Movies in rare language made movie lovers mesmerized in KIFF

कोलकाता। शतरूपा सान्याल की ह्यतन्याबी लेकह्ण में चकमा की लड़की की असफल प्रेम कहानी हो या अहसन मजीद की मोनपा भाषा की फिल्म ह्यसोनमह्ण में संबंधों की जटिल गाथा, ये दुर्लभ भाषायी फिल्में नि:संदेह 23वें कोलकाता अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (केआईएफएफ) में लोगों का मन मोह रही हैं। केआईएफएफ सेमिनार समिति की अध्यक्ष रत्नोत्तमा सेनगुप्ता ने पीटीआई-भाषा से कहा कि अल्पसंख्यकों की भाषाओं में बनी ये फिल्में उन परंपराओं और संस्कृतियों की बानगी पेश करती हैं।

सेनगुप्ता ने कहा, दुर्लभ भाषाओं की फिल्में सबसे पहले वर्ष 2015 में प्रदर्शित हुई थीं। बेहद कम लोकप्रिय इन भाषाओं का अगर प्रचार- प्रसार नहीं हुआ तो एक समय बाद ये विलुप्त हो जायेंगी और इसके साथ इन भाषाओं में बनी कविताएं, गीत एवं फिल्में भी गुमनामी में खो जायेंगी। इस साल महोत्सव के ह्यअनहर्ड इंडिया : रेयर इंडियन लैंग्वेजेजह्ण वर्ग में कम से कम आठ भाषाओं या बोलियों – मोनपा, कोंकणी, कोडावा, बोडो, डोगरी, मैथिली, खासी और चकमा – में फिल्में प्रदर्शित की गयी हैं, जिन्होंने लोगों का मन मोह लिया है। केआईएफएफ में प्रतिनिधि एवं एक टेलीकॉम एमएनसी के कर्मचारी देबमित दत्ता ने कहा, मुझे खुशी है कि दुर्लभ भाषाओं की ऐसी कुछ फिल्में यहां केआईएफएफ में दिखायी गयीं, जो आम तौर पर फिल्म संग्रह या इंटरनेट पर भी उपलब्ध नहीं हो पाती हैं। दुर्लभ भाषाओं की ये फिल्में उस समाज के बारे में हैं जिनसे हम अनजान होते हैं।

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