नई दिल्ली। एमसीडी चुनाव परिणामों ने यह साफ कर दिया कि अब दिल्लीवासी आप के न होकर मोदी के हो गए। सीएम अरविंद केजरीवाल ने विधानसभा चुनाव में जिस प्रचंड बहुमत के साथ जीत हासिल की थी। उनका वो जादू इस बार पूरी तरह खत्म हो गया। एमसीडी चुनाव परिणाम में वो इस बहुमत के इर्द-गिर्द भी नहीं फटक सके। ऐसे में अब यह स्थिति साफ हो गई कि पंजाब व गोवा के बाद दिल्ली में भी उनकी राजनीतिक जमीन सरक चुकी है। 70 सीटों वाली दिल्ली विधानसभा में 67 सीटें जीतने वाली आम आदमी पार्टी का इतना बुरा हश्र आखिर क्यों हुआ? क्यों उनके वोटों का प्रतिशत गिरा? ऐसे कई सवाल अब उठने लगे हैं। फिर भी देखें तो केवल ईवीएम को मुद्दा बनाए रखने, भ्रष्टाचार के मामलों में स्वयं ही घिरने सहित अनेक मामले ऐसे रहे जो आम आदमी पार्टी की छवि को नुकसान पहुंचाने वाले साबित हुए। कुछ ऐसे कारणों को टटोला तो आम आदमी पार्टी के इस पतन के कारण निकलकर सामने आए।

1. फटाफट आए और फटाफट जाने की तैयारी
आम आदमी पार्टी एक आंदोलन के रुप में देश के सामने आंधी की तरह आई। लेकिन पंजाब और गोवा के बाद अब एमसीडी में उसकी हार ने उसको फटाफट वाली राजनीति की श्रेणी में ला खड़ा किया है।

2.भारी पड़ गई अति महत्वाकांक्षा
आप सीएम अरविंद केजरीवाल की अति महत्वाकांक्षा ने उनको काफी आघात पहुंचाया। अभी दिल्ली में ठीक पैर पसारे भी नहीं थे कि संगठनों को फैला कर पीएम के सपने देख लिए। पंजाब और गोवा के बाद गुजरात की तैयारी की। लेकिन देश का मिजाज नहीं पकड़ सके। जिससे घर में ही बंटाधार हो गया।

3. निचले स्तर की राजनीति तक पहुंचे केजरीवाल
सीएम अरविंद केजरीवाल केवल ईवीएम और ईसी को निशाने पर लिए रहे। जबकि अन्य मुद्दों से भटक गए। केजरीवाल और पार्टी की रणनीति ने चुनावी राजनीति को निचले स्तर तक पहुंचा दिया। जिससे दिल्ली की जनता ने एमसीडी चुनाव में आईना दिखा दिया।

4. नारे के विपरीत निकले सीएम
दिल्ली विधानसभा चुनाव में आप का नारा 5 साल केजरीवाल था। लेकिन पार्टी को अन्य राज्यों में फैलाने के प्रयासों के बीच दिल्ली उनके हाथ से निकल गया। डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने जैसे ही केजरीवाल का नाम पंजाब सीएम के तौर पर उछाला तो दिल्ली की जनता ने खुद को ठगा सा महसूस किया। यही वजह रही कि उनको इस चुनाव में पटखनी दे दी।

5. वादे जो कभी नहीं हुए पूरे
केजरीवाल व उनकी पार्टी ने दिल्ली की जनता से सैकड़ों वादे किए। कई वादे ऐसे रहे जिन पर जनता की नजर थी, वे हाशिए पर ही रहे। जिससे पार्टी की नकारात्मक छवि बनी। राज्य सरकार ने काम नहीं होने का ठीकरा केन्द्र पर फोड़ा, लेकिन जनता बातों में नहीं आई।

6. जिस मुद्दे को लेकर आए, वो ही ले बैठा
भ्रष्टाचार के विरुद्ध संघर्ष कर आम आदमी पार्टी बनी व सत्ता में भी आई। लेकिन यह भ्रष्टाचार ही उन्हें ले डूबा। आप के मंत्री फर्जी डिग्री, सेक्स सीडी कांड में फंसे व जेल गए। वहीं शुंगलू कमेटी की रिपोर्ट सहित अन्य मुद्दों को देख जनता ने उन्हें दरकिनार किया।

7. भूल गए राजनीति में शुचिता
अरविंद केजरीवाल राजनीति में शुचिता की दुहाई तो देते रहे लेकिन पीएम मोदी पर व्यक्तिगत हमले किए। सीमा लांघी, पीएम पर आपत्तिजनक टिप्पणी भी की। हालांकि पीएम मोदी की छवि पर असर नहीं पड़ा, उल्टा केजरीवाल को ही भारी पड़ गया।

8. आप ने अपनों को भी नहीं छोड़ा
आंदोलन के समय से ही पार्टी अपने साथ रहे योगेंद्र यादव, प्रशांत भूषण और आनंद कुमार जैसे बड़े और साफ छवि के नेताओं को सत्ता में आते ही बाहर का रास्ता दिखा दिया। जिसका नकारात्मक असर देखने को मिला। लोकप्रिय चेहरे कुमार विश्वास ने पार्टी में होते हुए भी दूरी बना ली। हाल ही उन्होंने सरकार और केजरीवाल की आलोचना भी की।

9. जनता को धमकी देना पड़ा भारी
सीएम केजरीवाल ने आम जनता को धमकी देकर गलती ही कर दी। कहा आप को वोट नहीं दिया तो पांच साल कूडे व मच्छरों में रहोगे। इस पर जनता ने भाजपा को जीता कर ही उन्हें मजा चखा दिया।

10.केजरीवाल की प्रतिशोध की राजनीति
अरविंद केजरीवाल की शैली कभी सकारात्मक देखने को नहीं मिली। एमसीडी और राज्य सरकार के बीच टकराव ने तीन बार ऐसे हालात पैदा कर दिए कि कर्मचारियों को वेतन के लाले पड़ गए।

11. ले डूबा अहंकार
दिल्ली की जनता ने जब 67 सीटें आप पार्टी को दी तो केजरीवाल ने एकाधिकार समझ लिया गया। दिल्ली के उपराज्यपाल से टकराव लिया। वहीं उनकी बेतुकी बयानबाजी ने जनता की आंखें खोल दी। जनता ने बता दिया कि वो सिर माथे बिठाती है तो दूसरे पल जमीन भी दिखला देती है।

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