लखनऊ। पिछले कई महीनों से यूपी में जारी चुनावी समर अब थमने की ओर हैं। चुनाव प्रचार को लेकर जारी भारी जद्दोजहद और शोर-शराबा भी अब धीरे-धीरे शांत होने को है। इन सबके बीच अब सभी की नजरें आगामी 11 मार्च की तारीख पर जा टिकेंगी। जब मतपेटी से प्रत्याशियों के हार-जीत का फैसला होगा। वहीं फैसला भी हो जाएगा कि यूपी की जनता ने किसे सरकार बनाने का आशीर्वाद दिया। वैसे इन चुनावों में प्रचार के दौरान भाजपा, कांग्रेस, सपा, बसपा के नेताओं ने सामाजिक मुद्दों के साथ विकास, प्रदेश में सुरक्षा तंत्र सहित अन्य मुद्दों पर एक दूसरे को जमकर घेरा। भाजपा के पास यूपी में मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर कोई प्रभावी नेता उभरकर सामने नहीं आ सका। यही वजह रही कि खुद पीएम नरेन्द्र मोदी को चुनाव प्रचार की कमान अपने हाथों में थामनी पड़ी। जबकि सपा-कांग्रेस के साथ बसपा की स्थिति इस मामले साफ नजर आई। ऐसे अब एक सवाल उभरकर सामने आ रहा है कि भाजपा यदि सत्ता में आती है तो उसके पास ऐसा कौनसा चेहरा मुख्यमंत्री के तौर पर सामने आएगा, जो यूपी में सरकार को बेहतर तरीके से चला सकेगा। जनप्रहरी ने यूपी प्रदेश में सीएम की दावेदारी के तौर पर ऐसे कुछ चेहरों को खोजा। जो बहुमत मिलने की स्थिति में भाजपा की सरकार बनाने के साथ पीएम के सपनों को पूरा कर सकते हैं।
– राजनाथ और उमा भारती: वैसे तो संभावना यह जताई जा रही है कि यूपी में अगर भाजपा को बहुमत मिला तो किसी युवा चेहरे को ही सीएम के तौर पर सामने लाया जाएगा। फिर भी पार्टी अगर पुराने नेताओं पर विश्वास करती है तो इसमें केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह का नाम सबसे आगे है। वैसे वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों के अनुसार राजनाथ शायद ही यूपी की राजनीति में फिर से सक्रिय हो। वहीं पार्टी की युवा पीढ़ी उमा भारती को शायद ही स्वीकार कर पाएं।
– केशव प्रसाद मौर्य: भाजपा के युवा नेता के तौर पर पहचाने जाने वाले प्रदेशाध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य के नेतृत्व में ही पार्टी यूपी चुनाव लड़ रही है। वहीं राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह व अन्य बड़े नेता यूपी में सीएम के तौर पर स्वच्छ छवि वाले नेता को सामने लाने का वायदा जनता से कर चुके हैं। इस स्थिति में केशव प्रसाद मौर्य उनके सांचे में खरे उतरते हैं। केशव का पार्टी से जुड़ाव काफी पुराना होने के साथ संघ से भी नाता रहा है। वहीं भाजपा का ज्यादा ध्यान ओबीसी मतदाताओं पर रहा। इस लिहाज से केशव ओबीसी केटैगरी से आते हैं। इसी तरह गौर करने लायक बात तो यह कि इस बार चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा गैर-यादव ओबीसी और ईबीसी के तौर पर मैदान में कूदी। यह स्थिति भाजपा की पहले भी अपने स्वर्णिम काल में देखने को मिली थी। जब मुख्यमंत्री कल्याण सिंह हुआ करते थे और लोगों ने भाजपा को एकमात्र विकल्प के तौर पर देखा। ऐसे में केशव प्रसाद मौर्य की दावेदारी मजबूत होकर उभर सकती है।
– योगी आदित्यनाथ: यूपी में दबंग छवि और फायर ब्रांड नेता के तौर पर किसी का नाम आता है तो वह योगी आदित्य नाथ का। चुनाव से पहले आदित्यनाथ ने खुद को पूर्वांचल तक सीमित कर रखा था। लेकिन बाद में उन्होंने अपनी रणनीति बदली और वे यूपी के पश्चिमी इलाकों में भी पार्टी का प्रचार करने पहुंचें। साथ ही स्टार प्रचारक के तौर पर रैलियों में जमकर पसीना बहाया। अपने भाषणों में शैली को इस प्रकार रखा कि मतदाताओं का धु्रवीकरण हो सके। उनकी छवि को देखते हुए भाजपा यदि सत्ता में आई तो उनके नाम पर विचार किया जा सकता है।
– मनोज सिन्हा भी बन सकते हैं विकल्प: हर किसी को अपने निर्णय से चौंका देने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी यूपी सरकार बनने की स्थिति में सीएम की घोषणा भी चौंकाने वाली ही कर सकते हैं। कयास यह भी लगाए जा रहे हैं कि यूपी में सीएम पद के लिए मनोज सिन्हा चौंकाने वाले नाम हो सकते हैं। पीएम मोदी का फोकस इन दिनों पूर्वांचल पर रहा। ऐसे में मनोज सिन्हा पूर्वांचल से आते हैं और गृहमंत्री राजनाथ सिंह के बेहद करीबी भी है। बतौर रेल राज्यमंत्री मनोज सिन्हा के काम के मामले में पीएम उनकी तारीफों के पूल बांध चुके हैं
– दिनेश शर्मा: यूपी में इन दिनों चर्चा चल रही है कि भाजपा बहुमत में आई तो लखनऊ के मेयर दिनेश शर्मा सीएम के तौर पर सामने आ सकते हैं। इसके पीछे एक कारण यह भी है लोकसभा चुनावों के दौरान पार्टी के लिए उन्होंने पसीना बहाया तो सरकार बनने के साथ ही उन्हें राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया गया। अमित शाह की पसंद के चलते उन्हें गुजरात का पार्टी प्रभारी बना दिया गया। इससे पहले नवंबर 2014 में उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय सदस्यता प्रभारी का पद सौंपा गया। लोकसभा चुनावों में राजनाथ सिंह के लिए अपने पांव वापस खींच लिए थे।
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