जयपुर। राजस्थान आवासन मण्डल की आवासीय योजनाओं में घटिया निर्माण और तकनीकी खामी का जीता जागता उदाहरण जयपुर के प्रताप नगर स्थित मेवाड़ कॉम्पलैक्स है। करीब पांच साल पहले मेवाड़ कॉम्पलैक्स के 352 फ्लैटों का कब्जा आवंटियों को दिया। सभी आवंटियों ने यह सोचकर हाउसिंग बोर्ड के फ्लैट लिए थे कि अच्छे और मजबूत आशियाने मिलेंगे, लेकिन कुछ दिनों में ही उनकी यह आशाएं तब काफूर हो गई, जब हर फ्लैट में सीलन से दीवारें खराब हो गई, बल्कि कई फ्लैट में तो पानी तक गिरने लगा। बाथरुम ही नहीं किचन, बैठक व शयन कक्षों की दीवारों में भी सीलन आ गई। आज भी यह समस्या बनी हुई है। मुख्यमंत्री, नगरीय विकास मंत्री, हाउसिंग बोर्ड चेयरमैन समेत सभी आला अफसरों की शिकायत के बाद भी सीलन की समस्या ठीक नहीं हो पाई। सीलन को रोकने के लिए अलग से बजट दिया, लेकिन ना तो इंजीनियर और ना ही ठेकेदार इस समस्या को दूर कर पाए। आज भी हर फ्लैट में सीलन मौजूद है। इससे दीवारें खराब हो चुकी है और भविष्य में दुर्घटना का अंदेशा है सो अलग। मेवाड कॉम्पलैक्स सोसायटी के सचिव एडवोकेट अश्विनी बोहरा का आरोप है कि मेवाड़ कॉम्पलैक्स के आवंटियों से हाउसिंग बोर्ड ने पूरा पैसा ले लिया, लेकिन उन्हें घटिया निर्माण का कॉम्पलैक्स दिया है। कॉम्पलैक्स के निर्माण में घटिया और निम्न स्तर की सामग्री का उपयोग किया है। तकनीकी खामियां भी रही, जिसके चलते हर फ्लैट की दीवारों से पानी रिसता रहता है। घटिया निर्माण को लेकर कई आवंटियों ने उपभोक्ता मंच में परिवाद दायर करके हाउसिंग बोर्ड पर भारी जुर्माना तक लगवाया है। नेशनल कंज्यूमर कमीशन ने भी हाउसिंग बोर्ड के निर्माण को घटिया बताते हुए एक लाख ग्यारह हजार रुपए का हर्जाना लगा चुका है। आज तक इस कॉम्पलैक्स में रोशनी, सफाई की व्यवस्था शुरु नहीं की गई है। वहीं व्यावसायिक दुकानें सोसायटी को सुपुर्द नहीं की है। मेवाड़ कॉम्पलैक्स ही नहीं हाउसिंग बोर्ड की द्वारकापुरी, प्रताप जैसे बड़े आवासीय कॉम्पलैक्स भी घटिया निर्माण सामग्री के चलते बनने से पहले ही जर्जर से दिखाई देने लगे हैं। इनमें भी सीलन की समस्या प्रमुख रुप से है। प्रताप नगर का भूतहा कॉम्पलैक्स भी घटिया निर्माण का साक्षी रहा है। सफल आवंटियों ने घटिया निर्माण को देखते हुए कब्जा ही नहीं लिया। कई साल तक फ्लैट के लिए खरीददार ही नहीं मिले। बाद में कम दामों पर इन्हें बेचा गया। कथित कमीशन और ठेकेदारों से मिलीभगत करके घटिया निर्माण किए जा रहे हैं, जिसका खामियाजा आवंटियों को भुगतना पड़ रहा है। ठेकेदारों को सिर्फ नोटिस या मामूली जुर्माना देकर छोड़ दिया जाता है। फिर वहीं ठेकेदार दूसरे प्रोजेक्टों में पुरानी कारगुजारियां करते हुए खराब और घटिया इमारतें खड़़ी करके जनता को ठगने में लगे हुए हैं। कमीशन के फेर में अफसर और मंत्री भी मौन रहते हैं।

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