Fourteen days before Diwali, the festival of Sanjanya
जयपुर। पांच दिवसीय दीपोत्सव दीपावली का हिन्दु समाज में विशेष महत्व है। यह पर्व पूरे परिवार व समाज के लिए खास मायने रखता है। बड़े से लेकर बच्चे तक इस पर्व को मनाने में मगन हो उठते हैं। यह त्यौहार हर किसी के लिए खुशी लेकर आता है। चाहे वह गरीब हो या अमीर, अपनी हैसियत और श्रद्धा अनुसार इस पर्व को मनाता जरुर है। दीपोत्सव के प्रथम दिन धनतेरस पर धन के देवता धनवंतरी और यम को याद किया जाता है तो दूसरे दिन नरक चर्तुदशी आती है। इसे रुप चौदस भी कहा जाता है। यह कहे कि यह दिन महिलाओं के लिए विशेष रहता है। इस दिन उन्हें खूब संजने-संवरने की छूट रहती है। वे खूब संजती संवरती है।
रुप चौदस पितरों और यमराज की पूजा के लिए माना जाता है। इस दिन पितरों को अर्पण करते हैं और अमावस्या भी होती है। पितरों के लिए विशेष पूजन और भजन होते हैं। ऐसी भी धार्मिक मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने इस दिन नरकासुर राक्षस का वध किया था और उसके चंगुल से सौलह हजार कन्याओं को मुक्त करवाया था। यहीं नहीं भगवान श्रीकृष्ण ने इन सभी कन्याओं से विवाह करके पत्नी का दर्जा दिया। नरकासुर के चंगुल से मुक्त होने और पत्नी का दर्जा मिलने के बाद सभी कन्याएं सजी और संवरी। भगवान ने उनके साथ विवाह किया। इस पुनीत कार्य में भगवान विष्णु की धर्मपत्नी रुकमणी ने भी सहयोग किया। इसलिए इस दिन को रुप चर्तुदशी भी कहा जाता है। यहीं वजह है कि महिलाएं खूब सजती है।

LEAVE A REPLY