Raphael-Aircraft

-डॉ आलोक भारद्वाज
jaipur. आजकल हमारे देश में राफेल फाइटर प्लेन को लेकर बहुत ज्यादा ही चर्चा हो रही है क्योंकि हमारे देश की जनता को इसके बारे में अधिक जानकारी नहीं है तो वह साधारण रुप से इस खींचतान को देख रही है।
हालांकि मैं भी कोई रक्षा विशेषज्ञ या इस महत्वपूर्ण विषय का इतना बड़ा विद्वान नहीं हूं , लेकिन फिर भी मेरे अपने ज्ञान और तार्किक क्षमता के आधार पर इस राफेल विवाद का एक विश्लेषणात्मक अवलोकन प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहा हूं और उम्मीद रखता हूं कि आप सभी देशवासियों की कुछ आशंका का समाधान इस आलेख को पढने के बाद अवश्य हो पाएगा।
अगर गहन अध्ययन और अनुसंधान करेंगे तो आप पाएंगे कि इस राफेल फाइटर प्लेन के बारे में बहुत सोच विचार और चिंतन के पश्चात तत्कालीन सरकार इस निष्कर्ष पर पहुंची थी कि हमारी वायुसेना की जरूरतों को पूरा करने वाला यह राफेल फाइटर प्लेन हमें खरीदना चाहिए यह सब सन 2012 तक की बातें हैं।

अब देश के एक समर्पित नागरिक होने के नाते इस विषय में मेरे लिए और आप सभी के लिए विचारणीय बिंदु यह है कि केवल निष्कर्ष निकालने के उपरांत पूर्ववर्ती सरकार ने आगे कुछ भी नहीं किया था , ना तो कोई सौदा ही हुआ, और ना ही किसी समझौता पत्र पर हस्ताक्षर का कोई आदान प्रदान किया गया , और बात केवल यही आकर रूक गई कि तत्कालीन सरकार को लगा था कि भारत की वायुसेना को मजबूत बनाने के लिए राफेल फाइटर प्लेन खरीदना तो चाहिए।
एक बात और आप सभी के ध्यान में लाना चाहता हूं कि उस समय के तत्कालीन रक्षा मंत्री श्री ए के एंटोनी अपनी ईमानदारी के प्रति बहुत ज्यादा सजग़ रहने का केवल प्रदर्शन करते थे ,और हुआ यह कि एंटोनी जी ने तय किया की हथियारों की खरीद में भ्रष्टाचार तो मैं रोक नहीं सकता इसलिए हथियारों की खरीद से कन्नी काट लेना ही ज्यादा उचित है। तत्कालीन रक्षा मंत्री की इसी सोच या कहें सनक के कारण हमारी वायुसेना को उसकी जरूरतों के हथियार नहीं मिल पाए और सेना लगातार हथियारों की कमी से जूझती रही।
स्वतंत्रता के इतने वर्षो पश्चात भी आज तक हम अपनी जरुरतों के अधिकतर हथियारों का निर्माण करने में सक्षम नहीं हो पाए हैं और उनका आयात विभिन्न देशों से करते रहे हैं। इसी के तहत वर्तमान सरकार ने देश की सुरक्षा के मद्देनजर सेना की जरूरतों को वरीयता देते हुए हथियारों की खरीददारी करने का निर्णय लिया और कई देशों से कई प्रकार के हथियार खरीद के समझौते शीघ्रता से किये।
समझौतों की इसी कड़ी में एक है राफेल समझौता ।

यह भारत का हर नागरिक जानता है कि देश की रक्षा हेतु आवश्यक हथियार किसी सब्जीमंडी जैसी जगह पर नहीं मिलते हैं बल्कि उनकी खरीददारी एक बेहद तकनीकी लंबी और क्लिष्ट प्रक्रिया के पश्चात होती है।
राफेल डील पर राहुल गांधी और उनके अनुयायियों का कहना है कि राफेल फाइटर विमानों की खरीद में एक बहुत बड़ा घोटाला हुआ है।ीी
राहुल गांधी कहते हैं कि इस तथाकथित घोटाले में प्रधानमंत्री जी शामिल हैं क्योंकि यह समझौता उनकी सहमति और पूर्ण जानकारी से हुआ है लेकिन अगर हम देखें तो पाएंगे कि हकीकत यह है क्योंकि वर्तमान सरकार के समय में कोई बड़ा घोटाला नहीं हुआ है इसलिए विपक्षियों के लिए और कुछ बचा नहीं है तो अनर्गल हो-हल्ला करके ही अपनी उपस्थिति दर्ज कराने का प्रयास कर रहे है।
जितना मेरा ज्ञान है और दैनिक अध्ययन करने की प्रवृत्ति है उस के आधार पर मैं यह कह सकता हूं कि राफेल डील किसी भी रुप में घोटाला नहीं है, ऐसा कहने के मेरे पास निम्न कारण हैं।

1. किसी भी देश के लिए हथियारों की खरीद एक लंबी चलने वाली प्रक्रिया होती है और एक दीर्घावधि में पूर्ण होती है इसलिए इसमें हमेशा अवमूल्यन के कारक को भी शामिल किया जाता है, यदि किसी हथियार का सौदा हम आज करते हैं तो इस डील का पहला हथियार हमें चार से पांच साल के बाद मिलता है और अंतिम हथियार क़रीब 7 से 8 साल के पश्चात मिलता है। इसी कारण से एक ही समझोते में मिलने वाले पहले और अंतिम हथियार की कीमत में भी एक बड़ा अंतर स्वाभाविक होता है।
इसका यह मतलब कदापि नहीं कि कोई घोटाला हो गया।
हम देशवासियों को यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि अव्वल तो यूपीऐ सरकार के समय में राफेल खरीद का कोई समझौता हुआ ही नहीं था और डील की बात केवल विचार विमर्श तक ही सीमित रही थी। इसलिए आज राहुल गांधी का यह कहना अनर्गल है कि हमने राफेल का सौदा इतने में किया उतने में किया।

2. अब हमारे मस्तिष्क में यह प्रश्न आता है कि क्या वर्तमान सरकार ने महंगा सौदा किया है? इस बारे में बडबोले लोग अपने-अपने दावे कर रहे हैं परंतु किसी भी रक्षा विशेषज्ञ ने ऐसा नहीं कहा है कि सरकार ने यह महंगा सौदा किया है या फिर इसमें कोई घोटाला हुआ है इस कारण से यह बौखलाहट वास्तविकता कम और एक राजनैतिक शोर शराबा ही अधिक नज़र आती है।

3. अगला प्रश्न यह हो सकता है कि सरकार राफेल विमानों की कीमत बताने से परहेज क्यों कर रही है?
यह हम सभी जानते हैं कि हथियारों की खरीद में एक विश्वव्यापी प्रचलन है कि अधिकांश हथियार समझौतों में कीमत सहित बहुत सारी बातें गोपनीय रखी जाती है।
विक्रेता देश कभी कभी एक ही हथियार अलग-अलग देशों को अलग-अलग दामों में बेचते हैं और अपने मुनाफे के कारण से वो नहीं चाहते हैं कि कीमतों का खुलासा हो।
दूसरी तरफ क्रेता देश के नजरिए से हम देखें तो पाएंगे कि यदि क्रेता देश अपने नए खरीदे हथियार की कीमत का खुलासा करता है तो उसका दुश्मन देश कीमत के आधार पर उस हथियार में लगाई गई या शामिल शस्त्र प्रणाली की जानकारी हासिल कर लेता है, इसी के चलते पूर्ववर्ती सरकार के दौरान रक्षा मंत्री एक एंटनी जी ने ही सौदे को गुप्त रखे जाने पर हस्ताक्षर किए थे ,आज कीमतों की जानकारी को सार्वजनिक करने का आग्रह किसी देशद्रोह से कम नहीं कहा जा सकता है।

4. अब प्रश्न यह भी हो सकता है कि क्या कोई घोटाला हुआ है इसमें? तो इसके जवाब में मेरा सोचना है कि इसके लिए अभी हमें प्रतीक्षा करनी चाहिए, 2जी घोटाला या कोयला घोटाला जनता की नजर में तभी आ पाये जब CAG ने उन पर प्रश्न उठाए किसी भी सौदे को ऑडिट करने की CAG की एक निर्धारित प्रक्रिया होती है उसी के आधार पर यह फैसला होता है कि कोई घोटाला हुआ या नहीं । कई बार ऐसा भी होता है कि यदि प्रक्रिया को पूरा करने में कोई कमी रह गई तो CAG उस पर अपनी अस्वीकृति दर्ज करा देते हैं जबकि वह कोई घोटाला नहीं होता है बस एक प्रक्रियागत कमी होती है और कई बार 2 जी जैसे बड़े घोटाले होते हैं, कई बार हमें किसी घोटाले की भनक तब लगती है जब विक्रेता देश की कोई एजेंसी या मीडिया वहां पर उस सौदे के किसी घोटाले को उजागर करता है जैसा बोफोर्स तोप घोटाले में हुआ ।
अभी तक राफेल के विषय में ना तो फ्रांस की किसी एजेंसी ने कोई घोटाला उजागर किया है और ना ही हमारे देश की किसी CAG जैसी संवैधानिक संस्था ने । अतः यह कहा जा सकता है कि कॉन्ग्रेस और राहुल गांधी की राफेल से संबंधित यह बौखलाहट से भरी बयानबाजियां अभी सिर्फ बेसिरपैर की ही है़।

5. विद्वानों के दिमाग में यह बात भी आ सकती हे कि यदि घोटाला हुआ है तो फिर जल्दी से जल्दी उजागर कैसे हो?
हमें याद है की स्पैक्ट्रम घोटाला और कोल घोटाला दोनों ही CAG ने उजागर किए थे तब तत्कालीन विपक्ष उस विषय को निरंतर संसद में उठाता रहा लेकिन सरकार के कानों पर जूं नहीं रेंगी तो वे माननीय उच्चतम न्यायालय में गयेऔर वहां से आदेश आने पर जांच हुई और घोटाला सामने आया । इसी प्रकार यदि राहुल गांधी और कॉन्ग्रेस यह मानते हैं कि कोई घोटाला हुआ है और सरकार उनकी बात नहीं सुन रही है तो उनको माननीय उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाना चाहिए यदि माननीय न्यायालय असंतुष्ट होगा तो जांच के आदेश देगा और सब कुछ सामने आ जाएगा।
अभी तक कि राहुल गांधी और कॉन्ग्रेस के शोर शराबे से यही लगता है कि वे भली-भांति यह जानते हैं कि राफेल सौदे में कोई घोटाला नहीं हुआ है सौदे की शर्तों के अनुरुप जो यूपीऐ सरकार के द्वारा ही निर्धारित हो चुकी थी, वर्तमान सरकार राफेल की कीमतों को उजागर नहीं कर सकती है और इसी बात का फायदा लेकर राहुल गांधी और कांग्रेस वर्तमान की ईमानदार और जनहित हेतु समर्पित सरकार पर घोटाले का झूठा आरोप लगाकर राजनैतिक लाभ लेने का प्रयास कर रहे हैं । ऐसा हो पाने की संभावनाएं नगण्य है वर्तमान सरकार के विगत रिकॉर्ड को देखते हुए जोकि बहुत साफ सुथरा है देशवासी कॉन्ग्रेस की बात से कभी सहमत नहीं होंगे।

dr.Alok Bharadwaj
dr.Alok Bharadwaj
dr.Alok Bharadwaj ये लेखक के अपने विचार है.

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