जयपुर। गेहूं , जौ, बाजरा, चना समेत दूसरे खाद्यान्नों (अनाज) को सुरक्षित रखने के लिए बनाए गए सरकारी गोदामों का नाम सुनते ही लोगों के जेहन में बारिश में भीगते, काले और फंफूद लगने से खराब हो चुके और सडांध मारते अनाज की तस्वीरें घूमते लगती है। अब भी लोगों की यहीं सोच है कि वहां अनाज सुरक्षित नहीं है। अनाज का एक बड़ा हिस्सा सरकार की लापरवाही से खराब हो जाता है, जो ना तो मनुष्य और ना ही जानवरों के खाने योग्य रह पाता है, जबकि देश की आधी से अधिक आबादी गरीबी रेखा के नीचे है और लाखों-करोड़ों परिवारों को भूखमरी और गरीबी के चलते दो जून की रोटी भी नसीब नहीं हो पाती है। आज भी देश के कई सरकारी गोदामों में ऐसी भयावह स्थिति के दृश्य कई बार मीडिया की सुर्खियों में छाए रहते हैं। सरकार और संबंधित खाद्य विभाग को काफी जिल्लत भी झेलनी पड़ती थी। लेकिन कुछ साल से सरकारी गोदामों की हालातों में सुधार हुआ है, जिससे अनाजों के खराब होने पर अंकुश लगा है और लोगों को ज्यादा अनाज मुहैया हो पा रहा है। आयात पर भी निर्भरता नहीं रही है।
तीन साल पहले तक देश के सरकारी गोदामों की स्थिति यह थी कि वहां लाखों टन अनाज यूं ही खराब हो जाता था, जो ना तो बांटा जा सकता था और ना ही जानवरों के खाने योग्य बच पाता था। कोटा के सांसद ओम बिरला के एक प्रश्न पर भारतीय खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय की ओर से दिए जवाब के मुताबिक वर्ष 2013-14 तक भारतीय खाद्य निगम के सरकारी गोदामों में करीब चौबीस करोड़ रुपए का अनाज खराब हो जाता था। इस अवधि में करीब 0.25 लाख टन अनाज पूरी तरह से खाने योग्य ही नहीं बचा। ना मनुष्य और ना ही जानवरों लायक। जबकि इसे सुरक्षित रखा जाता तो देश के करीब अस्सी लाख परिवारों को एक साल तक अनाज दिया जा सकता था। इससे पहले के वर्षों में भी यही स्थिति रही। अमूमन इतना अनाज हर साल खराबे में जा रहा था। इस खराबे के अफसरों में अनाज को खुर्द-बुर्द करने की प्रवृत्ति की भी काफी शिकायतें रहती थी। करीब दो साल पहले केन्द्र में आई सरकार ने इस तरफ ध्यान देना शुरु किया तो सरकारी गोदामों में खराबे की समस्या पर रोक लगी। तीन साल पहले चौबीस करोड रुपए का 0.25 लाख टन अनाज खराब हो गया था, वहीं इस साल यह समस्या घटकर मात्र 0.03 फीसदी रह गई है, जिसकी कीमत साढ़े तीन करोड रुपए है। वर्ष 2014-15 में 0.19 लाख टन अनाज खराब हुआ था। तीन साल में खराबे की प्रवृत्ति पर काफी हद तक रोक लग पाई है। यह सब संभव हो पाया है सरकार की नीतियों में सुधार से और गोदामों के लगातार निरीक्षणों से। साथ ही इस मामले में दोषी पाए गए अफसर-कर्मचारियों पर की गई कठोर दण्डात्मक कार्रवाईयों से।
पहले गोदामों की कमी के चलते खुले में ही काफी अनाज पड़ा रहता था। बारिश, गर्मी और सर्दी की मार से करीब दस से पन्द्रह फीसदी अनाज खराब हो जाता था। सरकार ने इस तरफ भी ध्यान देकर ना केवल गोदामों की संख्या बढ़ाकर भण्डारण की क्षमता बढ़ाई, बल्कि निजी क्षेत्र में गोदामों और वेयर हाऊसों को भी प्रोत्साहन देकर गोदामों में रखे अनाजों के खराबे होने की प्रवृत्ति पर अंकुश लगाया गया है। इससे गरीब और जरुरतमंद परिवार तक अनाज पहुंच पा रहा है। साथ ही खराबे के बहाने हो रहे सरकारी गोदामों में चल रहे भ्रष्टाचार के खेल पर भी रोक लगी है।
निरीक्षण का खौफ काम आया
सांसद ओम बिरला के मुताबिक सरकारी गोदामों में अनाज के खराबे पर अंकुश लगाने के लिए सरकार ने कड़े कदम उठाए। भारतीय खाद्य मंत्रालय और भारतीय खाद्य निगम के सतर्कता दस्तों ने आकस्मिक निरीक्षण करके अनाजों को सुरक्षित रखा जाना सुनिश्चित किया, वहीं इस कार्य में कोताही बरतने वाले अफसर-कर्मचारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई का डंडा भी खूब चलाया। जिसके चलते अनाजों के खराबे होने की समस्या पर काबू पाया जा सका है। वर्ष 2013-14 में देश के सरकारी गोदामों में 767 निरीक्षण हुए थे, जो 2014-15 में निरीक्षण का आंकडा 954 और 2015-16 में 1096 तक पहुंच गया। इसके अलावा भारतीय खाद्य निगम ने भी समय-सयम पर औचक निरीक्षण करके गोदामों की हालात सुधारी।

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