Question marks on handwriting of handbags, power quality control, central development schemes of Rs. 3000

जयपुर। राजस्थान का ऊर्जा विभाग और तीनों बिजली निगम की कंपनियां भगवान भरोसे है। इनके गलत फैसलेए नीतियों और लापरवाह भरे कार्यों के चलते बिजली कंपनियां तो भारी घाटे में हैए वहीं जनता को भी इनके दुष्परिणाम भुगतने पड़ रहे हैं। घाटे की पूर्ति के लिए महंगी दरों पर जनता को बिजली बिल दिए जा रहे हैं। बिजली भी पूरे समय नहीं मिल रही है। अभी कुछ दिनों से तो पूरे राजस्थान की जनता को बिजली संकट झेलना पड़ रहा हैए वो भी दिवाली जैसे पर्व पर। बिजली संकट के पीछे तर्क देकर गुमराह किया जा रहा है कि कोयला नहीं मिल पा रहा हैए जिसके चलते प्रदेश की कुछ बिजली प्लांट बंद हो गए हैं। यह अभी से समस्या नहीं हैए हर साल या कहे दो-तीन साल में इस तरह के बिजली संकट सामने आते हैंए लेकिन डिस्कॉम के होनहार अफसर और अभियंता इसे या तो समझते नहीं या समझ कर भी अंजान बने हुए हैं। इस जाने-अंजाने में खेल शुरू होता है मनमानी दरों पर बिजली खरीद का। बहाना बनाया जाता है कि जनता को बिजली देने के लिए महंगी दरों पर बिजली खरीदी जा रही है। महंगी बिजली खरीदने के बाद भी ना तो जनता और ना ही उद्योगों को राहत है। किसान तो बिजली से जूझता ही रहता है। होना यह चाहिए कि बिजली प्लांटों के लिए कोयले की कमी नहीं आने चाहिएए ना ही प्लांट बंद होने चाहिए। क्यों नहीं डिस्कॉम पहले से कोयले का कोटा नहीं रखता है क्यों नहीं प्लांट के सुचारु संचालन की प्रोग्रामिंग और प्लानिंंग हो पाती है। क्यों प्रदेश को महंगी बिजली खरीद की तरफ धकेला जाता है। जब प्रदेश में देश के नामी-गिरानी कंपनियों के बड़े-बड़े बिजली प्रोजेक्ट यहां है तो फिर कैसे बिजली संकट खड़ा हो रहा हो और क्यों महंगी बिजली खरीद हो रही है। कहीं इन सबके पीछे डिस्कॉम अफसरों और बिजली कंपनियों की मिलीभगत का तो खेल नहीं है। इन कारगुजारियों के चलते राजस्थान की बिजली कंपनियों के बारे में प्रदेश की जनता की धारणा बनती जा रही है कि ये कंपनियां जनता की हमदर्द होनी चाहिए, लेकिन ये सिरदर्द बनती जा रही है। यह सब बिजली कंपनियों के लापरवाह अफसरों और अभियंताओं के कारण हो रहा है। इन्हीं के चलते बिजली कंपनियां घाटे में है। उपकरणों की खरीद और कार्यों में भ्रष्टाचार है। कंपनियों में क्वालिटी कंट्रोल नाम की कोई चीज नहीं है और ना ही राजस्थान सरकार और केन्द्र सरकार की जनहितकारी बिजली योजनाओं को मूर्तरूप देने के लिए ईमानदार व अनुभवी अफसरों की सेवाएं ली जा रही है। जयपुर डिस्कॉम की क्वालिटी कंट्रोल विंग और टेण्डर कार्यों को करने वाली टीडब्ल्यू विंग दागी अफसरों के हाथ में है। इन दोनों विंग में ऐसे कुछ बड़े अफसर व अभियंता नियुक्त है, जिन पर भ्रष्टाचार के आरोप लग चुके हैं। इन पर बिजली कार्यों में अनियमितताओं जैसे गंभीर आरोप लग चुके हैं और एसीबी में ट्रेप भी हो चुके हैं। ऐसे दागी अफसरों के जिम्मे केन्द्र और राज्य सरकार की अरबों रुपए की योजनाएं हैं। इससे इन योजनाओं पर सवालिया निशान तो लग सकते हैं और भ्रष्टाचार के मामले भी सामने आ सकते हैं।

तीन हजार करोड़ रु के बिजली प्रोजेक्ट संदेह के दायरे में….
जयपुर डिस्कॉम की क्वालिटी कंट्रोल विंग ऐसे अभियंताओं के हवाले है, जिन पर भ्रष्टाचार, बिजली कार्यों में अनियमितता और बड़े हादसे के आरोप लग चुके हैं और चार्जशीट भी मिल चुकी है। जयपुर डिस्कॉम के पास केन्द्र सरकार की तीन हजार करोड़ रुपए से अधिक योजनाएं संचालित हैए जिसमें आरएपीडीआरपी, आइपीडीएस, दीनदयाल, सीएलआरसी योजनाएं होनी है। राजस्थान सरकार के भी सैकड़ों करोड़ रुपए के कार्य होने हैं। इनके टेण्डर भी हो चुके हैं। राजस्थान के लिए महत्वपूर्ण ये योजनाएं तभी अच्छी तरह से क्रियान्विति हो सकती हैए जब डिस्कॉम की क्वालिटी कंट्रोल और टीडब्लयू विंग कार्यों की क्वालिटी पर नजर रख सके और इस विंग में अनुभवी व ईमानदार अफसर हो। सरकार की मंशा तो ठीक है कि इतने बड़े प्रोजेक्ट राजस्थान को मिल, लेकिन जयपुर डिस्कॉम विंग में कई ऐसे अभियंता तैनात हैए जिनकी कार्यशैली इन प्रोजेक्ट कार्यों पर प्रश्नचिन्ह लगा सकती है। इन कार्यों की गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है। भ्रष्टाचार के मामले सामने आ सकते हैं। क्योंकि पूर्व में भी इन पर इस तरह के आरोप लग चुके हैं। चार्जशीट थमाई जा चुकी है और एसीबी जांच में ट्रेप भी हो चुके हैं। ऐसे अभियंताओं की देखरेख में अरबों रुपए के कार्य होंगे तो अंदेशा जताया है कि इन प्रोजेक्ट में भारी घालमेल या गड़बड़ी हो सकती है। जो अभियंताओं को लगाया है, जो ऊर्जा विभाग और डिस्कॉम के आला अफसरों के कहे अनुसार चलते हैं। जो साहब कह दे, वे ही करते हैं और उसी लीक पर चलते हैं। ऐसे में पूरे डिस्कॉम और ऊर्जा विभाग में चर्चा है कि अगर इन दागी और लापरवाह अभियंताओं पर लगाम नहीं लगी या उन्हें नहीं हटाया गया तो केन्द्र सरकार के ये प्रोजेक्ट भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ सकते हैं। अभी डिस्कॉम में कई फैसले ऐसे किए हैं, जिन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे। स्पॉट बिलिंग ठेके में धांधली का मामला राजस्थान हाईकोर्ट में पहुंच चुका है। कोर्ट डिस्कॉम के एक आला अफसर को तलब करके फटकार भी लगा चुकी है। एक कंपनी को कथित फायदा देने के आरोप लगे हैं। आरएपीडीआपी योजना के कार्यों में गड़बड़ी की शिकायतों पर एसीबी डिस्कॉम से फाइलें मांग चुकी है। जिन पर अनुसंधान चल रहा है। इसी तरह महंगी बिजली खरीद, ट्रांसफॉर्मर व अन्य उपकरणों की खरीद में भी धांधली की साक्ष्य मीडिया में उजागर होती रही है। ऐसे में क्वालिटी कंट्रोल विंग के अधीन तीन हजार करोड़ रुपए के प्रोजेक्ट गुणवत्ता के साथ हो पाएंगे, उस पर संदेह जताया जा रहा है। ऐसे अफसरों को प्रोत्साहान और आगे बढ़ाने को लेकर डिस्कॉम के कुछ आला अफसर पर उंगली उठ रही है। इन आला अफसर भी भ्रष्टाचार और सगे-संबंधियों को ठेका कार्यों में लाभ देने के आरोप लग चुके हैं।

चहेतों के लिए विंग का बंटवारा
जयपुर डिस्कॉम में कार्यों की गुणवत्ता, टेण्डर प्रक्रिया व अन्य कार्यों पर निगरानी रखने के लिए टीडब्ल्यू विंग होती रही है, जो चीफ इंजीनियर के जिम्मे रही। बाद में फतेह सिंह मीणा को एडजस्ट करने के लिए इस विंग में से ही क्वालिटी कंट्रोल एण्ड ट्रेनिंग के नाम से नई विंग बनाई गई और इसका जिम्मा फतह सिंह मीणा को दिया गया। बाद में टीडब्ल्यू विंग के समस्त कार्यों की निगरानी का जिम्मा भी फतेह सिंह मीणा को दे दिया।

जिन्हें दी चार्जशीट वे देखेंगेें क्वालिटी कंट्रोल
जयपुर डिस्कॉम के क्वालिटी कंट्रोल और टीडब्ल्यू विंग में अतिरिक्त मुख्य अभियंता फतेहसिंह मीणा, अधीक्षण अभियंता वी.डी.बंसल, अधिशाषी अभियंता एस.सी.गुप्ता व सलीम अहमद, सहायक अभियंता वी.के.गक्कड़ समेत अन्य अभियंता नियुक्त है। हालांकि इन अभियंताओं पर कई तरह के आरोप लग चुके हैं। फतेह सिंह मीणा भ्रष्टाचार के आरोप में कई महीनों तक निलंबित रह चुके हैं। इनके खिलाफ कोर्ट में मामला चल रहा है। निलंबन रद्द होने पर टीडब्ल्यू विंग में चीफ इंजीनियर पद पर लगाया था। इसे लेकर विवाद हुआ था। तब इसे वहां से हटाकर क्वालिटी कंट्रोल विंग का चीफ बनाया, जो काफी चर्चा में भी रहा। डिस्कॉम के आला अफसर के खास होने के कारण इन्हें डिस्कॉम की इस सबसे महत्वपूणज् क्वालिटी कंट्रोल विंग का जिम्मा सौंपा है। इसी तरह अधीक्षण अभियंता वीण्डीण्बंसल पर टोंक नियुक्ति के दौरान विद्युत लाइन की चपेट में आने से ग्यारह लोगों की मौत हो गई थी। तब इन पर कार्य में लापरवाही के आरोप लगे थे। लेकिन इतने बड़े हादसे के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हुई और इन्हें टीडब्ल्यू का पूरा जिम्मा दे रखा है। इनसे पहले इस पद पर जौहरी लाल मीणा पदस्थापित थे, जिनकी छवि स्वच्छ रही और इस विंग का लम्बा अनुभव रहा। शिकायत के आधार पर एसीबी द्वारा ट्रेप हुए अधिशाषी अभियंता एस.सी,गुप्ता भी इस विंग में है। कुछ समय पहले ही हाईकोर्ट ने ट्रेप मामले में इन्हें बरी किया है। इनकी देखरेख में पूरी डिवीजन का कार्य हो रहा है। इसी तरह अधिशाषी अभियंता सलीम अहमद भी प्रभावशाली अभियंता माने जाते हैं। इन्हें डिस्कॉम स्टोर कार्यालय में रहते हुए गंभीर आरोप लग चुके हैं, जिस पर इन्हें चार्जशीट भी दी जा चुकी है। कुछ अन्य अभियंताओं को भी इनके साथ चार्जशीट दी गई थी। जेडीए में भी इनका कार्यकाल विवादों में रहा है। अब इन्हें क्वालिटी कंट्रोल विंग में लगाना चर्चा का विषय है। सहायक अभियंता वी.के.गक्कड़ एसीबी द्वारा ट्रेप हो चुके हैं। इनके खिलाफ चालान भी पेश हो चुका है। आला अफसर की मेहरबानी से इन्हें भी इस विंग में जिम्मेदारी दे रखी है। एईएन होते भी इन्हें एक्सईएन का चार्ज दे रखा है। इन सभी अभियंताओं पर तीन हजार करोड़ रुपए के महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट की क्वालिटी कंट्रोल की जिम्मेदारी है।

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