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जयपुर। लगातार मिल रहे नेगेटिव फीडबैक और उपचुनाव की हार के बाद जिन लोगों ने मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की राजनीति को समाप्त मान लिया था, वे अब अपनी राय बदलने का मजबूर है। नए दौर की आलाकमान संस्कृति वाली भाजपा में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने भाजपा अध्यक्ष पद को लेकर जो तेवर दिखाए है, उनकी उम्मीद किसी को नहीं थी। इन तेवरों के कारण ही राजे आज पार्टी में उन नेताओं के लिए उम्मीद की एक रोशनी भी बन गई हैं जो पार्टी के मौजूदा राष्ट्रीय नेतृत्व से परेशान तो है, लेकिन कुछ कह या कर नहीं पा रहे है।

राजस्थान में सरकार को लेकर भाजपा बहुत अच्छी स्थिति में नहीं दिख रही थी। पार्टी को सरकार के कामकाज के बारे में काफी नेगेटिव फीडबैक मिल रहा था और फरवरी में उपचुनाव की करारी हार तथा उसके बाद झुंझुनूं में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मौजूदगी में मुख्यमंत्री राजे के खिलाफ हुई नारेबाजी के बाद यह मान लिया गया था कि राजस्थान में राजे की राजनीति के दिन अब खत्म हो चले है। अब कमान आलाकमान सम्भालेगा और राजे सिर्फ कहने को मुख्यमंत्री रह जाएंगी। लेकिन 16 अप्रेल को भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अशोक परनामी के इस्तीफ के बाद राजे ने इस पद पर अपने चहेते नेता को बैठाने के लिए जिस तरह के तेवर दिखाए है, उस पर पार्टी में आश्चर्य व्यक्त किया जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के बारे में पार्टी में अब यह माना जाता है कि उनका कहा ही अंतिम वाक्य होता है, इसके बाद किसी किंतु-परंतु की गुंजाइश नहीं है, लेकिन राजे ने भाजपा अध्यक्ष पद के मामले में पार्टी के लोगों की इस धारणा को बहुत हद तक बदल दिया।

अब यह माना जा रहा है कि कुछ हिम्मत दिखाई जाए तो पार भले ही न पाई जा सके, लेकिन अपनी बात कहने की गुंजाइश तो है। राजे के मामले में यह पूरा प्रकरण इसलिए भी अहम है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से उनके सम्बन्ध शुरू से ही सहज नहीं माने जाते है। इन हालात में भी राजे की इस हिम्मत को अब पार्टी में नई पहचान मिलती दिख रही है। पार्टी के लोग राजे की इस हिम्मत की दाद दे रहे है और इसके पीछे एक बडा कारण राष्ट्रीय नेतृत्व की मजबूरी को मान रहे है। पार्टी नेताआंें का कहना है कि राजे इस बात को बहुत अच्छी तरह समझ गई है कि अब उन्हें इस पद से हटाया जाना सम्भव नहीं है, क्योकि चुनाव में समय बहुत कम बचा है। इस आखिरी समय में कोई नेता मुख्यमंत्री बनना भी नहीं चाहेगा। ऐसे में यदि वे अपने पसंद के नेता को अध्यक्ष बनाने के लिए दबाव डालती हैं तो उनकी बात माने जाने की पूरी सम्भावन है, क्योंकि राश्ट्रीय नेतृत्व चुनावी वर्ष मंे यहा किसी तरह की खेमेबाजी केे कारण अपना नुकसान नहीं चाहेगा। राष्ट्रीय नेतृत्व के लिए राजस्थान की 25 लोक सभा सीटें काफी अहम है। यही कारण है कि राष्ट्रीय नेतृत्व की ओर से आम सहमति बनाने के हर सम्भव प्रयास किए जा रहे है। पार्टी नेताओं का कहना है कि राजे ने अपने नेताओं की मजबूरी का कम से कम अभी तक तो पूरा फायदा उठाया है। आगे हो सकता है कि उनकी मर्जी के खिलाफ कोई निर्णय हो जाए, लेकिन वे फिर भी अपने लिए कुछ न कुछ सम्मानजनक पा लेंगी और कुछ नहीं मिला तो भी उनकी इस हिम्मत के लिए तो उन्हें दबे छुपे तारीफें मिल ही रही होंगी।

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