-बाल मुकुन्द ओझा
विश्व ऑस्टियोपोरोसिस दिवस प्रतिवर्ष 20 अक्टूबर को मनाया जाता है। इस वर्ष इस दिवस की थीम सर्व अप बॉन स्ट्रेंथ रखी गई है। इस विषय को समग्र हड्डी के स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित करने के लिए चुना गया है। यह खास दिन ऑस्टियोपोरोसिस की रोकथाम, निदान और उपचार के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए मनाया जाता है। आधुनिक जीवन शैली, रहन सहन, खान पान और शारीरिक श्रम के प्रति घोर लापरवाही ने मानव शरीर को अनेक व्याधियों ने जकड़ लिया है। इन व्याधियों से निपटने के लिए वैश्विक स्तर पर बहुआयामी प्रयास किये जा रहे है। इनमें एक व्याधि ऑस्टियोपोरोसिस की है। दुनियां को जागरूक बनाने के लिए विश्व ऑस्टियोपोरोसिस दिवस 20 अक्टूबर को मनाया जाता है। ऑस्टियोपोरोसिस की समस्या हमारे देश में दिन प्रतिदिन तेजी से बढ़ रही है। आज घर घर में इससे पीड़ित लोग देखने को मिल जाते है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार ऑस्टियोपोरोसिस एक वैश्विक स्वास्थ्य समस्या के रूप में हृदय रोग के बाद दूसरे स्थान पर आ चुका है। शरीर में बैक पेन, कमर में दर्द, गर्दन में दर्द, घुटने में दर्द या शरीर के किसी भी भाग में हड्डियों में दर्द हो तो आप को तुरंत सावधान हो जाना चाहिए। आपकी हड्डियों की यह शारीरिक पीड़ा ऑस्टियोपोरोसिस हो सकती है। ऑस्टियोपोरोसिस का मतलब हड्डियों का कमजोर और क्षीण होना। उम्र बढ़ने के साथ हमारी कोशिकाओं का शरीर के अनुरूप निर्माण नहीं होता है और हड्डियों के लिए पोषक तत्व कैल्शियम, मैग्नीशियम, विटामिन डी और खनिज पदार्थों को अपनी खुराक में शामिल नहीं होने से हड्डियों कमजोर होने लगती है। जिसका खामियाजा ऑस्टियोपोरोसिस के रूप में भुगतना पड़ता है।
जमाने के बदलने के साथ मानव की आदतें भी बदलती रहती है। शारीरिक श्रम नहीं के बराबर होता है। पुराने जमाने में खान पान के साथ शरीर सौष्ठव का भी विशेष ध्यान रखा जाता था। शरीर कसरती और मेहनत बेशुमार होती थी। महिला और पुरुष दूरदराज के कुएं, तालाब, बावड़ी आदि पानी श्रोतों से मटकों या अन्य साधनों से पीने का पानी लाते थे। घर पर पत्थर की चक्की में आटा पीसने का रिवाज था। घर घर में गाय भैंस का काम भी बहुतायत से किया जाता था। पैदल या साईकिल का स्थान स्कूटर, मोटर साईकिल और चार पहियों के वाहनों ने ले लिया। कबड्डी और कुश्ती जैसे खेल भी गली मोहल्लों में देखने को मिल जाते थे। कहने का तात्पर्य है भरपूर खाते पीते थे तो उसके मुकाबले मेहनत के कामों में भी पीछे नहीं रहते। समय के साथ हमारी दिनचर्या और खान पान की प्रणाली बदली जिसके फलस्वरूप आधुनिक जीवन शैली के अनुरूप हमने अपने को ढालना शुरू कर दिया। भागमभाग की हमारी लाइफ स्टाइल ने हमें मेहनत के कार्यों से दूर कर दिया। गेहूं, बाजरा, मूंग और मोठ के स्थान पर फास्ट फूड को अपना आहार बना लिया। स्कूली बच्चों के टिफिन में फास्ट फूड रखा जाने लगा। लड़कियों ने फिटनेश के चक्कर में अपना देशी खाना भुला दिया। शरीर में प्रोटीन और कैल्शियम के वांछित आहार की कमी होने से ऑस्टियोपोरोसिस जैसी हड्डियों की बीमारी ने अपना शिकार बनाना शुरू कर दिया। यह बीमारी चुपचाप हमें घेरती है और जब हम इसके शिकार हो जाते है तब हमें पता चलता है इस बीमारी के खतरनाक होने का। अनेक शारीरिक व्याधियों के बीच अब ऑस्टियोपोरोसिस से बचाव के रास्ते खोजने शुरू कर दिए।
भारत में हर आठ में से एक पुरुष और हर तीन में एक महिला ऑस्टियोपोरोसिस की शिकार है। मुख्यतः 30 से 60 वर्ष के लोग इस बीमारी के शिकार होते हैं। कम उम्र के युवाओं को भी इसका शिकार होना पड़ रहा है। फिर उम्रभर लगातार फिजियो और अन्य चिकित्सकीय साधनों पर निर्भरता बढ़ जाती है। विशेषज्ञों का कहना है कि पीठ में दर्द, कद का छोटा पड़ना या आगे की तरफ झुक जाना इसके कुछ महत्वपूर्ण लक्षण हैं। हड्डी रोग विशेषज्ञों के अनुसार, भारत में लगभग तीन करोड़ लोग इस बीमारी से पीड़ित हैं, जिसमें 70 प्रतिशत महिलाएं हैं। रजोनिवृत्ति के दौरान महिलाओं में एस्ट्रोजेन हार्मोन कम बनने लगता है, जिससे हड्डियों के कमजोर होने का खतरा बढ़ जाता है। बच्चे को जन्म देने के दौरान भी महिलाओं में कैल्शियम की कमी हो जाती है, जिसकी भरपाई कर पाना अक्सर मुश्किल होता है। इसलिए 45 से 50 साल की जिन महिलाओं में मासिक धर्म अनियमित हो गया हो, उन्हें कैल्शियम लेना शुरू कर देना चाहिए। इस रोग से बचाव जागरूकता ही है। समय पर रोग निदान से ही बचा जा सकता है अन्यथा जीवनभर इस परेशानी से जूझना पढ़ सकता है।

LEAVE A REPLY