जयपुर। भाजपा के वरिष्ठ विधायक घनश्याम तिवाड़ी ने मंगलवार को भाजपा सरकार और भाजपा पार्टी के संबंध में मीडिया के सामने अपने विचार रखे। तिवाड़ी ने प्रेसवार्ता में उनके खिलाफ चल रहे षड्यंत्र, एसीबी व दूसरे विभागों पर षड्यंत्रकारी कार्रवाई के अंदेशे, सीएम राजे और उनके बेटे के कारनामों, नए राजनीतिक दल के गठन और प्रदेश को भ्रष्टाचार मुक्त करने के अभियान को लेकर खुल कर चर्चा की है और इस संबंध में अपने लेटर पैड पर सवाल-जवाब भी दिए। घनश्याम तिवाड़ी के आरोप-प्रत्यारोप और बयान की पूरी कहानी आपके सामने है। आप खुद देख और पढ़ सकते हैं……
सादर प्रकाशनार्थ 
प्रेस विज्ञप्ति 
घनश्याम तिवाड़ी प्रेस वार्ता 8 अगस्त 2017 
आप सभी को ध्यान होगा कि मुझे 6 मई 2017 को अनुशासनहीनता का नोटिस दिया गया। यह नोटिस डाक से मुझे 10 मई 2017 को मिला और इसे मीडिया को 6 मई 2017 ही जारी कर दिया गया था।
इस नोटिस पहला जवाब मैंने 14 मई 2017 को तथा दूसरा जवाब 18 मई 2017 को को भेजा। क्योंकि नोटिस देने वालों नें इसे मीडिया को जारि किया इसलिए मैंने भी मीडिया को जारी करते हुए ये जवाब भेजे।
इन जवाबों में मैंने नोटिस में पूछे गए दो प्रश्नों का उत्तर दिया —
पहला यह कि मैं पार्टी की बैठकों में क्यों नहीं जा रहा हूँ। 
जवाब में मैंने कहा था — मैं पार्टी की बैठकों में इसलिए नहीं जा रहा हूँ की वहाँ मेरी जान को ख़तरा है।
यह ख़तरा कैसे है? इसके लिए वर्तमान सरकार द्वारा मेरे और मेरे परिवार के साथ जो किया गया उसका विवरण दिया कि कैसे इस सरकार ने आते ही मेरी सुरक्षा हटानी चालू की। पहले मेरी सड़क सुरक्षा हटाई। फिर घर पर जो मुझे और मेरे परिवार को जो सुरक्षा दी गयी थी वह हटाई और साथ ही सीकर में मेरे छोटे पुत्र आशीष को जो सुरक्षा मिली थी वह भी हटा दी। सुरक्षा हटाने के बाद मुझ पर पाँच बार हमले का प्रयास किया गया। सांगानेर विधानसभा क्षेत्र में पार्टी के प्रशिक्षण शिविर में मुझ पर हमला हुआ, जिसमें मेरे हाथ में फ़्रैक्चर हो गया। हमले के ऊपर जो रिपोर्ट बनी उसमें साफ़ था कि यह हमला सोची-समझी रणनीति के तहत किया था। मैंने जवाब में साफ़ लिखा कि जब तक मेरे ऊपर हमला करने वाले और साज़िश रचने वाले लोगों पर कार्रवाई नहीं की जाएगी और मुझ पर यह ख़तरा बना रहेगा तब तक मैं इन बैठकों में नहीं जाऊँगा।
दूसरा जवाब मैंने इस बात का दिया कि मैं पार्टी विरोधी बयान दे रहा हूँ।
इसका मैंने उत्तर भेजा कि मैंने पार्टी के विरोध में कोई बयान नहीं दिया है।
लेकिन हाँ, देश में जिस व्यक्ति ने पार्टी के प्रदेश से लेकर देश के पदाधिकारियों, तीन-तीन अध्यक्षों, केंद्रीय नेताओं और यहाँ तक कि केंद्रीय पार्लियामेंटरी बोर्ड की एक बार नहीं दस बार अवज्ञा की, सार्वजनिक रूप से इन सबका अपमान किया, पार्टी की रीति और नीति को ताक पर रख कर स्वेच्छाचारता से काम किया — उसकी कार्यशैली के ख़िलाफ़ मैंने बात ज़रूर कही है। आप को ध्यान होगा कि कटारिया से विवाद होने पर वर्तमान मुख्यमंत्री नें पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफ़े की सार्वजनिक घोषणा तक कर दी थी। और राष्ट्रीय समाचार पत्रों में नयी पार्टी बनाने की ख़बरें तक प्रकाशित करवाई।
मैंने भी सार्वजनिक रूप से इनकी कार्यशैली के ख़िलाफ़ कब बोलना प्रारम्भ किया?
हमने राजस्थान में अपने बडों के साथ मिलकर पार्टी को खड़ा किया। सारी ज़िंदगी पार्टी के अनुशासन में बंध कर काम किया। फिर हमारे ऊपर ही पार्टी ने राजनीतिक हमले और शारीरिक हमले प्रारम्भ कर दिए। इसके साथ ही वर्तमान नेतृत्व द्वारा प्रदेश में पार्टी की विचारधारा से जुड़े लोगों और कार्यकर्ताओं का दमन होने लगा। हर जिले में पार्टी माफ़ियाओं और दलालों का अड्डा बनने लगी। इन सबके तथ्य भी मैंने अपने जवाब में भेजे।
जब बार-बार ध्यान दिलाने पर भी पार्टी के किसी भी मंच पर — न प्रदेश में, न केंद्र में — कोई सुनवाई नहीं हुई तब मैंने सार्वजनिक रूप से अपनी बात कहनी प्रारम्भ की।
नोटिस के दूसरे जवाब में मैंने यह भी माँग की कि जो व्यक्ति स्वेच्छाचारिता की सीमाएँ लाँघ कर प्रदेश में पार्टी को ख़त्म कर चुकी हैं, देश में अनुशासनहीनता के नए मापदंड स्थापित किए हैं, जो खुल्लम-खुल्ला राज्य की जनसंपदा लूटने में लगी है — अनुशासनहीनता की कार्रवाई उस पर होनी चाहिए।
साथ ही मैंने यह भी माँगकी कि मुझे वे दस्तावेज़ उपलब्ध करवाए जाएँ जो कि मेरी शिकायत के रूप में भेजे गए हैं। उनको देख कर और भी बेहतर जवाब मैं दे पाऊँगा। मैंने यह भी कहा कि मेरे ख़िलाफ़ जो शिकायत हुई है उसे और मैंने जो तथ्य भेजे हैं उन्हें — दोनों को सामने रख कर देख लीजिए की अनुशासनहीनता कर कौन रहा है।
अनुशासन के नोटिस के मेरे जवाब जाने के बाद मुख्यमंत्री तिलमिलाती हुई दिल्ली गयी। 
पार्टी के वर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से इस विषय पर उनकी पूरे पौने दो घंटे बात हुई।
बैठक के बाहर आकर मुख्यमंत्री ने अपने लोगों को कहा कि उस बैठक में यह चर्चा हुई है कि नोटिस के ये जो जवाब मैंने भेजे हैं उन्हें देखकर कोई कार्रवाई मुझ पर किया जाना सम्भव नहीं है। इससे कार्यकर्ताओं और प्रदेश की जनता में में अच्छा संदेश नहीं जाएगा।
इसलिए ऐसा कुछ किया जाए जिससे कि मुझे पार्टी से निलम्बित भी कर दिया जाए और कार्यकर्ताओं और जनता को यह भी न लगे कि ग़लत किया गया है।
इसके लिए, जैसा मुख्यमंत्री ने ख़ुद अमित शाह के साथ हुई बैठक के बाद अपने क़रीबी लोगों से कहा, यह निर्णय लिया गया कि इनको पार्टी से निकालने से पहले आरोप लगवा कर बदनाम करो। जनता में एक माहौल बनवाओ। फिर इनके ख़िलाफ़ विभिन्न विभागों में शिकायतें भेजो। उसके बाद अलग-अलग सरकारी विभागों से नोटिस देकर इनको उत्पीड़ित करो, harress करो, उसके बाद इनपर कोई छापा-वापा डलवा दो। अख़बारों में वातावरण बनवा दो। और फिर इन सब को बहाना बना कर इनको पार्टी से निलम्बित कर दो।
जब अनुशासन के नोटिस पर मेरे जवाबों का कोई जवाब इनसे देते नहीं बना तो इन्होंने मिलबैठकर मेरे और मेरे परिवार के ख़िलाफ़ ये षड्यंत्र रचा।
इस बैठक के तुरंत बाद — मेरे ख़िलाफ़ तीन मंत्रियों और एक सांसद के द्वारा — एक बिना लेटर-हेड के सादे पन्ने पर — 20 मई 2017 को, अनर्गल आरोप लगाए गए। इसके बाद 27 मई 2017 को सरकार के दो और मंत्रियों द्वारा वही आरोप मुझ पर लगाए गए। इसके बाद 4 जून 2017 को रोहिताश्व शर्मा द्वारा प्रेस वार्ता की गयी। और सीकर में 21 जून 2017 को वहाँ के विधायकों द्वारा, और उसके बाद झुनझुनू में एक सांसद ने आरोप लगाए। इन्होंने अपने पार्टी के सोशल मीडिया WhatsApp ग्रुप पर भी मेरे ख़िलाफ़ अभद्र पोस्ट बना कर डाली जिसके ख़िलाफ़ मैंने जालपुरा थाने में रिपोर्ट लिखवाई।
अब तक सरकार के पाँच मंत्री, दो सांसद और कुछ विधायक मुझ पर आरोप लगा चुके हैं। आप समझ सकते हैं की सरकार को कांग्रेस से ज़्यादा मुझसे भय है!
इन आरोपों का मैंने खंडन किया और कहा कि या तो ये लोग इस प्रकार का अनर्गल प्रलाप बंद करें, अन्यथा मैं कानूनी कार्रवाई करूँगा। कुछ लोगों नें तो मुझसे फोन करके कहा कि भाईसाहब हमसे तो ज़बरदस्ती हस्ताक्षर करवाए गए हैं। एक ने कहा कि भाईसाहब मैंने हस्ताक्षर किए ही नहीं — जिस दिन मेरा वक्तव्य जारी हुआ उस दिन मैं तो कोलकाता में था! 
मंत्रियों इत्यादि ने जो आरोप लगाए वे एक सादे पन्ने पर, बिना पार्टी या मंत्रालय के लेटर हेड के, अज्ञात ईमेल से प्रेस को भेजे गए।
सरकार के अंतर्राज्यीय जल विवाद समझौता समिति के अध्यक्ष रोहिताश्व शर्मा ने 4 जून 2017 को प्रेस वार्ता की और उसमें मुझ पर आरोप लगाए। मैंने इन आरोपों का खंडन किया और उन्हें कानूनी नोटिस भेजा। कानूनी नोटिस के बाद भी वे लगातार अभद्र भाषा में बयानबाज़ी करते रहे। 
उनकी लगातार की जा रही झूठी, भ्रामक, और अभद्र बयान बाज़ी के कारण मैंने उनके ख़िलाफ़ कोर्ट में 10 करोड़ रुपये का मानहानि का मुक़द्दमा दायर कर दिया है। इसके लिए 14 जुलाई 2017 को मैंने 9 लाख 52 हज़ार 135 रुपये कोर्ट फ़ीस के जमा करवाये। कोर्ट में दावा भी दायर कर दिया है।
दो बातें यहाँ समझने की हैं 
पहली बात यह तो मेरे ऊपर रोहिताश्व शर्मा ने जो आरोप लगाए हैं वे वही हैं जो कि पूर्व में एक कांग्रेसी नेता के माध्यम से मेरे ऊपर लगवाए गए थे। उनके ख़िलाफ़ मैं कोर्ट में गया था और कोर्ट ने उन्हें पाबंद किया कि वे मेरे ख़िलाफ़ आधारहीन बातें नहीं बोलें।
दूसरी बात यह कि देश में सबसे बड़ी Scrutiny न्यायालय की  होती है। कहीं भी कोई भी जाँच होती है — किसी भी सरकारी विभाग की तो अंत में वह न्यायालय में जाती है। न्यायालय का फ़ैसला अंतिम होता है।
मैं तो ख़ुद आगे बढ़ कर न्यायालय में चला गया हूँ। मेरे न्यायालय में जाने का क्या अर्थ है? अर्थ यह है की मुझ पर ग़लत आरोप लगा कर मेरी मानहानि की जा रही है। अब न्यायालय यह तय करेगा की आरोप ग़लत हैं या सही। सामने वाला पक्ष मेरे ग़लत होने के प्रमाण देगा और मैं अपने सही होने के। यानी न्यायालय में, इनके आरोपों के आधार पर, मेरी सारी Scrutiny होगी।
मैं आगे बढ़ कर ख़ुद अपनी और अपने परिवार की Scrutiny के लिए न्यायालय में गया हूँ। इसके लिए मैंने ख़ुद के 9 लाख 52 हज़ार 135 रुपये कोर्ट फ़ीस के रूप में  जमा करवाए हैं। प्रदेश का कोई और नेता ये साहस करके दिखाए।
मेरे ऊपर लगाए गए आरोप क्या हैं?
इन सभी आरोपों का सार एक ही है कि तिवाड़ी एक सामान्य ब्राह्मण परिवार में जन्मे और आज उनके परिवार के पास इतनी सम्पत्ति कहाँ से हो गयी? आरोप यह लगाया कि ये सम्पत्ति ऐसे अर्जित हुई कि मैंने अपने पद का दुरुपयोग किया और अपने परिवार के नाम से ज़मीनें ख़रीद ली।
पहली बात तो यह कि मैं एक सामान्य लेकिन प्रतिष्ठित और समृद्ध ब्राह्मण परिवार में जन्मा।
सामान्य इसलिए की चाहे हमारा परिवार धार्मिक और आर्थिक दृष्टि से कितना भी समृद्ध रहा हो, उसमें संस्कार विनयशीलता और लोककल्याण के थे।
इसका एक उदाहरण यह है कि जब राजस्थान में अकाल पड़ा तो सीकर के राव राजा कल्याण सिंह नें हमारे पड़दादाजी से अकाल राहत कार्य करने का आग्रह किया। हमारे पड़दादाजी अत्यंत समृद्ध थे, आसाम में काम था। उन्होंने ख़ुद के पैसों से 4 चौक की तीन हवेलियों के बनाने का काम प्रारम्भ किया। ये काम तीन-चार वर्ष तक चला और इसमें सीकर के  सैंकड़ों लोगों का अकाल के समय में जीवन का निर्वहन हुआ। ये हवेलियाँ आज भी सीकर के शीतला के बास में विद्यमान है।
राजस्थान में शेखावाटी से सबसे पहले आसाम जाने वालों में हमार परिवार था। आज भी गुवाहाटी के फ़ैन्सी बाज़ार में, जो कि वहाँ का सबसे प्रमुख व्यापार का केंद्र है, में हमारे परिवार के लोगों द्वारा बनाया गया तिवाड़ी मार्केट है। और आज भी वहाँ व्यापार होता है। ये तो मेरे परिवार की बात है।
मेरी माँ के परिवार में मेरे नानाजी खूड़ में कामदार थे। उनके पास उस समय 2000 बीघा ज़मीन थी। जब मैं 6 वर्ष का था, तो मेरी माँ का देहावसान हो गया था। मैं मेरे नाना और नानी के पास ही पला-बढ़ा। मेरे 6 मामा थे जिन्होंने मेरी देखभाल की।
जब पढ़ाई-लिखाई का समाज में अधिक ज़ोर नहीं था उस समय मैंने सीकर से जयपुर आकर यहाँ रहते हुए राजस्थान विश्वविद्यालय से LLB करी। जब यहाँ जयपुर में मैं लॉ कालेज में में पढ़ रहा था तब इक्के-दुक्के स्टूडेंट्स के पास साइकिल इत्यादि होती थी। उस समय मेरे पास यजदी मोटरसाइकिल थी।
पढ़ाई पूरी करने के बाद मैंने वकालत प्रारम्भ की और सीकर बार कौंसिल का सदस्य बना। सीकर के सबसे प्रतिष्ठित वक़ील मदनलालजी सोनी के मार्गदर्शन में मैंने काम किया।
1980 में जब मैंने सीकर से पहला चुनाव लड़ा। उसके पहले मेरी अच्छी-ख़ासी वकालत की प्रेक्टिस थी और पैतृक सम्पत्ति के अलवा ख़ुद की अपनी प्रेक्टिस की कमाई और बचत से ख़रीदी हुई साँवली और दूजोद में ज़मीन थी। यह पहली बार  विधायक बनने के पहले की बात है। चुनाव से पहले इस ज़मीन को मैंने बेचा और उन पैसों से मैंने चुनाव लड़ा।
इस बात को लम्बी नहीं खींचते हुए मैं कहना चाहता हूँ कि यह मेरा कानूनी अधिकार है कि मुझे मेरी और मेरे परिवार की आर्थिक, धार्मिक अथवा सामाजिक स्थिति के बारे में कोई भी कुछ भी पूछता रहे तो आवश्यक नहीं कि मैं बताऊं ही। ये सभी जानकारियाँ केवल संबंधित विभागों अगर मुझसे पूछे तो उसे ही देने का ज़िम्मेदारी है किसी भी और को नहीं। लेकिन मैं मानता हूँ कि मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ है और पारदर्शिता बहुत बड़ा मूल्य। लोकतंत्र की रक्षा की जितनी ज़िम्मेदारी राजनेताओं, न्यायालय और अधिकारियों की है उतनी है आपकी भी है।
इसलिए मैं आपको बताना चाहता हूँ कि आज तक की मेरी अथवा मेरे परिवार की जो भी सम्पत्ति है उसका डिस्क्लोज़र पिछले 35-40 वर्षों से हम Income Tax तथा अन्य सम्बंधित विभागों को करते आ रहे हैं।
10 वर्ष से अधिक के Income Tax के कागज़ रखने की आवश्यकता नहीं है। लेकिन हमारे पास पिछले 30-35 वर्षों के आज तक के सारे दस्तावेज़ हैं।
मैंने अथवा मेरे परिवार ने कब कौन सी ज़मीन या प्लॉट लिया? कहाँ लिया? कितने में लिया? उसके पैसे कहाँ से आए? कोई ली हुई ज़मीन बेची तो उससे कितना मुनाफ़ा हुआ? उस मुनाफ़े की संबंधित विभाग को कब-कब सूचना दी? उस पर कितना टैक्स बना? — ये सारा रेकार्ड हमारे पास है।
सम्पत्ति का Declaration
देश की राजनीति में ये माँग तो बाद में उठने लगी कि मंत्री इत्यादि अपनी संपत्ति का declaration करें। उसके कई वर्षों पहले से ही लगातार हमने हमारे प्रतिवर्ष सम्बंधित विभागों की हमारी आय और सम्पत्ति का declaration किया है।
यहाँ तक कि, जब माननीय भैरोंसिंह शेखावत मुख्यमंत्री थे, तब मैं किसानों से सम्बंधित मामले पर चर्चा कर रहा था। तो कांग्रेस के एक माननीय विधायक ने टिप्पणी की कि आप किसान हैं ही नहीं और आप किसानों की चर्चा कर रहे हैं? तो उस समय, आप रिकार्ड निकलवा कर देख सकते हैं, विधानसभा में मैंने यह डिक्लेयर किया कि मेरे पास कितनी ज़मीन है, कितने उसमें कुएँ या ट्यूबवेल हैं, कितनी उसमें कहती होती है, किस-किस चीज़ की होती है। 
चाहे विधानसभा हो, चाहे सरकारी विभाग हों, चाहे जनता हो — सबको डिकलेयर किया हुआ है।
इनका यह भी पूछना है कि सम्पत्ति करोड़ों की कैसे हो गयी?
यहाँ श्याम नगर विस्तार में जब हम आए तो ये जंगल था। मुश्किल से 4-5 मकान यहाँ इस लेन में बने हुए थे।
मेरे पास उस समय एक जीप थी। कई बार रात को सोडाला मोड़ पर जब जीप पहुँचती थी, और हॉर्न देता था, तो इतना सुनसान इलाक़ा था, कि सोडाला से यहाँ जीप की आवाज़ और उसका हॉर्न सुनाई दे जाता था। सिंधी कैम्प या जयपुर रेल्वे स्टेशन पर रात कोई कोई आता था तो ऑटो वाले सवारी को यहाँ लाने से मना कर देते थे।
हमने यहाँ उस समय ज़मीन ली, आज के 20-25 साल पहले, जब यहाँ कोई आना नहीं चाहता था। उस समय यहाँ रेट थी — 10 रुपये, 50 रुपये, 100     रुपये प्रति वर्ग गज। आज अगर वो रेट बढ़ गयी है और ये जगह करोड़ों की हो गयी है तो भाई मैं क्या कर सकता हूँ? और मेरे अकेले की तो बढ़ी नहीं है। यहाँ से आगे 10-20 किलोमीटर तक नए शहर ही बस गए हैं!
उस समय जब हम आये यहाँ जंगल था। आज मेरे घर के पूर्व में मेट्रो आ गयी, उत्तर में elevated road आ गयी, और पश्चिम में द्रव्यवती नदी आ रही है। आरोप लगाने वाले यह कह सकते हैं कि 25 साल पहले ही मेरी योजना थी और मेट्रो और elevated road तो मैंने अशोक गहलोत जी से कह कर बनवा ली। द्रव्यवती नदी के लिए मैंने भाजपा सरकार को मैनेज कर लिया!
इसी प्रकार हमने या हमारे परिवार ने अन्य ज़मीनें भी सीकर या जयपुर में लीं तो 15-20-25-30-35 वर्ष पहले शहरों से दूर — कहीं खालड़े की ज़मीन, कहीं ऐसी जगह जहाँ जाने के लिए सड़क का रास्ता ही नहीं है, वहाँ ली।
आज समय के साथ 25-30 वर्षों में शहर बढ़ता हुआ हमारी ज़मीनों के पास आ गया है और उनकी क़ीमत बढ़ गयी है तो या तो हमारी समझदारी है कि हमने आगे की सोच के साथ काम किया, या हमारा भाग्य ने साथ दिया, और आज वह जगह मूल्यवान हो गयी।
इसकी इनको तकलीफ़ हो रही है! किनको तकलीफ़ हो रही है? उसको जो अवसर मिले तो सारी दुनिया की ज़मीन खा जाये! उसको तकलीफ़ हो रही है कि मेरे परिवार के पास ये सम्पत्ति कैसे आ गयी?
मुझ पर आरोप लगवाने के बाद, अपनी षड्यंत्रकारी योजना के अनुसार काम करते हुए जितने सरकारी विभागों में मेरे ख़िलाफ़ जाँच के लिए शिकायत भेज सकते थे, उतने में भेज दी। 
उन सरकारी विभागों नें हमारे परिवार, उनके व्यापार इत्यादि से जुड़ी सारी सूचनाएँ मँगवा ली हैं। उन सरकारी विभागों में एक विभाग है जिसका नाम है ACB, AntiCorruption Bureau. यह विभाग सीधे मुख्यमंत्री के अधीन काम करता है। आप समझ सकते हैं कि ये लोग किस ओर बढ़ रहे हैं और कितना गिर सकते हैं।
मैं इन विभिन्न विभागों में बैठे अधिकारियों से भी एक बात कहना चाहता हूँ 
ये लोग अपनी न्यायोचित जाँच करें, मुझे कोई आपत्ति नहीं है, बल्कि उसमें मेरा पूरा सहयोग इनको प्राप्त होगा।
लेकिन अगर अपने राजनीतिक आकाओं के प्रभाव में, किसी फ़ील्ड पोस्टिंग के लालच में या रिटायरमेंट के बाद पोस्टिंग के extension के लालच में अवैधानिक काम करते हुए हमें परेशान करने की कोशिश की तो वह इनके लिए उचित नहीं रहेगा। इनको यह समझ लेना चाहिए की देश की न्याय व्यवस्था ज़िंदा है। इस देश में CBIका ड़ाईरेक्टर भी रीटायरमेंट के बाद सलाखों के पीछे जा चुका है।
लोकतंत्र में जनता की अदालत भी होती है। राजस्थान की जनता के ऊपर किए गए इनके गम्भीर अपराधों को लेकर जब मैं जनता की अदालत में जाऊँगा तो इनसे जवाब देते नहीं बनेगा।
एक और महत्वपूर्ण बात है —
एक विधायक लोक सेवक की श्रेणी में नहीं आता। पिछले 9 वर्ष से मैं केवल एक सामान्य विधायक हूँ। मंत्री, सरकारी अधिकारी, मुख्यमंत्री लोक सेवक की श्रेणी में आते हैं। जाँच उनकी की जानी चाहिए। 
जब इन्होंने यह काम प्रारम्भ किया तो मैंने भी काग़ज़ इकट्टा करने प्रारम्भ कर दिए। 
अभी शुरुआती खेप है लेकिन मेरे पास मुख्यमंत्री और उसके बेटे के कारनामों से जुड़े कुछ ऐसे दस्तावेज़ आए हैं जो कि मेरे पास घर पर ही रखे हैं। कोई भी सरकारी आदमी अगर हमारे यहाँ आता है, तो हमारे काग़ज़ों के साथ, ये काग़ज़ भी उनको मिल जायेंगे। और इन काग़ज़ों में जो है उसे देख कर मुझे भी एक बार सदमा सा लगा कि कोई व्यक्ति ऐसा भी कर सकता है!
अगर कोई अधिकारी इन काग़ज़ों के मिलने के बाद भी इन्हें दबाने की कोशिश करता है तो मैंने इनके चार सेट करवा कर अपने कुछ लोगों के यहाँ रखवा रखें है।
ये सरकार बस छह महीने की और है। इसलिए अधिकारियों को कहूँगा कि जो भी करना है वह क़ानून के दायरे में रह कर और पूरी तरह से अपना आगा-पीछा सोच-विचार कर करना।     
मैं यह भी कहना चाहता हूँ कि मुख्यमंत्री के द्वारा करवाए जा रहे इस प्रकार के कामों से मैं उत्पीड़ित होनेवाला नहीं हूँ। न ही इस प्रकार के चीज़ों से कोई मैं घबराता हूँ।
जिस समय इन अधिकारियों में से कुछ जन्मे भी नहीं होंगे उस समय देश में आपातकाल लगा था। वो आपातकाल मैंने देखा है और भोगा है। उस आपातकाल के सामने इनके haressment के काम बचकाने हैं। इस प्रकार के बचकाने कामों से न मैं उत्पीड़ित होऊँगा, न घबराऊँगा। मैं पूरी कानोनी और राजनीतिक लड़ाई लड़ूँगा और जो वास्तव में बेईमान हैं उनको प्रदेश से भगा कर रहूँगा। मेरे परिवार के लोग भी इनके haressment के कारण अपना आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक काम छोड़ने वाले नहीं हैं। वे भी इनसे लड़ेंगे और मैं भी इनसे लड़ूँगा और विजय सत्य की होगी।
9 अगस्त से प्रदेश में नयी राजनीतिक शक्ति के गठन के लिए “लोकसंग्रह अभियान” का प्रारम्भ। जनता से सम्पर्क, संवाद, विचार-विमर्श, पूरे प्रदेश का दौरा। 

श्री घनश्याम तिवाड़ी प्रेस वार्ता 8 अगस्त 2017

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