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जयपुर। अमृत योजना के 8 टेंडरों में हुए 150 करोड़ के घोटाले पर पूरा जलदाय विभाग 15 दिन से चुप्पी साधे बैठा है। जनप्रहरी एक्सप्रेस द्वारा 150 करोड़ के घोटाले का पदार्फाश कर संस्थागत भ्रष्टाचार की पोल खोलने के बाद जलदाय विभाग के सारे भ्रष्ट अधिकारी और इंजीनियर्स खुद को बचाने में जुट गए हैं। मजेदार बात तो यह है कि विभाग की स्टेण्डिंग नेगोसिएशन कमेटी और फायनेंस कमेटी ने अमृत के 20 प्रतिशत ऊंची दरों के टेंडरों को जस्टीफाई तो कर दिया, लेकिन इन जस्टीफिकेशन ने दोनों ही कमेटियों को सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया है। फायनेंस कमेटी जलदाय विभाग की सबसे बड़ी कमेटी होती है, जिसकी अध्यक्षता विभाग के प्रमुश शासन सचिव करते हैं। फायनेंस कमेटी की बैठकों में अमृत के टेंडरों को 20 प्रतिशत ऊंची दरों से उठे सवालों के बाद विभाग के प्रमुख शासन सचिव रजत कुमार मिश्र के समझ नहीं आ रहा कि इस मामले से कैसे छुटकारा पाया जाए। फायनेंस कमेटी विभाग की सर्वोच्च कमेटी होती है और उनकी अध्यक्षता में ही अमृत टेंडरों की 20 प्रतिशत ऊंची दरें देने का निर्णय हुआ है। फायनेंस कमेटी के निर्णयों की जांच विभाग की और कोई कमेटी कर नहीं सकती और बाहर की किसी एजेंसी को जांच दे तो उनके खुदके फंसने का भी खतरा बढ़ जाता है। ऐसे में विभाग के प्रमुख शासन सचिव रजत कुमार मिश्र ने पूरे मामले पर चुप्पी साध ली है। लेकिन अब सवाल उठता है कि अतिरिक्त मुख्य अभियंता कार्यालय जयपुर-द्वितीय के टेंडरों में पूलिंग और ऊंची दरों का मामला सामने आया था तो प्रमुख शासन सचिव रजत कुमार मिश्र ने तत्काल कार्रवाई करते हुए टेंडरों को न केवल फाइल कर दिया था, बल्कि टेंडरों में डीडी जमा नहीं कराने वाले ठेकेदारों पर कार्रवाई के भी निर्देश दिए थे, लेकिन अमृत के 8 टेंडरों में 150 करोड़ के घोटाले का पूरा सच सामने आने के बाद भी प्रमुख शासन सचिव रजत कुमार मिश्र द्वारा मामले में कोई कार्रवाई नहीं करना उनकी कार्यशैली पर बड़े सवाल खड़ा कर रहा है। अमृत के 8 टेंडरों में उन्हें अभी तक भी घोटाला नजर क्यों नहीं आया, जबकि जनप्रहरी एक्सप्रेस ने घोटाले की एक-एक परत खोलकर सामने रख दी है। अमृत के 8 टेंडरों में हर पन्ने पर घोटाले के सारे सबूत साफ-साफ नजर आ रहे हैं, लेकिन विभाग के प्रमुख शासन सचिव को ये घोटाले के सबूत नजर क्यों नहीं आ रहे हैं। अमृत के इन 8 टेंडरों में लिप्त विभाग के अधिकारियों और इंजीनियर्स को आखिर प्रमुख शासन सचिव रजत कुमार मिश्र क्यों बचा रहे हैं।

जांच सीबीआई-एसीबी से क्यों नहंी ?
जलदाय विभाग में अमृत योजना के 8 टेंडरों में 20 प्रतिशत ऊंची दरें देकर ठेका कंपनियां मैसर्स लाहौटी बिल्डकॉन जयपुर, मैसर्स देवेन्द्र कंस्ट्रक्शन जोधपुर, मैसर्स एस.बी.एंटरप्राईजेज जोधपुर, मैसर्स दारा कंस्ट्रक्शन जोधपुर, मैसर्स भूरत्नम-यादव कंस्ट्रक्शन जयपुर और मैसर्स यूनिप्रो टेक्नो इन्फ्रा चंडीगढ़ कंपनी को 150 करोड़ का फायदा पहुंचाने वाले टेंडरों को लेकर जलदाय विभाग की इतनी फजीहत और बदनामी होने के बाद भी जलदाय विभाग की ओर से मामले में कोई कार्रवाई नहीं करने से पूरे विभाग की कार्यशैली पर सवाल उठ रहे हैं। जलदाय विभाग प्रमुख शासन सचिव रजत कुमार मिश्र इस पूरे मामले में कोई कार्रवाई नहंीं कर पा रहे हैं, और उनकी कोई मिलीभगत नहीं है तो फिर इन 8 टेंडरों में गबन को लेकर पुलिस या एसीबी में मामला क्यों नहीं दर्ज करवाया जा रहा है। पूरे मामले की स्वतंत्र एजेंसी से जांच होगी तो दूध का दूध और पानी का पानी सामने आ जाएगा।

फायनेंस कमेटी पर पहली बार उठे सवाल
जलदाय विभाग में अमृत योजना के 8 टेंडरों में हुआ 150 करोड़ का घोटाला भले ही जलदाय विभाग के लिप्त अधिकारियों और इंजीनियर्स को नजर नहीं आ रहा है, लेकिन जनप्रहरी एक्सप्रेस के खुलासे के बाद पूरे जलदाय विभाग में अमृत योजना का यह घोटाला चर्चा का विषय बना हुआ है। विभाग में पहली बार अमृत टेंडरों की 20 प्रतिशत ऊंची दरों को लेकर फायनेंस कमेटी पर पहली बार सवाल उठे हैं। विभाग अधिकारियों और इंजीनियर्स की मिलीभगत हो या फिर प्रमुख शासन सचिव रजत कुमार मिश्र को गुमराह करके ठेका फर्मों को अमृत के 8 टेंडरों में ऊंची दरें देने का निर्णय फायनेंस कमेटी में करवाया गया है। ऐसे में सवालों के घेरे में फायनेंस कमेटी और प्रमुख शासन सचिव रजत कुमार मिश्र भी खड़े हो गए हैं। जलदाय विभाग अधिकारियों और फायनेंस कमेटी को अमृत के 8 टेंडरों में घोटाला नजर नहीं आ रहा है, तो जनप्रहरी एक्सप्रेस का पूरे जलदाय विभाग को खुला चैलेंज है कि हम करेंगे इन 8 टेंडरों में हुए घोटाले का पदार्फाश।

छोटी गड़बड़ियों पर कार्रवाई बड़े घोटालों पर मौन
जलदाय विभाग और भ्रष्टाचार दोनों का चोली-दामन का साथ है। जलदाय विभाग की हर योजना में कमीशनखोरी और भ्रष्टाचार का खेल खुलेआम चल रहा है, लेकिन विभाग के अधिकारी और इंजीनियर्स ने इन सब पर पर्दा डाल रखा है। मीडिया या शिकायतों के माध्यम से कभी इन गबन-घोटालों का पदार्फाश हो जाता है, तो विभाग के आलाधिकारी छोटे-मोटे मामलों में तो कार्रवाई कर देते हैं, लेकिन बड़े मामलों में कार्रवाई करने की बजाए मैनेज हो जाते हैं। जयपुर जिले के टेंडरों में मिलीभगत और भ्रष्टाचार के मामले सामने आए तो विभाग के आलाधिकारियों ने तत्काल मामलों में कार्रवाई की, लेकिन अमृत में 150 करोड़ का घोटाला उजागर होने के बाद भी अभी तक मामले में कोई कार्रवाई नहंीं हुई। अधिकारियों से लेकर प्रमुख शासन सचिव तक सब पूरे मामले पर मौन बैठे हैं। आखिर जलदाय विभाग में ही ऐसा क्यों होता है कि छोटे मामलों में तत्काल कार्रवाई हो जाती है और बड़े मामलों को दबाने में सारे अधिकारी और इंजीनियर्स एकजुट हो जाते हैं।

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