High court denies order against Abdullah over PK remark

नयी दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर के संबंध में की गयी कथित टिप्पणी को लेकर नेशनल कांफ्रेंस प्रमुख फारूक अब्दुल्ला के खिलाफ कार्रवाई की मांग करने वाली जनहित याचिका पर कोई भी आदेश देने से आज इनकार कर दिया। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल और न्यायूमर्ति सी. हरी शंकर की पीठ ने याचिकाकर्ता से कहा कि वह संबंधित मंत्रालय से संपर्क करे जो इसपर फैसला लेगा। दिल्ली के मौलाना अंसार रजा की ओर से दायर याचिका पर अदालत सुनवायी कर रही थी। स्वयं को सामाजिक कार्यकर्ता बताने वाले रजा ने अपनी याचिका में कहा है कि श्रीनगर से सांसद ने पाकिस्तान का समर्थन किया है और भारत का अपमान किया है, इसलिए ‘‘तुरंत जांच’’ करके उन्हें ‘‘गिरफ्तार’’ किया जाना चाहिए। पीठ ने रजा की याचिका का निस्तारण करते हुए कहा कि वह अर्जी पर अपने विचार व्यक्त नहीं कर रहा है। पीठ ने केन्द्र से इस मामले पर स्वतंत्र विचार रखने को कहा है। अदालत ने कहा कि यह अर्जी संबंधित प्राधिकार के समक्ष आवेदन दिये बगैर ही दी गयसी है।

याचिका में आरोप लगाया गया है कि अब्दुल्ला ‘‘ऐसे विवादास्पद टिप्पणियां कर रहे हैं और बयान दे रहे हैं जिनसे देश और उसके लोगों को यह सोचते हुए भी शर्म आ रही है कि वह भारतीय नागरिक हैं।’’ अब्दुल्ला ने 11 नवंबर को कहा था कि पीओके पाकिस्तान का हिस्सा है और भारत-पाकिस्तान कितनी भी लड़ाईयां कर लें, इससे ‘‘कोई फर्क नहीं पड़ेगा।’’ वकील नवल किशोर झा के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया था कि नेकां प्रमुख के खिलाफ भारतीय दंड संहिता के तहत देशद्रोह का मुकदमा चलना चाहिए और इस पूरे मामले की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी और खुफिया ब्यूरो से करवानी चाहिए। अब्दुल्ला ने कहा था, ‘‘ना सिर्फ भारत के लोगों को बल्कि दुनिया के लोगों को…. मैं उनसे स्पष्ट रूप से कहना चाहता हूं कि (जम्मू-कश्मीर का) वह हिस्सा जो पाकिस्तान के साथ है (पीओके) वह पाकिस्तान का है और यह हिस्सा भारत है। यह नहीं बदलेगा। वह जितने युद्ध चाहते हैं करने दो। यह नहीं बदलेगा।’’

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