-बाल मुकुन्द ओझा
संयुक्त राष्ट्र की विभिन्न एजेंसियों का कहना है कि तीव्र कुपोषण का सामना कर रहे देश और दुनिया के 15 देशों के पांच वर्ष से कम उम्र के तीन करोड़ से अधिक बच्चों की तुरंत सार संभाल और सुरक्षा के उपाय नहीं किये गए तो बच्चों के विकास और उनके अस्तित्व के लिए गंभीर खतरा उत्पन्न हो सकता है। एजेंसियों का कहना है कि संघर्ष, जलवायु परिवर्तन, कोरोना महामारी के प्रभावों और जीवनयापन की बढ़ती लागतों ने समस्या को विकराल बनाया है। कुपोषण से सर्वाधिक प्रभावित देश हैं, अफगानिस्तान, बुर्किना फासो, चाड, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो, इथियोपिया, हैती, केन्या मडागास्कर, माली, नाइजर, नाइजीरिया, सोमालिया, दक्षिण सूडान, सूडान और यमन। संयुक्त राष्ट्र की मानें तो एक वक्त का खाना नहीं मिल पाने या भोजन में 50 फीसदी से कम पौष्टिक तत्व होने की स्थित को कुपोषण माना जाता है। रिपोर्ट में पेश आंकड़े के अनुसार दुनिया के मुकाबले भारत में कुपोषण की स्थिति में हल्का सुधार दर्ज किया गया है। भारत में 15 साल पहले 21.6 फीसदी आबादी कुपोषण का शिकार थी। अब यह आंकड़ा घटकर 16.3 फीसदी आबादी तक सिमट गया है। कोरोना महामारी और प्रतिबंधों से डगमगाई अर्थव्यवस्था के बावजूद भारत में इसे सकारात्मक संकेत के तौर पर देखा जा सकता है। भारत सरकार ने दावा किया है कि कोरोना और रूस-यूक्रेन युद्ध के असर के बावजूद दुनिया के बाकी देशों के मुकाबले भारत की अर्थव्यवस्था सही दिशा में तेजी से बढ़ रही है।
आजादी के 75 वर्ष बाद भी देश को भूख और कुपोषण जैसी समस्याओं से छुटकारा नहीं मिल पाया है। बच्चे, महिलाएं और वंचित समाज के लोग इन समस्याओं का सबसे अधिक सामना कर रहे हैं। एक तरफ हम खाद्यान्न के मामले में न केवल आत्मनिर्भर हैं, बल्कि अनाज का एक बड़ा हिस्सा निर्यात करते हैं। वहीं दूसरी ओर दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी कुपोषित आबादी भारत में है। देश और दुनिया में अभी भी करोड़ो लोग भुखमरी के शिकार है। चाहे विकासशील देश हो या विकसित देश हो। भुखमरी की समस्या पूरा विश्व झेल रहा है। कोरोना महामारी की गिनती भी इसी संकट से की जा
सकती है जब लाखों लोग बेरोजगार होकर रोजी रोटी के लिए दर दर भटक रहे है। भारत सहित दुनिया के अनेक देशों ने संकट में अपने जरुरतमंद देशवासियों की मदद के लिए हाथ बँटाये है मगर यह नाकाफी है। गौरतलब है विश्व खाद्य कार्यक्रम ने अपने जीवन रक्षक कार्यों के लिए 2020 का नोबेल शांति पुरस्कार जीता है। कोरोना संकट के कारण लाखों पुरुष, महिला और बच्चे भुखमरी का सामना कर रहे हैं। दुनियां से जब तक अमीरी और गरीबी की खाई नहीं मिटेगी तब तक भूख के खिलाफ संघर्ष यूँ ही जारी रहेगा। चाहे जितना चेतना और जागरूकता के गीत गालों कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है। अब तो यह मानने वालों की तादाद कम नहीं है कि जब तक धरती और आसमान रहेगा तब तक आदमजात अमीरी और गरीबी नामक दो वर्गों में बंटा रहेगा। शोषक और शोषित की परिभाषा समय के साथ बदलती रहेगी मगर भूख और गरीबी का तांडव कायम रहेगा। अमीरी और गरीबी का अंतर कम जरूर हो सकता है मगर इसके लिए हमें अपनी मानसिकता बदलनी पड़ेगी। प्रत्येक संपन्न देश और व्यक्ति को संकल्पबद्धता के साथ गरीब की रोजी और रोटी का माकूल प्रबंध करना होगा।
एक तरफ देश में भुखमरी है वहीं हर साल सरकार की लापरवाही से लाखों टन अनाज बारिश की भेंट चढ़ रहा है। हर साल गेहूं सड़ने से करीब 450 करोड़ रूपए का नुकसान होता है। भारत में गरीबी उन्मूलन और खाद्य सहायता कार्यक्रमों पर करोड़ों रुपये खर्च किए जाने के बावजूद कुपोषण लगातार एक बड़ी समस्या बनी हुई है। भूख के कारण कमजोरी के शिकार बच्चों में बीमारियों से ग्रस्त होने का खतरा लगातार बना रहता है। आज भारत विश्व भुखमरी सूचकांक में बेहद लज्जाजनक सोपान पर खड़ा है तो इसके पीछे भ्रष्टाचार, योजनाओं के क्रियान्वयन में खामियां और गरीबों के प्रति राज्यतंत्र की संवेदनहीनता जैसे कारण ही प्रमुख है। गरीबी भूख और कुपोषण से लड़ाई तब तक नहीं जीती जा सकती है, जब तक कि इसके अभियान की निरंतर निगरानी नहीं की जाएगी।

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