-राकेश कुमार शर्मा
जयपुर। राजस्थान भाजपा के एक कद्दावर वरिष्ठ विधायक और पूर्व मंत्री घनश्याम तिवाड़ी ने आज पार्टी से इस्तीफा दे दिया। विधानसभा चुनाव से ठीक छह महीने पहले तिवाड़ी ने पार्टी छोड़कर भाजपा को बड़ा सदमा दिया है। तिवाड़ी के इस कदम से राजस्थान के भाजपा नेता तो सकते में है, साथ ही केन्द्रीय आलाकमान भी झटका लगा है। तिवाड़ी जनसंघ की स्थापना के समय से है और राजस्थान में भाजपा के जनाधार को बढ़ाने में उनकी अहम भूमिका रही है। चुनाव से पहले तिवाड़ी के इस कदम से पार्टी के उन असंतुष्ठ नेताओं को भी बल मिलेगा, जो किसी ना किसी कारणवश अब तक चुप्पी साधे हुए थे, लेकिन तिवाड़ी के इस कदम के बाद वे भी उनकी तरह बगावती सुर पर आ सकते हैं, साथ ही भविष्य सुरक्षित नहीं देख वे भी पार्टी को अलविदा कह सकते हैं। क्योंकि आज तिवाड़ी ने कहा है कि करीब एक दर्जन से अधिक विधायक उनके संपर्क में है। वे कई पूर्व विधायक व वरिष्ठ नेता भी पार्टी व सरकार के कामकाज से संतुष्ठ नहीं है। ऐसे में बहुत से नेता व कार्यकर्ता राजनीतिक नियुक्तियां नहीं होने, वरिष्ठ नेताओं व कार्यकर्ताओं की उपेक्षा, नए व दूसरे दलों से आए लोगों को आगे बढ़ाने, भ्रष्टाचार और काम नहीं होने से खासे नाराज है।
समय-समय पर वे इसे उठाते रहते भी है, हालांकि सुनवाई नहीं होने से यह नाराजगी अंदर ही अंदर काफी गहरी हो गई है। इसके परिणाम अजमेर, अलवर और मांडलगढ़ सीट पर पार्टी की हुई करारी हार के तौर पर सामने भी चुके हैं, लेकिन इसके बावजूद न तो केन्द्रीय नेतृत्व और ना ही प्रदेश अध्यक्ष इस नाराजगी को दूर करने में लगा है, बल्कि सुनवाई नहीं होने से पार्टी निष्ठ कार्यकर्ता व समाज दूर होने लगे हैं, बल्कि सार्वजनिक तौर पर नाराजगी भी प्रदर्शित करने लगे हैं। राजस्थान का राजपूत समाज इसका बड़ा उदाहरण है, जिसने भाजपा को ललकारते हुए चुनाव में शिकस्त देने के लिए चेताया और इसमें लगे भी रहे। केन्द्रीय नेतृत्व भी राजस्थान में खुद को असहाय सा दिख रहा है। यहीं कारण है कि ढाई महीने से राजस्थान में प्रदेश अध्यक्ष की घोषणा केन्द्रीय नेतृत्व नहीं कर पा रहा है, जिससे कार्यकर्ताओं में भी यह संदेश पहुंच गया है कि केन्द्रीय नेतृत्व भी राजस्थान के मामले में उन नेताओं के सामने नतमस्तक हो गया है, जिन्हें कार्यकर्ता व जनता पसंद नहीं करते हैं। आज तिवाड़ी के इस्तीफे के बाद राजस्थान में फिर दस साल पहले जैसे वाले राजनीतिक हालात हो गए हैं, जब भ्रष्टाचार, कार्यकर्ताओं के सम्मान नहीं होने और पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र खत्म होने की बात करते हुए भाजपा के दिग्गज आदिवासी नेता डॉ. किरोडीलाल मीणा, जाट नेता विश्वेन्द्र सिंह जैसे नेताओं ने पार्टी छोड़ दी थी। मीणा ने राजपा का दामन थाम तो विश्वेन्द्र सिंह ने कांग्रेस का हाथ थाम कर भाजपा को शिकस्त देने की जमीन तैयार कर दी थी। कुछ वैसे ही हालात अब तैयार होने लगे हैं।
पार्टी के दिग्गज और ब्राह्मण चेहरे घनश्याम तिवाड़ी ने भी भ्रष्टाचार व कार्यकर्ताओं की सुनवाई नहीं होने का आरोप दोहराते हुए आर-पार की लड़ाई का ऐलान किया है। अभी तक तो तिवाड़ी सामने आए है, जैसे जैसे विधानसभा चुनाव नजदीक आएंगे वैसे वैसे कई असंतुष्ठ नेताओं के बगावती सुर सुनाई दे सकते हैं। हो सकता है कुछ दिग्गज नेता भी पार्टी का साथ छोड़ दे। वैसे भी राजनीतिक नियुक्तियां नहीं होने और सरकार व पार्टी की उपेक्षा से कई वरिष्ठ नेता खासे नाराज है और अंदरखाने बगावत के मूड में भी है। अब देखना है कि जब पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष का मसला तक पार्टी नहीं सुलझा पा रही है, वह नेताओं के बगावती सुर और पार्टी छोड़ने को कैसे थाम पाएगी। अगर पार्टी का केन्द्रीय व प्रदेश अध्यक्ष इस पर लगाम नहीं लगा पाया तो दस साल पहले की तरह इस चुनाव में भी पार्टी को नुकसान पहुंच सकता है। तब भी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के जाने से चुनाव से पहले तत्कालीन वसुंधरा राजे सरकार के खिलाफ नकारात्मक माहौल बना, जिससे डेढ़ दर्जन सीटों से न केवल पार्टी कांग्रेस से पिछड़ गई, बल्कि सत्ता से भी बाहर हो गई। वहीं कांग्रेस ने निर्दलीयों के सहारे राजस्थान में सरकार बनाई।
-राकेश कुमार शर्मा
एडिटर इन चीफ जनप्रहरी एक्सप्रेस डॉट कॉम, जनप्रहरी यू-ट्यूब चैनल