-जयपुर में श्री गोविन्द देवजी, श्री गोपीनाथ और तीसरे विग्रह करौली में श्री मदन मोहन जी के नाम से ख्यात है
– राकेश कुमार शर्मा
जयपुर। भगवान श्रीकृष्ण के तीन विग्रह हैं और ये तीनों विग्रह ही राजस्थान में है। दो विग्रह तो जयपुर में है और तीसरे विग्रह करौली में श्री मदन मोहन जी के नाम से ख्यात है। जयपुर में श्री गोविन्द देवजी के अलावा श्री गोपीनाथ जी का विग्रह है। यह विग्रह भी उतना ही पूजनीय और श्रद्धावान है, जितने गोविन्द देव जी और मदन मोहन जी का विग्रह है। तीनों ही विग्रह भगवान श्रीकृष्ण का साक्षात स्वरुप माने जाते हैं। इतिहासविदें और धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक भगवान श्रीकृष्ण के प्रपौत्र बज्रनाभ ने ये तीनों विग्रह बनवाए थे।
अर्जुन के पौत्र महाराज परीक्षित ने बज्रनाभ को मथुरा मण्डल का राजा बनाया था। बज्रनाभ की अपने पितामह श्रीकृष्ण के प्रति खासी श्रद्धा थी और उसने मथुरा मण्डल में श्रीकृष्ण जी की लीला स्थलियों का ना केवल उद्धार किया, बल्कि उनका साक्षात विग्रह बनाने का निश्चय किया। बज्रनाभ की दादी ने भगवान श्रीकृष्ण को देखा था। दादी के बताए अनुसार बज्रनाभ ने श्रेष्ठ कारीगरों से विग्रह तैयार करवाए। इस विग्रह को देखकर बज्रनाभ की दादी ने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण के पांव और चरण तो उनके जैसे ही हैं, पर अन्य बनावट भगवान श्री से नहीं मिलते हैं। बज्रनाभ ने इस विग्रह को मदन मोहन जी का नाम दिया। यह विग्रह करौली में विराजित है। बज्रनाभ ने दूसरा विग्रह बनवाया, जिसे देखकर दादी ने कहा कि इसके वक्षस्थल और बाहु भगवान स्वरुप ही है। शरीर के दूसरे अवयव भगवान श्रीकृष्ण से मेल नहीं खाते हैं। इस विग्रह को बज्रनाभ ने भगवान श्री गोपीनाथ जी का स्वरुप कहा।
भगवान का यह स्वरुप पुरानी बस्ती में भव्य मंदिर में विराजित है। दादी के बताए हुलिये के आधार पर तीसरा विग्रह बनवाया गया तो उसे देखकर बज्रनाभ की दादी के नेत्रों से खुशी के आसूं छलक पड़े और उसे देखकर दादी कह उठी कि भगवान श्रीकृष्ण का अलौकिक, नयनाभिराम और अरविन्द नयनों वाला सुंदर मुखारबिन्द ठीक ऐसा ही था। भगवान का यह तीसरा विग्रह श्री गोविन्द देवजी का स्वरुप कहलाया, जो जयपुर के सिटी पैलेस के पीछे जयनिवास उद्यान में है। भगवान के इस अलौकिक विग्रह को देखकर बज्रनाभ भी आनान्दित हो गए। फिर उन तीनों विग्रह को विधि-विधान से भव्य मंदिर बनाकर विराजित किए। भगवान श्रीकृष्ण के साक्षात स्वरुप के विग्रह होने के कारण भक्तों में इनके प्रति खासी श्रद्धा है और मान्यता भी है। तीनों विग्रहों के दर्शन के लिए रोजाना लाखों भक्त आते हैं और हर हिन्दू इनके दर्शन को लालायित रहता है।