mohan bhagwat ji rss
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-अपने तीन दिन के उदयपुर प्रवास में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत का डेढ़ घंटे का कार्यक्रम गणमान्य नागरिकों के साथ रहा जिसमें उन्होंने संघ, स्वयंसेवक और हिन्दुत्व को सरल शब्दों में समझाया। ं
-कौशल मूंदड़ा-
प्रसिद्धि रहित, अहंकार रहित, स्वार्थ रहित, स्वअनुशासित ये कुछ मूल गुण हैं जिनके समावेश से एक स्वयंसेवक का निर्माण होता है। संघ की नियमित शाखा पद्धति ही इन गुणों को व्यक्ति में स्थापित करने वाली पाठशाला है। इन्हीं गुणों से परिपूर्ण स्वयंसेवक का आचार-व्यवहार हर परिस्थिति में समाज व देश के प्रति समर्पण का रहता है। और स्वयंसेवक का यही स्वयंसेवकत्व ही संघ है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने अपने उदयपुर प्रवास के तहत संघ और स्वयंसेवक के गूढ़ अर्थ को समझाया। तीन दिवसीय प्रवास के बीच वे सिर्फ एक दिन करीब डेढ़ घंटे के लिए उदयपुर शहर के गणमान्य नागरिकों के समक्ष मंच पर उपस्थित हुए, जिसका उद्देश्य संघ की कार्य पद्धति, लक्ष्य और संस्कार निर्माण की आवश्यकता के संबंध में सभी को अवगत कराना था। शेष समय उन्होंने संघ के प्रचारकों व कार्यकर्ताओं को मार्गदर्शन दिया जिसमें संघ कार्य के विस्तार और दृढ़ीकरण के साथ एक स्वयंसेवक के आचार-व्यवहार की विशेषताओं पर चर्चा हुई।
गणमान्य नागरिकों के साथ हुए कार्यक्रम में शामिल हुए लोगों में से कई ने बताया कि वे पहली बार ही संघ के ऐसे कार्यक्रम में शामिल हुए। वे अब तक संघ के बारे में सामान्य रूप से बाहर से ही जानते थे। इस कार्यक्रम ने उन्हें संघ को समझने का अवसर दिया। कार्यक्रम में जिज्ञासाएं भी प्रस्तुत हुईं जिन पर सरसंघचालक ने वक्तव्य भी दिया। जिज्ञासाओं के बीच डॉ. भागवत ने संघ, स्वयंसेवक और हिन्दुत्व के भी परस्पर सम्बंध को सरल शब्दों में प्रतिपादित किया।
डॉ. भागवत ने हिन्दुत्व को समझाते हुए कहा कि संघ के स्वयंसेवकों द्वारा कोरोनाकाल में किया गया निस्वार्थ सेवा कार्य ही हिन्दुत्व है। जहां सर्वकल्याण का भाव निहित है, वह हिन्दुत्व है। उन्होंने कहा कि संघ के संस्थापक डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार ने अनुभव किया था कि दिखने में जो भारत की विविधता है उसके मूल में एकता का एक भाव है, जो हिन्दुत्व है। भारतवर्ष की इस पुण्य धरा पर युगों से रहने वाले ऐसे ही विश्व कल्याण के संस्कारों से परिपूर्ण पूर्वजों के वंशज हम सभी हिंदू हैं, और सर्वकल्याण का भाव ही हिंदुत्व है।
गौरतलब है कि संघ के स्वयंसेवकों ने कोरोना जैसे कष्टदायी काल में न सिर्फ भोजन व दवा की व्यवस्था की, बल्कि कोरोना से असामयिक निधन हो जाने पर उनकी यथोचित अंत्येष्टि में भी स्वयंसेवकों का समर्पण नजर आया। भले ही, उस समय वे संघ की गणवेश में नहीं थे, लेकिन संघ की संस्कारों की गणवेश तो स्वयंसेवक हर वक्त धारण किए रहता है।
डॉ. भागवत ने कहा कि संघ प्रमाणिक रूप से कार्य करने वाले विश्वसनीय, कथनी करनी में अंतर न रखने वाले समाज के विश्वासपात्र लोगों का संगठन है। इसी तरह के व्यक्ति निर्माण का कार्य संघ का लक्ष्य है। संस्कारित, सेवाभावी, समर्पित व्यक्तियों से ही श्रेष्ठ समाज का निर्माण होता है और श्रेष्ठ समाज से श्रेष्ठ देश निर्माण संभव है। उन्होंने यह भी कहा कि जो स्वयंसेवक अन्यान्य क्षेत्रों में स्वायत्त रूप से कार्य कर रहे हैं, मात्र उन्हें देख कर ही सम्पूर्ण संघ के प्रति किसी तरह की धारणा नहीं बनानी चाहिए। सरसंघचालक ने आह्वान भी किया कि संघ को दूर से नहीं अंदर से समझना चाहिए। संघ से जुड़कर ही संघ को समझा जा सकता है। उन्होंने कहा कि आचार्य विनोबा भावे कभी भी शाखा नहीं गए पर स्वयंसेवक की भांति देश, समाज हित में कार्य किया।
डॉ. भागवत ने कहा कि स्वयंसेवक कोई विशेष प्राणी नहीं है, जो कष्ट और विपदा समाज अनुभव करता है वह स्वयंसेवक भी अनुभव करता है, परन्तु स्वयंसेवक घबराकर भागने वालों में से नहीं है। स्वयंसेवक समाज के साथ रहकर सभी के आत्मबल को बढ़ाने कार्य करता है। स्वयंसेवक के लिए सभी अपने हैं। सभी बंधु हैं। संघ की शाखा में यही भेदभाव रहित रहने की शिक्षा दी जाती है। हम सिर्फ हिंदू हैं, यही सिखाया जाता है। इसलिए संघ में ऐसे भेदभाव का वातावरण नहीं दिखता। स्वयंसेवक के व्यक्तिगत जीवन में भी यही बात परिलक्षित होती है। चूंकि, भेदभाव की बीमारी पुरानी है, संघ सामाजिक कार्यों से इसे दूर करने का प्रयास कर रहा है। विषमता को समर्थन देने वाला कोई विचार संघ स्वीकार नहीं करता।
जिस बात को लेकर हर व्यक्ति के मन में जिज्ञासा रहती है कि आखिर संघ और सत्ता में क्या संबंध है, इसे सरसंघचालक ने भ्रामक और मीडिया की उत्पत्ति बताया। उन्होंने कहा कि संघ के स्वयंसेवकों का राजनीतिक लोगों से चर्चा करना या मिलना, सत्ता में भागीदारी नहीं है। संघ के स्वयंसेवक समाज-देश के लिए हर परिस्थितियों में सहयोग को तत्पर रहते हैं। कम्युनिस्ट समेत अन्य सरकारें भी संघ के स्वयंसेवकों का सहयोग कई कार्यों में लेती रही हैं।
डॉ. भागवत ने कहा कि सर्वकल्याण, विश्वबंधुत्व के संस्कार हमारी सनातन हिन्दू संस्कृति के संस्कार हैं, जो युगो-युगों से स्थापित हैं। हम हिंदू नहीं है, ऐसा एक अभियान देश व समाज को कमजोर करने के उद्देश्य से किया जा रहा है। जहां जहां विभिन्न कारणों से हिंदू जनसंख्या कम हुई है, वहां समस्याएं उत्पन हुई हैं। जबकि, हिंदू की विचारधारा ही शांति और सत्य की है। सरसंघचालक डॉ. भागवत ने संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार को उद्धृत करते हुए कहा कि वे कहते थे, हिंदू समाज का संगठन भारत की समस्त समस्याओं का समाधान कर सकता है। सनातन संस्कृति के संस्कार विश्व को आलोकित कर सकते हैं। हिंदू राष्ट्र के परम वैभव में विश्व का ही कल्याण होगा।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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