बाल मुकुन्द ओझा
बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सियासी रूप से कमजोर होते ही लालू यादव के परिवार ने बिहार की सत्ता पर एक बार फिर अपना कब्जा जरूर जमा लिया मगर जमीन के बदले रेलवे की नौकरी के मामले में गिरफ़्तारी की तलवार लटक गई है। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के परिवार के खिलाफ एक बार केंद्रीय जाँच एजेंसियां मुखर हो गई है। पटना, मुंबई और रांची में 24 स्थानों पर ईडी ने उनके बेटे, बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव और उनकी बेटियों से जुड़े परिसरों में छापेमारी की। छापेमारी के एक दिन बाद जमीन के बदले रेलवे की नौकरी की जांच में ईडी ने दावा किया है कि उसने 600 करोड़ रुपये के अपराध की आय का खुलासा करने वाले दस्तावेजों को जब्त कर लिया है। एजेंसी के अनुसार, दस्तावेज 350 करोड़ रुपये की अचल संपत्तियों के स्वामित्व और विभिन्न बेनामीदारों के माध्यम से किए गए 250 करोड़ रुपये के लेनदेन से संबंधित हैं। ईडी के अनुसार दिल्ली के न्यू फ्रेंड्स कालोनी स्थित घर घोटाले की रकम से महज में चार लाख रुपये में खरीदी गई थी, जिसका बाजार मूल्य 150 करोड़ रुपये है। तेजस्वी यादव इसे दिल्ली में अपने आवास के रूप में इस्तेमाल करते हैं और शुक्रवार को छापे दौरान इस मकान में उनकी मौजूदगी से यह साबित भी हो गया। जबकि इसे एबी एक्पो‌र्ट्स प्राइवेट लिमिटेड और एके इंफोसिस्टम्स प्राइवेट लिमिटेड के कार्यालय के रूप में
दिखाया गया है। लालू सहित उनकी पार्टी और सहयोगी दलों ने इस छापामारी का विरोध करते हुए भाजपा के खिलाफ कई आरोप लगाए है। लालू की पार्टी राजद ने आरोप लगाया है राजनीतिक प्रतिशोध में नौ वर्षों बाद प्राथमिकी दर्ज की गई, जबकि सीबीआइ को इस मामले में कोई साक्ष्य नहीं मिला था। बताया जाता है नीतीश की पार्टी ने भाजपा के साथ गठजोड़ के ज़माने में आज के सहयोगी लालू के खिलाफ भरष्टाचार की अनेक शिकायतें दर्ज़ कराई थी जिनमें रेल मंत्री रहने दौरान जमीन के बदले रेलवे की नौकरी का मामला भी शामिल था। खुद नीतीश ने लालू पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे और कहा था वे भ्रष्टाचार से किसी हालत में समझौता नहीं कर सकते। और आज वे उसी लालू परिवार के साथ दमखम के साथ खड़े है। इसी के साथ देश और प्रदेश की सियासत गरमा गयी है।
लालू ने पूर्व की तरह फिर खुद के पाक साफ़ होने का दावा किया है। मगर उनके विरोधियों का कहना है इसे कहते है चोरी और सीनाजोरी। लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने 1974 में भ्रष्टाचार के खिलाफ बिहार में सिंहनाद किया था। लालू ने जेपी के एक सेनानी के रूप में इस आंदोलन में अपनी सक्रीय भागीदारी दी थी और आज भ्रष्टाचार रूपी इसी अज़गर ने लालू और उनके परिवार को निगल लिया है। जेपी के आंदोलन से निकले लालू यादव को बहुचर्चित चारा घोटाले के पांच मामले में हुई सजा ने भ्रष्टाचार के इतिहास में एक नई इबारत लिख दी। राजद सुप्रीमो लालू यादव को चारा घोटाले से जुड़े पांच मामलों कुल साढ़े 32 साल की सजा सुनाई जा चुकी है। वे फिलहाल जमानत पर है। लालू की चार्जशीट पूर्व प्रधानमंत्री देवगौड़ा के समय हुई थी तो पहली सजा मनमोहन सिंह की सरकार के समय हुई। फिर भी फंसा दिए जाने का राग अलापा जा रहा है। गौरतलब बिहार का सबसे बड़ा भ्रष्टाचार चारा घोटाला था जिसमें पशुओं को खिलाये जाने वाले
चारे के नाम पर 950 करोड़ रुपये सरकारी खजाने से फर्जीवाड़ा करके निकाल लिये गये। केंद्र सरकार गरीब आदिवासियों को अपनी योजना के तहत गाय, भैंस, मुर्गी और बकरी पालन के लिए आर्थिक मदद मुहैया करा रही थी। इस दौरान मवेशी के चारे के लिए भी पैसे आते थे। लेकिन गरीबों के गुजर-बसर और पशुपालन में मदद के लिए केंद्र सरकार की तरफ से आए पैसे का गबन कर लिया गया था । 1996 में चारा घोटाले का मामला बाहर निकला 1996 में बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव थे । लालू के मुख्यमंत्री रहते ही चारा घोटाला सामने आया। आश्चर्य इस बात का है जन धन पर डाका डालने वालों को अपने किये पर कोई पछतावा नहीं है। लगातार जेल की हवा खाने वाले ये नेता जातीय राजनीति के बड़े पुरोधा है। गरीब गुरबों का हक डकारने के बावजूद इसी वर्ग की सियासत में जुटे है। वे खुलेआम इसे राजनीति से जोड़कर अपने पाप के लिए दूसरों को जिम्मेदार ठहरा रहे है। अब एक बार फिर केंद्रीय जाँच दलों की
राडार पर लालू परिवार का भ्रष्टाचार है जिसमें जेल जाने की तलवार लटकी हुई है।

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