God is the same as Krishna's Gopinathji the war, Krishna's chest and arm
God is the same as Krishna's Gopinathji the war, Krishna's chest and arm

– राकेश कुमार शर्मा
जयपुर। भगवान श्रीकृष्ण के प्रपौत्र बज्रनाभ की ओर से निर्मित कराए गए ठाकुरजी के तीन विग्रह में से एक श्री राधा गोपीनाथ का भी है। जिसे जयपुर के राजा शिवदान का रास्ता पुरानी बस्ती में प्रतिष्ठित किया गया। जयपुर के आराध्य श्री गोविन्द देव जी के समान ही भगवान गोपीनाथ का विग्रह भी पहले वृंदावन में ही प्रकट हुआ था। मधु पंडित या मधु गुसाई को यह विग्रह वंशीवट के नीचे प्राप्त हुआ। करीब चार दशक तक गोपीनाथ विग्रह की भी सेवा पूजा एक पर्ण कुटी में ही चलती रही। इस विग्रह के लिए वृंदावन में मुगल शासक अकबर के दरबारी और खण्डेला के राजा रायमल शेखावत ने 1573 में लाल बालुई पत्थरों का भव्य मंदिर बनवाया। इस विग्रह के साथ ही राधाजी का विग्रह भी प्रकट हुआ था, जो गोपीनाथ के अनुपात में बहुत छोटा था। हालांकि नित्यानंद प्रभु की पत्नी जाहन्वी देवी ने श्रीराधा का बड़ा विग्रह वृंदावन भिजवाया, जिसे वामभाग में प्रतिष्ठा मिली।

मुगल शासक औरंगजेब के समय हिन्दु मंदिरों पर आक्रमण करके उन्हें ध्वस्त करने के दौरान इस राधा-गोपीनाथ विग्रह को भी 1699ई. में मधु पंडित की ओर से राधा कुण्ड होते हुए कामां लाया गया। जहां पश्चिमी बंगाल में वर्धमान के शासक त्रिलोकचंद और उसकी रानी भानुमति द्वारा 1747 ई. में यह विग्रह जयपुर लाया गया। इस विग्रह का जयपुर में प्रवेश श्रावण कृष्णा 13 शनिवार को हुआ था। इस तरह भगवान गोपीनाथ का विग्रह 28 वर्ष कामां में रहा और उसके बाद सत्रह वर्ष जयपुर के माधव विलास में रहा। बाद में जयपुर के दीवान खुशहालीराम बोहरा ने अपनी हवेली में 1792ई.में श्री गोपीनाथ का पाटोत्सव कराकर इसे प्रतिस्थापित करवाया। जयपुर में गोपीनाथ मंदिर के गुसांई ही कामां गोपीनाथ मंदिर के भी सेवाधिकारी हैं। जिनके लिए 2800 रुपए वार्षिक अनुदान अलग से मिलता है।

-श्री गोपीनाथ जनता के लिए खुले रहे

जयपुर आते समय गोपीनाथ जी का विग्रह जहां भी अल्पकाल के लिए ठहरा, उन स्थानों को डेरा कहा गया है। वे डेरे भी उतनी ही पूजनीय है, जितने गोपीनाथ जी का मंदिर। कहा जाता है कि श्रीगोविन्द विग्रह को तो जयपुर राजपरिवार ने अपना शासक मान लिया और चन्द्रमहल के पीछे बाग में भव्य मंदिर बनाकर इन्हें प्रतिस्थापित भी करवाया। आजादी से पहले तक श्री गोविन्द देव जी का मंदिर भी जयपुर राजपरिवार की शासकीय मर्यादाओं में रहा। इस वजह से मंगल और शयन आरती में जनता का प्रवेश निषेध रहा। वहीं श्री गोपीनाथ जनता के लिए खुले रहे और आम जनता द्वारा भी पूजे भी जाते रहे। वहां किसी तरह का कोई प्रतिबंध नहीं था। इसलिए जब तक श्री गोविन्ददेवजी के मंदिर को आम जनता तक नहीं खोला गया, तब श्री गोपीनाथ मंदिर जयपुर के पूजनीय रहे और आज भी वैसी ही श्रद्धा है। यह भी कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण के तीनों विग्रह भगवान गोविन्ददेवजी, श्री गोपीनाथ जी और करौली के श्री मदन मोहन जी के दर्शन जो एक ही दिन में करते हैं, उसका बड़ा पुण्य लाभ मिलता है। हालांकि मंदिर के बाहरी स्वरुप को दुकानें बनाकर बिगाड़ दिया गया है। तीज-त्यौहार और दूसरे पर्वों पर मंदिर में विशेष श्रृंगार और धार्मिक आयोजन होते हैं। मंगला आरती से शयन आरती तक भक्त उमडते हैं। महिलाओं की तादाद ज्यादा रहती है। अपने भजनों व काव्यों से ठाकुरजी की सेवापूजा में लीन रहती है।

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