Supreme Court

नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय को देश भर में शराब पर प्रतिबंध लगाने के लिये दायर याचिका में कोई दम नजर नहीं आया। इस याचिका में दावा किया गया था कि शराब के सेवन से मौतें होती हैं, स्वास्थ्य समस्यायें होती हैं, अपराधों में वृद्धि होती है और जनता को धन का नुकसान होता है। शीर्ष अदालत ने विशाखापत्तनम स्थित गैर सरकारी संगठन चैतन्य श्रावंती की याचिका खारिज करते हुये उस पर एक लाख रूपए का जुर्माना भी लगाया। न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन और न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा की पीठ ने याचिका खारिज करते हुये कहा कि इसमें कोई मेरिट नहीं है। पीठ ने कहा कि अर्थदण्ड की राशि चार सप्ताह के भीतर उच्चतम न्यायालय विधिक सेवा समिति में जमा करायी जाये।

याचिकाकर्ता संगठन के वकील श्रवण कुमार ने न्यायलाय से देश में विभिन्न प्रकार की शराब के उत्पादन, वितरण, आपूर्ति , बिक्री और उपभोग के आडिट का निर्देश देने का अनुरोध किया था। उनका कहना था कि मदिरायुक्त पेय के सेवन के दुष्प्रभाव संविधान के अनुच्छेद 21 मे प्रदत्त जीने के अधिकार के विपरीत हैं। इसके अलावा, ये अनुच्छेद 37 और 47 के राज्य नीति के निर्देशित सिद्धांतों के अंतर्गत शासन के मूल सिद्धांतों के भी विपरीत हैं। याचिका में नाबालिगों को शराब की बिक्री , स्कूलों और मंदिर के पास शराब की दुकान खोलने पर प्रतिबंध और नियंत्रणों का सख्ती से पालन करने तथा तंबाकू की तरह ही शराब के दुष्प्रभावों के बारे मे जागरूकता अभियान चलाने का निर्देश देने का भी अनुरोध किया गया था।

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