BJP's cabinet minister gets tough, Congress lags behind

लखनऊ. गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा सीटों के उपचुनाव परिणामों ने कम से कम उत्तर प्रदेश में आगामी लोकसभा चुनाव के लिये भाजपा विरोधी गठबंधन की सम्भावनाओं को मजबूती दे दी है और इससे राष्ट्रीय फलक पर विपक्ष की एकजुटता के प्रयासों को बल मिल सकता है।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के राज्य विधान परिषद के लिये चुने जाने के बाद उनके इस्तीफे के कारण रिक्त हुई क्रमशः गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा सीटों के उपचुनाव में भाजपा की पराजय का संदेश बहुत दूरगामी माना जा रहा है। राजनीतिक लिहाज से देश के सबसे संवेदनशील राज्य उत्तर प्रदेश में हुआ यह घटनाक्रम विपक्षी दलों को एकजुट करने की कवायद के बीच खासा महत्वपूर्ण है।

हालांकि राजस्थान, मध्य प्रदेश और बिहार में हुए उपचुनावों के नतीजे भी भाजपा के पक्ष में नहीं रहे थे, लेकिन उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा के बीच तालमेल की वजह से उपचुनाव नतीजों को व्यापक और अलहदा तौर पर देखा जा रहा है। गोविंद वल्लभ पंत सामाजिक विज्ञान संस्थान के प्रोफेसर बद्री नारायण के मुताबिक गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उपचुनाव के नतीजे इसलिये भी महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि इन्होंने आगामी लोकसभा चुनाव में विपक्षी दलों के गठबंधन की सम्भावनाओं को बहुत मजबूती दे दी है। उन्होंने कहा कि हालांकि मायावती अगले लोकसभा चुनाव में गठबंधन के लिये क्या शर्तें रखती हैं और वे दूसरे दलों को कितनी मान्य होती हैं, सब कुछ इस पर निर्भर करेगा मगर इतना जरूर है कि गोरखपुर और फूलपुर सीटों के उपचुनावों में विपक्ष की जीत ने दूरगामी संदेश दिया है। महत्वपूर्ण यह है कि सपा और बसपा का तालमेल सफल साबित हुआ है और बसपा के ‘कोर वोटर’ का सपा के पक्ष में मुड़ना इन दोनों की सबसे बड़ी कामयाबी मानी जाएगी।

सपा के राष्ट्रीय सचिव राजेन्द्र चौधरी के मुताबिक गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उपचुनाव के नतीजों ने गठबंधन की सम्भावनाओं के लिये नया नजरिया पेश किया है। हालांकि अभी लोकसभा चुनाव में समय है लेकिन इन उपचुनाव परिणामों से हम निश्चित रूप से उत्साहित हैं।

बहरहाल, सपा और बसपा ने गोरखपुर और फूलपुर उपचुनाव के लिये किसी तरह के गठबंधन का एलान नहीं किया था, मगर बसपा अध्यक्ष मायावती ने यह कहकर इस तालमेल का इशारा दे दिया था कि जो भी उम्मीदवार भाजपा को हराने की स्थिति में होगा, बसपा के मतदाता उसे वोट दे देंगे।जानकारों के मुताबिक बसपा को साथ लाना सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की बड़ी कामयाबी मानी जा सकती है। महत्वपूर्ण यह नहीं है कि सपा ने बसपा से तालमेल के साथ गोरखपुर और फूलपुर उपचुनाव जीत लिये, बल्कि अहम यह है कि अगर बाकायदा गठबंधन हो गया तो आगामी लोकसभा चुनाव में क्या फर्क पड़ेगा।

उत्तर प्रदेश की राजनीति मुख्य रूप से जातीय समीकरणों के इर्द गिर्द ही घूमती रही है। पिछले विधानसभा चुनाव में भी सपा और बसपा का कुल वोट प्रतिशत 44 के आसपास था। अगर ये दोनों मिल गये तो उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव के नतीजों पर निर्णायक असर पड़ सकता है। बहरहाल, लोकसभा चुनाव में अभी करीब एक साल का समय बाकी है और सियासत में कल क्या होगा, कोई नहीं कह सकता, लेकिन गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा के उपचुनाव के नतीजों ने भाजपा विरोधी गठबंधन के लिये अहम संदेश जरूर दे दिया है।

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