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जयपुर। राज्यपाल एवं कुलाधिपति कलराज मिश्र ने कहा है कि संस्कृत भारतीयों की प्राणभूत भाशा है। इसमें मनन, िंचंतन, गवेशण और अनूभूति समन्वित है। उन्होंने कहा कि संस्कृत को आज के परिवेश के अनुरूप रोजगारपरक बनाया जाये।

राज्यपाल मिश्र सोमवार को यहां मदाऊ गांव में स्थित जगदगुरू रामानन्दाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय के तृतीय दीक्षांत समारोह को सम्बोधित कर रहे थे। राज्यपाल श्री मिश्र ने समारोह में श्री करण सिंह, देवर्शि कला नाथ शास्त्री और श्री अनुराग कृष्ण पाठक को विद्यावाचस्पति की मानद उपाधि प्रदान की। राज्यपाल श्री मिश्र ने छात्र – छात्राओं को स्वर्ण पदक और उपाधियां प्रदान की । राज्यपाल ने समारोह में उपस्थित जनों को संविधान की प्रस्तावना और मूल कत्र्तव्यों का वाचन करवाया।

राज्यपाल ने कहा कि संस्कृत के पावन एवं लोककल्याण के सन्देश को लोकहित में उपयोग करें। संस्कृत में निहित ज्ञान एवं विज्ञान से राष्ट्र को समृद्ध बनायें। छात्र – छात्राओं की वाणी मधुर बने, वे तेजस्वी हो तथा जीवन का कठिन मार्ग भीे सरल एवं सहज बनने का राज्यपाल ने आशीर्वाद दिया।
राज्यपाल ने कहा कि यह विश्वविद्यालय एक गुरुकुल जैसा है। इसके निर्माण की पृष्ठ भूमि में पद्मश्री नारायणदासजी महाराज की सुन्दर परिकल्पनाएं हैं। यह संस्थान संस्कृत के क्षेत्र में प्राचीन भारत के तक्षशिला एवं नालन्दा विश्वविद्यालय जैसी ख्याति प्राप्त करे। राज्यपाल ने इन भावनाओं की क्रियान्विति के लिए सभी को समभाव से विश्वविद्यालय के लिए सदैव प्रयत्नशील बने रहने के लिए कहा।

समारोह में संस्कृत शिक्षा राज्यमंत्री डॉ. सुभाष गर्ग ने कहा कि राजस्थान में संस्कृत के विस्तार के प्रयास देश में अग्रणी रहे है। सभी को मिलकर संस्कृत को लोकप्रिय बनाना होगा। उन्होंने कहा कि संस्कृत विश्वविद्यालय की स्थापना का उद्देश्य संस्कृत, वेद – विज्ञान, योगा और आयुर्वेद को प्रोत्साहित करना है। इस अवसर पर संस्कृत शिक्षा सचिव श्रीमती मंजू राजपाल श्री मौजूद थी।
विश्वविद्यालय की कुलपति डॉ. अनुला मौर्य ने स्वागत किया। रजिस्ट्रार श्रीमती ज्योति भारद्वाज ने आभार ज्ञापित किया।

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