-अयोध्या का फैसला जजों ने सर्वसम्मति से लिया था
नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा है कि अयोध्या केस का फैसला जजों ने सर्वसम्मति से लिया था। उन्होंने कहा अयोध्या में संघर्ष के लंबे इतिहास और विविध पहलुओं को ध्यान में रखते हुए ही इस केस से जुड़े सभी जजों ने फैसले पर एक राय बनाई। सीजेआई ने एक इंटरव्यू में सेम सेक्स मैरिज पर दिए फैसले को लेकर भी बात की। सीजेआई ने बताया कि फैसले के बाद जो भी नतीजे आए, उन पर कोई पछतावा नहीं है। वे उस फैसले की खूबियों पर टिप्पणी नहीं करेंगे, जिसमें समलैंगिक विवाह को कानूनी दर्जा देने से इनकार कर दिया गया था। ज्यूडीशियरी: भरोसा बढ़े, इसलिए कई बदलाव किए सीजेआई ने कहा कि हमने पिछले साल कुछ नए इनीशिएटिव लिए हैं। इन्हें इंडियन ज्यूडीशियरी में लोगों की बढ़ी हुई पहुंच और ट्रांसपेरेंसी बनाए रखने के लिए डिजाइन किया गया है। इनमें कॉन्स्टिट्यूशनल बेंच में होने वाले मामलों की सुनवाई की लाइव स्ट्रीमिंग शामिल है।
समलैंगिकों ने अपने अधिकारों को हासिल करने के लिए लंबी और कठिन लड़ाई लड़ी। सेम सेक्स मैरिज को वैध बनाने से इनकार करने वाले 5 जजों की कॉन्स्टिट्यूशनल बेंच के फैसले के बारे में सीजेआई ने कहा कि किसी मामले का नतीजा कभी भी जज के लिए निजी नहीं होता है। चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ बोले हमारी ट्रेनिंग हमें एक बात सिखाती है कि एक बार जब आप किसी मामले में फैसला सुना देते हैं, तो आप खुद को उससे दूर कर लेना है। एक जज के तौर पर, हमारे लिए फैसले कभी भी व्यक्तिगत नहीं होते। मैं कई मामलों में बहुमत, तो कई मामलों में अल्पमत में रहा, लेकिन मुझे कभी इसका पछतावा नहीं होता। एक जज के जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा कभी भी खुद को किसी मुद्दे से नहीं जोड़ना होता है। मामले का फैसला करने के बाद, मैं इसे हमारे समाज के भविष्य पर छोड़ता हूं कि वह कौन सा रास्ता अपनाएगा। गौरतलब है कि 17 अक्टूबर 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से इनकार कर दिया था, लेकिन समलैंगिकों के लिए समान अधिकारों और उनकी सुरक्षा को मान्यता दी थी।
अनुच्छेद 370 पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले और इसकी आलोचना पर उन्होंने कहा जज अपने फैसले के जरिए अपने मन की बात कहते हैं जो फैसले के बाद सार्वजनिक संपत्ति बन जाती है। एक स्वतंत्र समाज में लोग हमेशा इसके बारे में अपनी राय बना सकते हैं। जहां तक हमारा सवाल है तो हम संविधान और कानून के मुताबिक फैसला करते हैं। मुझे नहीं लगता कि मेरे लिए आलोचना का जवाब देना या अपने फैसले का बचाव करना उचित होगा। हमने अपने फैसले में जो कहा है वह हस्ताक्षरित फैसले में मौजूद कारण में प्रतिबिंबित होता है और मुझे इसे वहीं छोड़ देना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट में केस की लिस्टिंग को लेकर होने वाली बेंच हंटिंग के आरोप पर भी उन्होंने अपनी बात रखी। सीजेआई ने कहा जजों को मामलों का आवंटन वकीलों से ऑपरेट नहीं हो सकता। मैं इस बारे में बिल्कुल स्पष्ट हूं कि सुप्रीम कोर्ट संस्था की विश्वसनीयता बरकरार रखी गई है।

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