नई दिल्ली। भारतीय ज्यूडिशरी के इतिहास में यह पहला अवसर सामने आया है। जब सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के किसी सीटिंग जज को अवमानना के मामले में जरिए जमानती वारंटी तलब किया है। सुप्रीम कोर्ट ने कोलकाता हाईकोर्ट के जस्टिस सीएस कर्णन को न्यायालय की अवमानना के तहत 10 हजार रुपए के जमानती वारंट से तलब किया। दरअसल जस्टिस कर्णन ने 20 मौजूदा और सेवानिवृत्त जजों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से उनके खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी। बाद में पत्र लिखकर यह जानना चाहा कि उनके द्वारा जो आरोप लगाए गए उस मामले में क्या कार्रवाई हुई। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने मामले में संज्ञान ले लिया। 8 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की बेंच ने कर्णन के खिलाफ अवमानना नोटिस जारी कर उन्हें 13 फरवरी को कोर्ट में उपस्थित होने के निर्देश दिए। कोर्ट ने अपने आदेशों के तहत उनके ज्यूडिशरी और एडमिनिस्ट्रेटिव कार्यों पर रोक भी लगा दी। मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर की अध्यक्षता में जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस जे.चेलामेश्वर, जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एमबी लोकूर, जस्टिस पीसी घोष और जस्टिस कुरियन जोसेफ ने कर्णन को कारण बताओ नोटिस जारी कर कहा कि क्यों न उनके खिलाफ अवमानना कार्रवाई शुरू की जाए। लेकिन जस्टिस कर्णन कोर्ट में उपस्थित नहीं हुए। उनकी जगह उनका वकील कोर्ट पहुंचा, लिहाजा कोर्ट ने सुनवाई सुनवाई तीन हफ्ते टालकर अगली सुनवाई 10 मार्च तय कर दी। जस्टिस कर्णन ने सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार को पत्र लिखा कि हाईकोर्ट के सीटिंग जज के खिलाफ इस तरह से अवमानना नोटिस की कार्रवाई नहीं की जा सकती। वहीं पत्र में आरोप लगाया कि दलित होने के कारण उन्हें प्रताडि़त होना पड़ रहा है। ऐसे मामले को संसद को रैफर किया जाना चाहिए। शुक्रवार को सुनवाई की तारिख होने के बाद भी 7 जजों की बेंच के समक्ष जस्टिस कर्णन उपस्थित नहीं हुए तो बेंच ने उनके खिलाफ जमानती वारंट जारी कर दिया। साथ ही 31 मार्च को उपस्थित होने के निर्देश दिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जमानती वारंट पश्चिम बंगाल के डीजीपी तामिल कराएं।
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