Supreme Court

नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय के चार सर्वाधिक वरिष्ठ न्यायाधीशों ने प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा को जो पत्र लिखा था, उसमें बिना किसी तर्क के तरजीह वाली पीठ को चयनात्मक तरीके से मामले को आवंटित करने के बारे में सवाल उठाने के लिये आर पी लूथरा बनाम भारत सरकार के मामले का उल्लेख किया गया है। उस मामले में मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर का उल्लेख किया गया है। उच्चतम न्यायालय के चार सर्वाधिक वरिष्ठ न्यायाधीशों–न्यायमूर्ति जे चेलमेश्वर, न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर और न्यायमूर्ति कुरियन जोसफ–द्वारा लिखे गए पत्र में कहा गया है, ‘

‘सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन एवं अन्य बनाम भारत सरकार :(2016) 5 एससीसी 1: के अनुसार जब एमओपी पर इस अदालत की संविधान पीठ को फैसला सुनाना था तो यह समझना मुश्किल है कि कैसे कोई अन्य पीठ इस विषय पर सुनवाई कर सकती है।’ गत वर्ष 27 अक्तूबर को शीर्ष अदालत की दो न्यायाधीशों की पीठ ने उच्चतर न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिये मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर :एमओपी: को अंतिम रूप देने में विलंब के मुद्दे का न्यायिक पक्ष की तरफ से परीक्षण करने पर सहमति जता दी थी और अटॉर्नी जनरल से जवाब मांगा था।

पीठ ने कहा था, ‘‘हमें प्रार्थना पर विचार करने की जरूरत है कि व्यापक जनहित में एमओपी को अंतिम रूप देने में और विलंब नहीं होना चाहिये। यद्यपि इस अदालत ने एमओपी को अंतिम रूप देने के लिये कोई समयसीमा नहीं तय की है, लेकिन इसे अनिश्चिकाल के लिये नहीं खींचा जा सकता है।’’ आर पी लूथरा खुद वकील हैं। वह खुद इस मामले में पेश हुए थे और एमओपी के अभाव में उन्होंने उच्चतर न्यायपालिका में नियुक्तियों को चुनौती दी थी। राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग :एनजेएसी: मामले में फैसले के मद्देनजर एमओपी को अंतिम रूप दिया जाना था।

यह पत्र तकरीबन दो महीने पहले चारों न्यायाधीशों ने प्रधान न्यायाधीश को लिखा था, लेकिन उसे आज मीडिया को जारी किया गया। उसमें सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एवं अन्य बनाम भारत सरकार :एनजेएसी मामला: में संविधान पीठ के फैसले का भी उल्लेख है जिसमें केंद्र से सीजेआई के साथ विचार-विमर्श करके नया एमओपी तैयार करने को कहा गया था। एनजेएसी मामले में बहुमत के फैसले से असहमति जताते हुए न्यायमूर्ति चेलमेश्वर ने कहा था कि न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिये कॉलेजियम प्रणाली ‘अपारदर्शी’ है और ‘पारदर्शिता’ की जरूरत है। न्यायमूर्ति चेलमेश्वर एनजेएसी मामले में पांच सदस्यीय संविधान पीठ का हिस्सा थे।

आर पी लूथरा मामला हालांकि बाद में प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष गत आठ नवंबर को सूचीबद्ध किया गया था। उसने एमओपी को अंतिम रूप देने में विलंब के मुद्दे का परीक्षण करने के दो न्यायाधीशों की पीठ के 27 अक्तूबर के आदेश को वापस ले लिया था।

तीन न्यायाधीशों की पीठ ने तब कहा था, ‘‘इन मुद्दों पर न्यायिक पक्ष विचार नहीं कर सकता है क्योंकि एनजेएसी मामले में संविधान पीठ ने पहले ही कानून तय किया है।’’ चार न्यायाधीशों ने अपने पत्र में कहा, ‘‘एमओपी के बारे में किसी भी मुद्दे पर चर्चा मुख्य न्यायाधीशों के सम्मेलन में होनी चाहिये और पूर्ण अदालत द्वारा होनी चाहिये। इतने महत्वपूर्ण मामले पर अगर न्यायिक पक्ष को विचार करना है तो इसपर संविधान पीठ के अलावा किसी और को विचार नहीं करना चाहिये।’’ चारों न्यायाधीशों ने इस घटनाक्रम को ‘गंभीर चिंता’ के साथ देखा जाना चाहिये।

पत्र में कहा गया था, ‘‘माननीय प्रधान न्यायाधीश हालात में सुधार करने के लिये कर्तव्य से बंधे हैं और कॉलेजियम के अन्य सदस्यों के साथ पूर्ण चर्चा और जरूरत पड़ने पर बाद में इस अदालत के अन्य माननीय न्यायाधीशों के साथ चर्चा के बाद उचित उपचारात्मक कदम उठाएं।’’ चारों न्यायाधीशों ने पत्र में प्रधान न्यायाधीश से यह भी कहा था, ‘‘ एकबार जब आप आर पी लूथरा बनाम भारत सरकार मामले में 27 अक्तूबर 2017 के आदेश से पैदा हुए मुद्दे का पर्याप्त निराकरण कर देते हैं और अगर यह उतना जरूरी हो जाता है तो हम इस अदालत द्वारा दिये गए अन्य न्यायिक आदेशों से विशेष रूप से आपको अवगत कराएंगे। उनसे भी उसी तरह से निपटने की जरूरत होगी।’’

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