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जयपुर। राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा है कि व्यक्ति को उसकी जाति के बजाए परिवार से पहचाना जाना चाहिए। इसके साथ ही अदालत ने पुलिस को निर्देश दिए हैं कि वह आरोपी के गिरफ्तारी मिमो पर उसकी जाति का उल्लेख नहीं करे। इसके साथ ही अदालत ने जमानत प्रार्थना पत्रों में भी जाति नहीं लिखने के लिए निर्देश दिए हैं। न्यायाधीश एसपी शर्मा की एकलपीठ ने यह आदेश बिशन की ओर से दायर प्रार्थना पत्र पर सुनवाई करते हुए दिए। अदालत ने स्पष्ट किया है कि एससी, एसटी के मामलों में यह आदेश प्रभावी नहीं होगा। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता की जाति की गफलत के चलते ही उसकी जमानत तस्दीक नहीं हुई और उसे पांच दिन तक जेल में रहना पड़ा।

अदालत ने अपने आदेश में कहा कि पुलिस आरोपी की गिरफ्तारी मिमो में न केवल उसकी जाति लिखती है, बल्कि उसकी पहचान भी जाति के नाम से ही करती है। जो कि संविधान और सीआरपीसी के प्रावधानों के विपरीत है।
प्रार्थना पत्र में याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता गिरिराज प्रसाद शर्मा ने कहा कि याचिकाकर्ता को आपराधिक मामले में गत 29 जून को हाईकोर्ट से जमानत मिली थी, लेकिन आदेश में जाति गलत लिखने के चलते निचली अदालत ने उसकी जमानत स्वीकार नहीं है। ऐसे में अदालती आदेश में सुधार किया जाए। जिस पर सुनवाई करते हुए एकलपीठ ने ये दिशा निर्देश जारी किए हैं।

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