलते देश की राजधानी की आबोहवा फिर से बिगड़ने लगी है। देश की राजधानी दिल्ली और एनसीआर को वायु प्रदूषण से फिलहाल कोई राहत नहीं मिल रही। राष्ट्रीय राजधानी में दो प्रकार का प्रदूषण है। एक अंदरूनी प्रदूषण है जो वाहनों, धूल आदि से पैदा होता है और दूसरा पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश जैसे पड़ोसी राज्यों में पराली जलाने के कारण होता है। दिल्ली में दम घोंटू जहरीली हवा हर साल तबाही मचाती है। प्रदूषण सिर्फ जान नहीं ले रहा है। सिर्फ सांसे नहीं छीन रहा है.बल्कि देश को खोखला भी कर रहा है. दावा है प्रदूषण की वजह से हर साल कई लाख करोड़ों का नुकसान होता है। साल 2019 में देश को 2.71 लाख करोड़ का नुकसान हुआ जबकि साल 2020 में 2 लाख करोड़ प्रदूषण की वजह से बर्बाद हो गए। एक शोध के अनुसार बिगड़ती हवा की गुणवत्ता और हवा में प्रदूषकों के बढ़ते स्तर से सांस की बीमारी और विकारों की संख्या और गंभीरता बढ़ जाती है। इसका सबसे अधिक बुरा असर बुजुर्ग और कमजोर या पहले से किसी बीमारी से जूझ रही युवा आबादी पर भी पड़ता है।

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