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jaipur. संस्कृत पढ़े बिना कोई सच्चा भारतीय नहीं बन सकता और न ही सच्चा विद्वान। पर दुर्भाग्य है कि संस्कृत बोलने वाले लोगों की संख्या तेजी से गिर रही है। जिस अमर भाषा संस्कृत से भारत की पहचान है, वह पिछड़ क्यों रही है? यह सवाल गुरुवार को जगद्गुरु रामानंदाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय के स्थापना दिवस समारोह में वरिष्ठ पत्रकार और संपादक डॉ. राकेश गोस्वामी ने कही। उन्होंने कहा कि संस्कृत भारतीय संस्कृति का मूल है। आज भारतीय अंग्रेजी बोलने में जो गर्व महसूस करते हैं वह संस्कृत बोलने में नहीं करते। जरूरी है के सरकार और समाज मिलकर संस्कृत भाषा और संस्कृत शिक्षण संस्थानों को आगे बढ़ाना चाहिए।

कुलपति डॉ. अनुला मौर्य ने देश की एकता और अखण्डता को बनाए रखने के लिए संस्कृत की जरूरत बताई। संस्कृत का बचना, भारत का बचे रहना है। उन्होंने घोषणा की कि एक वर्ष बाद विश्वविद्यालय का 20वां स्थापना दिवस बड़े स्तर पर मनाया जाएगा। संत श्रीनारायणदासजी महाराज की स्मृति में व्याख्यान आयोजित होंगे और संस्कृत भाषा में कार्य करने वाले विशिष्ट विद्वानों को विश्वविद्यालय सम्मानित करेगा। कुलसचिव डॉ. सुभाष शर्मा ने कहा कि संस्कृत एक संस्कृति है, प्रतीक है जो भारत और भारतीयों की आत्मा है।

कार्यक्रम का संयोजन डॉ. शंभुकुमार झा और संचालन शास्त्री कोसलेंद्रदास ने किया। कार्यक्रम के आरंभ में डॉ. देवेंद्रकुमार शर्मा और डॉ. उमेश नेपाल ने मंगलाचरण प्रस्तुत किया।

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