Late night, the poet was forced to lament the audience at the conference

देर रात तक चले कवि सम्मेलन में श्रोता ठहाके लगाने पर हुए मजबूर
जयपुर। ‘उजाले भर दे जीवन में, उमंगे भर दे हर मन में, धो डाले गुनाहों को, मिटा दे मन की आहों को दिखा दे नेक राहों को, ये निर्मल नीर गंगा का।’ जाने माने कवि अब्दुल जब्बार की कविताओं गंगा की इन खूबियों को कविताओं के जरिए बताया। सांगानेर श्योपुर स्थित चांदनी गार्डन में रविवार देर रात चले कवि सम्मेलन में कवियों ने अपनी रचनाओं से लोगों को गुदगुदाया।

साथ ही देश के वर्तमान हालात पर चुटीले अंदाज में अपनी कविताएं पेश की। सम्मेलन का आयोजन हिंदुस्तान मीडिया ट्रस्ट, महात्मा गांधी शिक्षा समिति, जयपुर की ओर से किया गया था। कवि सम्मेलन में नाथद्वारा के कवि गिरीश विद्रोही ने कविता, अपने राष्ट्र की गौरव गरिमा का गान नहीं रूकने देना, शीश अगर मां का झुकता हो, अपना शीश कटा देना रे, जाति धर्म बंट जाए देश नहीं बंटने देना रे, सुना कर श्रोताओं की खूब तालियां बटोरी।

ब्यावर के श्याम अंगारा ने इस देश में रहना होगा, वंदे मातरम कहना होगा। मृत्यु तो उसके भय से ही भगती छुपती रोती, मैं उस शहीद की दुल्हन हूं, जो कभी नहीं विधवा होती को सुना श्रोताओं से खूब तालियां बजवाई। जयपुर के पीके मस्त ने बिछाओ गद्दा, मंगाओ अद्दा, से श्रोताओं को खूब आनंद दिलाया। शंकर शिखर ने बेटी बचाओ पर कविता सुना कर खूब दाद बटोरी। कवि वेद दाधीच ने छोटी सी बात सुना कर श्रोताओं को वंस मोर, वंस मोर बोलने को मजबूर कर दिया। मंच संचालन कर रहे कवि हरीश हिन्दुस्तानी ने छोटी छोटी चुटीली कविताओं श्रोताओं को खूब ठहाके लगवाएं। कवि सम्मेलन में कवियत्री सुमन बहार (अलीगढ़) ने सौंदर्य रस में श्रोताओं को भिगो दिया। रमेश पांचाल ने व्यंग सुनाएं।

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