– राकेश कुमार शर्मा

जयपुर। दुनिया की बेहतरीन शाही रेलों में शुमार पैलेस ऑन व्हील्स और रॉयल राजस्थान व्हील्स, जहां आप हफ्ते भर तक खूब घूमो-फिरो और खाओ-पीओ, वो भी जेब से कोई दमडी (पैसा) खर्च किए बिना। आप सोच रहेंगे होंगे क्या यह संभव है?, जवाब नहीं में आएगा, लेकिन इन शाही रेलों का संचालन करने वाले राजस्थान पर्यटन विकास निगम (आरटीडीसी) के आला अफसरों से आपकी सेटिंग हैं तो यह सब कुछ संभव है। बस आपको कमीशनखोरी में लिप्त आला अफसरों और महाप्रबंधकों के साथ गठजोड़ करना होगा। उनसे मिलीभगत कर एक फर्जी ट्यूर कंपनी बनाकर जी.एस.ए.(जनरल सेल्स एजेन्टस) बनना होगा। इससे ना केवल आप फ्री घूम-फिर सकेंगे, बल्कि सैलानियों की बुकिंग का मोटा पैसा भी हजम कर कर सकेंगे। बुकिंग के नाम पर पर्यटकों से तो ट्यूर पैकेज की पूरी राशि मिल जाएगी, लेकिन अफसरों को मोटा कमीशन देकर यह राशि आरटीडीसी को जमा नहीं करवानी पड़ेगी।
अब आप सोच रहे होंगे, ऐसा कैसा हो सकता है। यह सब कुछ होता रहा और अफसर जानते-बुझते हुए भी सोते रहे। यह तो भला हो, आरटीडीसी की लेखा शाखा की इंटरनल ऑडिट टीम का, जिन्होंने ने लम्बे समय से चल रहे इस खेल को ना केवल पकड़ा, बल्कि एक ही वित्तीय वर्ष में करीब तेरह करोड़ रुपए के इस घोटाले को उजागर करके आरटीडीसी प्रबंधन के सामने भी रखा। ट्यूर कंपनियों ने पर्यटकों से तो शाही सफर का पूरा पैसा ले लिया, पर्यटक घूम-फिरकर भी अपने देश चले गए, लेकिन कंपनी ने यह राशि आज तक आरटीडीसी में जमा नहीं करवाई। वित्तीय वर्ष 2013-14 की ऑडिट में यह गबन पकड़ में आया है।
आरटीडीसी सूत्रों के मुताबिक अगर दूसरे वित्तीय वर्ष की बुकिंग और शाही सफर के लेन-देनों की पडताल की जाए तो यह घोटाला करीब 50 करोड़ रुपए से अधिक का बैठता है। बुकिंग के नाम पर यह पहला घोटाला नहीं है। इससे पहले भी कई घोटाले हुए, लेकिन कमीशन के फेर में हर आला अफसर चाहे वे आईएएस हो या आरएएस, हर कोई इन घोटालों की तरफ आंखें मूंदी रखी, बल्कि इन्हें दबाते रहे। ऑडिट जांच में पकड़े में आए तेरह करोड़ रुपए के घोटाले में भी दोषी पर कार्रवाई के बजाय जांच कमेटी बनाकर मसले को लम्बा खींचा जा रहा है। जांच रिपोर्ट के अफसरों ने भी सभी आरोप सही बताया है, फिर भी दोषियों को बचाया जा रहा है। कुछ महीने पहले आरटीडीसी एमडी रहे आईएएस विक्रम सिंह ने तो बाकायदा दोषी अफसरों के खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो में मामला दर्ज करवाने की अनुशंषा करते हुए इस नोटशीट की फाइल को चेयरमैन शैलेन्द्र अग्रवाल तक भिजवाया। करीब पांच महीने पहले भेजी गई इस फाइल पर आज तक कोई कार्रवाई नहीं हो सकी है, बल्कि मामले में लिप्त रहे एक महाप्रबंधक, वरिष्ठ लेखाकार और प्रबंधक आला अफसरों के कक्षों में जरुर बैठकें करते रहते हैं।

-जिस कंपनी पर पाबंदी उसके लेते रहे चेक

palace-on-wheels01जांच कमेटी और इंटरनल ऑडिट रिपोर्ट के मुताबिक, शाही रेलों में सफर के इच्छुक पर्यटकों की बुकिंग से कमाई करने के लिए आरटीडीसी के अफसरों ने यह खेल रचा। इस आपराधिक षडयंत्र के खेल में दिल्ली की एक ट्यूर कंपनी और जीएसए लग्जरी हॉलीडेज को भी शामिल किया। सरकार को चपत लगाने के लिए आरटीडीसी की नई दिल्ली स्थित सीआरओ के महाप्रबंधक प्रमोद शर्मा, लेखाकार मधु छुगानी, प्रबंधक अशोक सिंह चौहान व श्रीराम बंशीवाल, प्रशासनिक सहायक डी.डी.गौड आदि ने वर्ष 2013-14 में शाही रेलों में सफर करने वाले सैलानियों की बुकिंग लग्जरी हॉलीडेज के माध्यम से करवाई। आरटीडीसी सूत्रों के मुताबिक मार्केटिंग इकाई में आने वाली बुकिंग को भी अफसर इस ट्यूर कंपनी को डायवर्ट कर देते थे, जिससे उस कंपनी को अधिक से अधिक फायदा मिले। तब पैलेस ऑन व्हील्स व रॉयल राजस्थान ऑन व्हील्स के पर्यटकों की 90 फीसदी बुकिंग भी लग्जरी हॉलीडेज के माध्यम से हुई। शेष आरटीडीसी और सीधे तौर पर हुई। दिलचस्प बात यह है कि आरटीडीसी का जीएसए तो लग्जरी हॉलीडेज कंपनी थी, लेकिन पर्यटकों की बुकिंग के एवज में आई राशि का चेक कंपनी अन्य कंपनी के नाम से दे रही थी। लग्जरी हॉलीडेज मैसर्स लग्जरी ट्रेन प्राइवेट लिमिटेड के नाम से दिल्ली स्थित सीआरओ को चेक दे रही थी। लग्जरी ट्रेन प्राइवेट लिमिटेड आरटीडीसी की ना तो जीएसए थी और ना ही अनुबंधित थी। इसके बावजूद अफसर इस कंपनी के नाम से चेक लेते रहे, जबकि अफसरों को लग्जरी हॉलीडेज कंपनी से चेक लेने थे। बताया जाता है कि जिस कंपनी के चेक लिए जा रहे थे, उस कंपनी को पूर्व में ही प्रतिबंधित कर चुकी थी। इसके बावजूद अफसर लेखा नियमों को दरकिनार करते हुए ना केवल चेक लेते रहे, बल्कि इस बारे में जयपुर स्थित आरटीडीसी मुख्यालय को भी अंधेरे में रखा।

-जांच से बचते चेयरमैन-एमडी

आरटीडीसी की इंटरनल ऑडिट टीम और महालेखाकार राजस्थान ने ऑडिट जांच में करीब तेरह करोड रुपए के इस गबन मामले में सीधे तौर पर आरटीडीसी के अफसरों और लग्जरी हॉलीडेज कंपनी की आपराधिक मिलीभगत को जिम्मेदार मानते हुए प्रकरण की विस्तृत जांच के लिए भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो में प्राथमिकी दर्ज करवाने की अनुशंषा की है। मामले की जांच करवाने वाली आरटीडीसी की जांच कमेटी के सदस्य और कार्यकारी निदेशक सुनील शर्मा, सतर्कता अधिकारी रतन सिंह राठौड़ और लेखाकार (सतर्कता) अनिल गुलाटी ने रिपोर्ट में लिखा है कि जीएसए लग्जरी हॉलीडेज और सीआरओ कार्यालय के महाप्रबंधक प्रमोद शर्मा, लेखाकार मधु छुगानी, प्रबंधक अशोक सिंह चौहान व श्रीराम बंशीवाल, प्रशासनिक सहायक डी.डी.गौड (सेवानिवृत्त) के बीच आर्थिक आपराधिक गठजोड के चलते आरटीडीसी को करोड़ों रुपए की चपत लगी है। अफसरों व कर्मचारियों ने पद का दुरुपयोग और मिलीभगत करके कंपनी को अनुचित लाभ पहुंचाया है, जो भ्रष्टाचार की श्रेणी में आता है। व्यापक स्तर पर भ्रष्टाचार और अनियमितता को देखते हुए मामले में अन्य अफसरों के भी शामिल होने का अंदेशा है। ऐसे में पूरे प्रकरण की पृथक से अनुसंधान की आवश्यकता है। अफसरों व कंपनी के आपराधिक गठजोड और मिलीभगत को देखते हुए मामले की जांच भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो से करवाई जा सकती है। जांच कमेटी की इस राय के बाद आरटीडीसी के तत्कालीन एमडी विक्रम सिंह ने जांच रिपोर्ट को निगम के ही चेयरमैन शैलेन्द्र अग्रवाल को भिजवाते हुए मामले में एसीबी से जांच की अनुशंषा की। तीन बार विक्रम सिंह मामले को भिजवा चुके हैं। चेयरमैन ने अपने स्तर पर भी मामले की जांच करवाई थी, जिसमें आरोप सही मिले हैं, लेकिन इस घोटाले में लिप्त अफसरों व कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई ठण्डे बस्ते में है। तत्कालीन एमडी विक्रम सिंह का करीब पांच महीने पहले तबादला होने के बाद तो यह मसला ओर भी ठण्डा पड़ गया है। आरटीडीसी सूत्रों के मुताबिक अब तो घोटाले में लिप्त रहे अफसर और कर्मचारी आला अफसरों के पास ही बैठे रहते हैं। हालांकि मामले में तीन अफसर प्रमोद शर्मा, मधु छुगानी और बंशीवाल को निलंबित कर रखा है। बंशीवाल तो मुख्यालय में हाजिरी दे रहे हैं, लेकिन दोनों अफसर मुख्यालय तो आते रहते हैं, पर हाजिरी देने से बच रहे हैं। आला अफसरों से सांठगांठ के चलते आरटीडीसी प्रबंधन भी मामले में दिलचस्पी नहीं दिखा रहा है और ना ही तेरह करोड रुपए की वसूली के लिए कोई प्रयास कर रहा है। यह जरुर है कुछ दिनों पहले आरटीडीसी ने कंपनी के खिलाफ दिल्ली में चेक अनादरण को लेकर एक प्राथमिकी दर्ज करवाई है, जबकि कंपनी के 26 चेक अनादरित चल रहे हैं। इन सबके अलग-अलग मामले होने चाहिए, साथ ही धोखाधड़ी करने का अलग से मुकदमा लगाना चाहिए, लेकिन आरटीडीसी प्रबंधन मामला दर्ज करवाने में कोताही करके कंपनी व दोषी अफसरों को बचाने में लगा है।

वाह री मिलीभगत, कमीशन काटकर देता था चेक

royalअफसरों की मिलीभगत का खेल देखिए, कि लग्जरी हॉलीडेज कंपनी शाही रेलों में बुकिंग करवाने सैलानियों से तो पूरी राशि वसूलते रहे, लेकिन कभी भी आरटीडीसी को भुगतान नहीं किया। यहीं नहीं पर्यटकों की राशि में से खुद का कमीशन काटकर कंपनी शेष राशि का चेक दिल्ली कार्यालय के महाप्रबंधक प्रमोद शर्मा को देते रहे, जबकि नियम यह है कि पूरी राशि जमा होने के बाद आरटीडीसी तय कमीशन की राशि का चेक कंपनी को देने का प्रावधान है। यहीं नहीं बुकिंग होते ही बीस फीसदी राशि जमा कराने का प्रावधान है और शेष अस्सी फीसदी राशि पर्यटक घूमने की तिथि से एक दिन पहले तक जमा कराना अनिवार्य है, अन्यथा पर्यटक की बुकिंग कैंसिल करने के नियम है, लेकिन यहां तो मलाई के फेर में उलटी गंगा बहती रही। आरटीडीसी को ना तो राशि मिली और पर्यटक भी घूम-फिरकर जाते रहे। कंपनी ही पर्यटकों से पूरा पैसा लेती रही और कमीशन काटकर जो चेक दिए गए, वे भी क्लीयर नहीं हो पाए। पैलेस ऑन व्हील्स और रॉयल राजस्थान ऑन व्हील्स के करीब 26 चेक अनादरित होकर पड़े हैं, जो कमीशन सहित करीब पौने सोलह करोड़ रुपए के बैठते हैं। दिलचस्प पहलू यह भी है कि प्रतिबंधित कंपनी के दिए गए अधिकांश चेकों को अफसरों ने भुगतान के लिए शुरुआत में कभी बैंकों में लगाया ही नहीं। उन्हें मालूम था कि चेक क्लीयर नहीं हो पाएंगे। क्योंकि एक तो जिन कंपनी के चेक है, वे जीएसए है ही नहीं, दूसरी कमीशन का खेल इतना तगड़ा चल रहा था कि भुगतान होना ही संभव ही नहीं था। इस वजह से उनकी चोरी पकड़ी नहीं जा सके, इसके लिए वे कंपनी से मुख्यालय को बताए बिना आगे की तारीख के चेक लेते रहे और उन्हें भी बैंक में लगाना मुनासिब नहीं समझा। जिन कुछ चेकों को लगाया, वे अनादरित होते रहे।

-आला अफसर मलाई खाते रहे, वे घोटाले करते रहे

आरटीडीसी के नई दिल्ली स्थित सीआरओ कार्यालय का यह तेरह करोड़ रुपए का घोटाला ही नहीं दूसरे और भी गबन सामने आ चुके हैं, लेकिन उन मामलों में भी लीपापोती कर उन्हें बंद कर दिए गए। जिसके चलते सीआरओ, मार्केटिंग विंग और शाही रेलों के महाप्रबंधकों व प्रबंधकों के ना केवल हौंसले बुलंद होते गए, बल्कि दूसरे घोटालों को भी अंजाम देते रहे। पर्यटकों से पूरा पैसा लेकर आरटीडीसी को भुगतान नहीं करने का यह मामला तो सबके सामने है। वहीं चार साल पहले नई दिल्ली के स्कूली बच्चों को राजस्थान भ्रमण करवाने के लिए सीआरओ नई दिल्ली की ओर से ऊंची दरों पर बसों को किराये पर लेकर करीब सवा दो करोड़ रुपए की चपत भी लगा चुका है। ऑडिट जांच में 2.11 करोड रुपए का नुकसान होने का मामला पकड़ा गया और इसमें भी सीआरओ कार्यालय के महाप्रबंधक प्रमोद शर्मा, लेखाकार मधु छुगानी, प्रबंधक श्री राम बंशीवाल व दीनदयाल गौड़ की मिलीभगत मानते हुए इनके खिलाफ नियमानुसार कार्यवाही करने की अनुशंषा की गई थी। इसी तरह रॉयल राजस्थान ऑन व्हील्स की साज-सज्जा, सामान खरीद समेत अन्य कार्यों में भी करोड़ों रुपए का नुकसान आरटीडीसी को पहुंचाया गया। वर्ष 2010-11 में यह शाही रेल तैयार हुई थी। इस पर करीब चालीस करोड रुपए की लागत आई थी। तब बिना टेण्डर के ही ऊंची दरों पर शाही रेल की साज-सज्जा, फर्नीचर, पेंटिंग व दूसरे सामानों की खरीद में अनाप-शनाप राशि खर्च की गई। राजस्थान महालेखाकार और इंटरनल ऑडिट टीम ने भी जब जांच की तो करीब दस करोड़ रुपए की चपत आरटीडीसी को लगाना पाया। इसी तरह शाही रेलों के पर्यटकों को शहर भ्रमण करवाने के लिए ली जाने वाली लग्जरी बसों और कारों में भी बड़ा घपला है। पहले शाही रेलों और आरटीडीसी के होटलों में ही पर्यटकों को लंच और डिनर करवाया जाता रहा है, लेकिन फाइव स्टार होटलों को फायदा पहुंचाने के लिए रेलों में लंच-डिनर आधे से भी कम कर दिए हैं। इससे निजी होटलों को हर सीजन में डेढ़ से दो करोड़ रुपए का भुगतान करना पड़ रहा है। ऐसे छोटे-बड़े दूसरे काम और भी है, जिनके कारण लाखों-करोड़ों रुपए आरटीडीसी को प्राइवेट कंपनियों को देना पड़ रहा है। इन घोटालों और निजी कंपनियों को फायदा पहुंचाने वाले कार्यों के चलते आरटीडीसी लगातार घाटे में आ गई है। करीब चार साल पहले तक आरटीडीसी जहां लाभ में थी, वहीं लगातार होते घोटाले, दोषी अफसरों पर कार्रवाई नहीं होने और आला अफसरों के कुप्रबंधन के चलते आरटीडीसी घाटे में पहुंच चुकी है। इस साल (वर्ष 2015-16) में करीब साढ़े दस करोड़ रुपए का घाटा पहुंच गया है।

 

LEAVE A REPLY