बाल मुकुन्द ओझा
अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस 29 जुलाई को मनाया जाता है। अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस 2022 की थीम बाघों की आबादी को
पुनर्जीवित करने के लिए भारत ने प्रोजेक्ट टाइगर लॉन्च किया रखी गयी है। इस दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य
जंगली बाघों के निवास के संरक्षण और विस्तार को बढ़ावा देने के साथ बाघों के संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ाना है।
इनकी तेजी से कम हो रही संख्या को नियंत्रित करना बहुत जरूरी है, नहीं तो ये खत्म हो जाएंगे। सरकारी आंकड़ों के
अनुसार 2021 में कुल 127 बाघों की मौत हो गई। भारत 18 राज्यों में फैले 51 बाघ अभयारण्यों का घर है। हमारे देश
ने बाघ संरक्षण पर सेंट पीटर्सबर्ग घोषणा की अनुसूची से 4 साल पहले ही बाघों की आबादी को दोगुना करने का लक्ष्य
हासिल कर लिया है। विश्वभर में बाघों की कई तरह की प्रजातियां हैं। इनमें 6 प्रजातियां मुख्य हैं जिनमें साइबेरियन
बाघ, बंगाल बाघ, इंडोचाइनीज बाघ, मलायन बाघ, सुमात्रा बाघ तथा साउथ चाइना बाघ शामिल हैं। । भारत का
राष्ट्रीय पशु बाघ को कहा जाता है। बाघ देश की शक्ति और शान का प्रतीक है। ताकत, फुर्तीलापन और अपार शक्ति
के कारण बाघ को भारत के राष्ट्रीय जानवर के रूप में गौरवान्वित किया है। आंकड़ों के अनुसार, देश में बाघों की
संख्या लगभग तीन हजार तक पहुंच गई हैं। वर्ष 1915 में बाघों की कुल संख्या एक लाख थी। ‘ ेंवर्तमान में भारत में
कुल 50 टाइगर रिजर्व कोर और बफर क्षेत्र हैं। भारत में इस समय विश्व के लगभग 70 प्रतिशत से अधिक बाघ हैं।
2018 की गणना के तहत देश में बाघों की संख्या बढ़कर 2967 हो गई है। इसमें 2014 के मुकाबले 741 बाघों की
बढ़ोतरी हुई है। मध्य प्रदेश में बाघों की सबसे ज्यादा संख्या 526 पाई गई है जबकि कर्नाटक में 524 और उत्तराखंड में
442 बाघों की तादाद है। वन्य जीव कोष के अनुसार दुनिया में वर्तमान में 3890 जंगली बाघ बचे हैं जिनमें से 2967
बाघ अकेले भारत में हैं। भारत उन देशों में शामिल है, जिसमे बाघों की जनसख्या सबसे अधिक है। भारत में बाघों की
कम होती जा रही संख्या की जांच करने के लिए अप्रैल 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर (बाघ परियोजना) शुरू की गई है। अब
तक इस परियोजना के तहत 27 बाघ आरक्षित क्षेत्रों की स्थापना की गई है, जिनमें 37,761 वर्ग किलोमीटर एरिया
शामिल है। नेशनल पार्क्स में इन्हें आसानी से देख सकते है।
बंगाल टाइगर या पेंथेरा टिगरिस, प्रकृति की सबसे सुन्दर प्रजातियों में से एक है। यह बाघ परिवार की एक उप-
प्रजाति है और भारत, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, म्यांमार एवं दक्षिण तिब्बत के क्षेत्रों में पाई जाती है। इसके शौर्य,
सुंदरता और बलशाली रूप को देखते हुए बंगाल टाइगर को भारत के राष्ट्रीय पशु के सम्मान से भी नवाजा गया है।
अन्य जीवों की अपेक्षा बाघों की देखने और सुनने की शक्ति कहीं ज्यादा होती है।
बाघ के बारे में कई बाते प्रचलित है। बाघ अपने मजबूत पैरो की सहायता से बड़ी आसानी से अपने शिकार को पकड़
लेता है। बाघ के पैर इतने मजबूत होते हैं, कि वह मरने के बाद भी खड़ा रह सकता है। बाघ जब जन्म लेते है तो वह
अंधे होते हैं, बाघ अपने जन्म के एक सप्ताह तक देख नहीं सकते है। वहीं, आधे से ज्यादा बाघ युवास्था में ही मर जाते
हैं। बाघ करीब 5 मीटर तक की ऊंचाई कूद सकते है और वह 6 मीटर तक की चौड़ाई भी आराम से फांद सकते है। बाघ का वजन 300 किलो तक का होता है। वहीं, उनका दिमाग 300 ग्राम का होता है। बाघ शानदार तैराक होते हैं। वह 6 किलोमीटर तक की दूरी आराम से तैर सकते हैं। आज से करीब 100 साल पहले बाघ की 9 उपजाति पाई जाती थी।
पिछले 80 सालों में बाघों की तीन उप जातियां खत्म हो चुकी हैं और आज के समय में सिर्फ 6 प्रजातियाँ ही रह गई है।
बाघ काफी तेजी से दहाड़ते है। बंगाल टाइगर की दहाड़ रात के समय 2 किलोमीटर तक की दूरी पर भी आसानी से
सुनाई दे सकती है।
बढ़ती जनसंख्या और औद्योगीकरण के चलते बाघों की संख्या सबसे ज्यादा प्रभावित हुई है। इसका मुख्य कारण
रहा जंगलों की कटाई और इन क्षेत्रों में उद्योंगों का लगना। इस वजह से बाघों के लिए सुरक्षित रहना मुश्किल हो
गया। वहीं कई उद्योंगों में बाघों की खाल के इस्तेमाल के चलते बाघों के शिकार की घटनाओं में भी बढ़ोतरी हुई और
जंगल माफियाओं के चलते जंगलों से लगातार बाघों की संख्या घटती चली गई। एक आंकड़े के अनुसार पिछले 10
सालों में लगभग एक हजार से ज्यादा बाघों का शिकार उनकी खाल को बेचने के लिए किया गया है। भारत में पिछले 8
साल में शिकार और अन्य कारणों से 750 बाघ मारे गए हैं।