National health policy

नयी दिल्ली : स्वास्थ्य क्षेत्र की बात करें तो नयी राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति को मंजूरी इस साल की प्रमुख खबर रही और इसके साथ ही एमसीआई की जगह नयी इकाई बनाने के लिए पिछले दिनों राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग विधेयक, 2017 के मसौदे पर कैबिनेट की मुहर लगना भी महत्वपूर्ण कदम रहा। उधर कुछ निजी अस्पतालों के खिलाफ लापरवाही की शिकायतों की पृष्ठभूमि में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने राज्यों से क्लीनिकल इस्टेब्लिशमेंट अधिनियम को लागू करने का आग्रह किया ताकि अनियमितताओं पर लगाम कसी जा सके।

केंद्र सरकार ने इस साल मार्च में राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 को मंजूरी दे दी जिसमें सार्वजनिक स्वास्थ्य पर व्यय को बढ़ाने की बात कही गयी है। देश में अन्य विकसित देशों की तुलना में जीडीपी का स्वास्थ्य क्षेत्र में बहुत कम खर्च हमेशा से चिंता का विषय रहा है और इसे भी ध्यान में रखते हुए नयी नीति में समयबद्ध तरीके से जीडीपी का ढाई प्रतिशत स्वास्थ्य क्षेत्र में खर्च करने का प्रस्ताव है। इसके साथ ही यह नीति देश के सभी नागरिकों और खासतौर पर वंचित तथा कमजोरों को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं सुनिश्चित करने का उद्देश्य भी रखती है।

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जगत प्रकाश नड्डा ने नयी नीति को ‘मील का पत्थर’ करार दिया वहीं चिकित्सा क्षेत्र में कार्य करने वाले लोगों ने मिली जुली प्रतिक्रिया दी। विशेषज्ञों ने नीति को एक अच्छा कदम तो बताया लेकिन कुछ ने यह भी कहा कि अगर इसमें स्वास्थ्य को नागरिकों के बुनियादी अधिकार की तरह शामिल किया जाता तो और भी अच्छा होता। करीब डेढ़ दशक के बाद जारी हुई नयी नीति स्वास्थ्य क्षेत्र में मौजूदा और उभरती चुनौतियों पर ध्यान देगी। इसमें सभी आयुवर्ग के लोगों के लिए स्वास्थ्य और कुशलता के सर्वोच्च संभावित स्तर को हासिल करने का लक्ष्य भी रखा गया है।

इसी साल सरकार ने तपेदिक (टीबी) रोगियों के इलाज में बड़े बदलाव की घोषणा भी की। अक्तूबर महीने में संशोधित राष्ट्रीय क्षयरोग नियंत्रण कार्यक्रम (आरएनटीसीपी) के तहत सभी राज्यों में ‘रोजाना दवा’ वाली नयी व्यवस्था की शुरूआत की गयी। इस नीति के तहत रोगियों को तीन या चार दवाएं एक ही गोली में प्रतिदिन दी जाएंगी। पहले, सप्ताह में तीन बार दवा देने की प्रणाली थी। नयी दवा की खुराक रोगी के वजन के अनुरूप तय की जाएगी। एचआईवी और एड्स (रोकथाम और नियंत्रण) कानून, 2017 को भी इस वर्ष लागू किया गया जिसका उद्देश्य एड्स की भयानक समस्या को वर्ष 2030 तक समाप्त करना और एचआईवी ग्रस्त लोगों के जीवन के अधिकारों को सुरक्षित करना है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सार्वजनिक टीकाकरण कार्यक्रम के तहत मिशन इंद्रधनुष की शुरूआत की जिसका उद्देश्य देश के सभी बच्चों को जरूरी टीके लगाना सुनिश्चित करना है। सरकार ने वयस्क जापानी इन्सेफेलाइटिस, मीसल्स-रुबेला और न्यूमोकोकल टीकों की भी शुरूआत की। लोकसभा ने मार्च महीने में मानसिक स्वास्थ्य देखभाल विधेयक, 2016 को पारित किया था जिसे राज्यसभा पिछले वर्ष ही मंजूरी दे चुकी थी। इसमें मानसिक रोगों से ग्रस्त लोगों की स्वास्थ्य देखभाल को मजबूती प्रदान की गयी है और आत्महत्या को अपराध की श्रेणी से बाहर किया गया। वर्ष के अंत में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के कुछ निजी अस्पतालों में लापरवाही की शिकायतों और आरोपों के बाद सरकार द्वारा विभिन्न स्तर पर जांच के आदेश दिये गये और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री नड्डा ने राज्यों को क्लीनिकल संस्थापन कानून को लागू करने का आग्रह किया।

गुड़गांव के फोर्टिस अस्पताल में डेंगू से ग्रस्त एक बच्ची के इलाज के लिए अत्यधिक बिल वसूलने तो दिल्ली के मैक्स अस्पताल की एक शाखा में जीवित बच्चे को मृत घोषित करने के आरोपों की पृष्ठभूमि में नड्डा ने सभी राज्यों के स्वास्थ्य मंत्रियों को पत्र लिखकर अनुरोध किया कि वे या तो केंद्र द्वारा बनाये गये क्लीनिकल संस्थापन अधिनियम को आदर्श मानकर अपने राज्यों में लागू करें या अपने स्तर पर ऐसा कानून बनाकर इस तरह की अनियमितताओं पर रोक लगाएं। इसी साल भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) की महासचिव सौम्या विश्वनाथन को विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने अपना उप महानिदेशक नियुक्त किया। आईसीएमआर में कई अनुसंधान परियोजनाओं का नेतृत्व कर चुकीं सौम्या अब डब्ल्यूएचओ के लिए जिनेवा में पदस्थ रहेंगी।

आईसीएमआर के तहत आने वाले राष्ट्रीय कैंसर रोकथाम एवं अनुसंधान संस्थान (एनआईसीपीआर) ने एक ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किया जिसमें छोटे-छोटे स्थानों पर लोगों को कैंसर जैसी घातक बीमारी का पता लगाने के लिए स्क्रीनिंग की जानकारी दी जाती है। पूरे देश में कैंसर की जांच को सरल और सुगम बनाने तथा प्रारंभिक स्तर पर ही रोग का पता लगाकर इसके मामलों की संख्या कम करने में मदद करने के उद्देश्य से नोएडा स्थित एनआईसीपीआर ऐसे प्रशिक्षक तैयार कर रहा है जो स्तन कैंसर, गर्भाशय कैंसर और मुंह के कैंसर की शुरूआती पहचान कर सकते हैं तथा आगे और भी लोगों को इसका प्रशिक्षण दे सकते हैं।

एनआईसीपीआर द्वारा नवंबर महीने में आयोजित एक कार्यशाला में चबाने वाले तंबाकू (एसएलटी) से होने वाले स्वास्थ्य संबंधी खतरों पर चिंता जताते हुए देशभर के विशेषज्ञों ने पान मसाला और सुपारी के विज्ञापनों पर रोक लगाने की तथा तंबाकू उत्पादों की खुली बिक्री को प्रतिबंधित करने की सिफारिश की। वैज्ञानिकों का कहना है कि सुपारी और पान भी कैंसर के लिए जिम्मेदार हैं।

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