-बाल मुकुंद ओझा
दुनियाभर में 28 अप्रैल का दिन कार्यस्थल पर सुरक्षा एवं स्वास्थ्य दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष यानि 2023 की थीम सकारात्मक सुरक्षा और स्वास्थ्य संस्कृति बनाने में भागीदारी और सामाजिक संवाद रखी गई है। देश और दुनिया में सरकारी या निजी क्षेत्र में नौकरी करने वाले लोगों का ज्यादातर समय अपने कार्यालय में गुजरता है, ऐसे में कार्यस्थल में
उनके स्वास्थ्य और सुरक्षा को सुनिश्चित करना जरूरी है। इसी मकसद के साथ हर साल कार्यस्थल पर सुरक्षा और स्वास्थ्य के लिए विश्व दिवस मनाया जाता है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन द्वारा यह दिन व्यावसायिक दुर्घटनाओं और बीमारियों की रोकथाम को बढ़ावा देने और कार्यस्थल पर स्वास्थ्य और सुरक्षा को सुनिश्चित करने के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए
मनाया जाता है। कार्यस्थल पर स्वस्थ मानकों को बनाए रखना महत्वपूर्ण है ताकि किसी भी तरह की गड़बड़ी, काम से संबंधित चोट इत्यादि से बचा जा सके। एक सर्वेक्षण के अनुसार, ऐसा अनुमान लगाया गया है कि हर रोज़ दुनिया भर में व्यावसायिक दुर्घटनाओं और कार्यस्थल के कारण होने वाली बीमारियों के कारण लगभग साढ़े छह हजार लोग अकाल मृत्यु का शिकार हो जाते हैं। आंकड़ों की बात करें तो प्रतिवर्ष 23 लाख लोगों की मौत हो जाती है। इनमें से बहुत तो ऐसी होती हैं, जिनके कारण कामगारों को लंबे समय के लिए काम से हाथ धोना पड़ता है और उनकी सामने अपने जीवन यापन के लिए गहरा संकट उत्पन्न हो जाता है। अतः इस विषय के बारे में जनसाधारण के बीच जागरूकता बढ़ाना अति आवश्यक
है और यहीं इस दिवस का प्रमुख उद्देश्य है। एक रिपोर्ट के अनुसार सुरक्षा एवम स्वास्थ की देखभाल की जिम्मेदारी कारखानें, अस्पताल, सरकार की होती है यह उनका दायित्व है। क्योंकि कर्मी स्वस्थ होगे तो ही फैक्ट्री या संस्थान की प्रगति होगी। निमार्ण कार्यस्थल पर कर्मियों को हैलमेट उपलब्ध कराना कंपनी की जिम्मेदारी है। जूट के कारखने, कोयला,
अभ्रक आदि खादानों में कार्य कर रहे कर्मी कई प्रकार की बीमारियों से ग्रस्त हो जाते है। विश्व भर में हर वर्ष 31 करोड़ से अधिक कर्मी कई तरह की स्वास्थ्य संबंधित बीमारियों से प्रभावित होते हैं और हर रोज हजारों लोग मौत का ग्रास बन जाते है। निश्चय ही कार्यस्थल पर स्वास्थ्य मानकों को बनाए रखना हम सब के लिए जरुरी है। मगर बहुत बार ऐसा देखा गया है इन मानकों की पालना नहीं की जाती जिससे संभावित दुर्घटना का अंदेशा बना रहता है और कई बार श्रमिक काम करते हुए घायल अथवा मृत्यु का शिकार हो जाते है। श्रमिक अपनी जान जोखिम में डालकर काम करते हैं, लेकिन उनकी सेहत का ख्याल तक नहीं रहता। श्रमिकों को निर्माण सहित अन्य कार्यों में लगाने के लिए हेलमेट और बॉडी प्रोटेक्टर सहित सुरक्षा के अन्य उपाय भी करने आवश्यक है, लेकिन इसका पालन नहीं होता है। विशेषकर सीवर लाइन के निर्माण और सफाई के दौरान सुरक्षा मानकों की पालना नहीं होने से दुर्घटनाओं की ख़बरें आये दिन पढ़ने को मिल जाती है। ऐसा देखा जाता है सीवर लाइन का काम कर रहे श्रमिकों के पास हेलमेट बॉडी प्रोटेक्टर आदि उपकरण नहीं होते है। सुरक्षा मानकों की पालना नहीं करने पर हाथ से नालों की सफाई करते हुए सैकड़ों लोगों ने जान गंवाई है। मैनुअल स्कैवेंजिंग एक्ट 2013 के तहत सीवर में सफाई के लिए किसी भी व्यक्ति को उतारना पूरी तरह गैर-कानूनी है। एक्ट में इस पर रोक का प्रावधान है। किसी खास स्थिति में अगर व्यक्ति को सीवर में उतारना ही पड़ जाए तो उसके लिए कई तरह के नियमों का पालन जरूरी है। मसलन, जो व्यक्ति सीवर की सफाई के लिए उतर रहा है, उसे ऑक्सिजन सिलेंडर, स्पेशल सूट, मास्क, सेफ्टी उपकरण इत्यादि देना जरूरी है। अमूमन इन नियमों की अनदेखी होती है। सुप्रीम कोर्ट ने मैला ढोने और बिना किसी यंत्र के सीवेज चैंबर की सफाई के मामले में तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा था कि दुनिया में ऐसा कोई दूसरा देश नहीं है जो लोगों को मरने के लिए गैस चैंबर में भेजता हो।
भारत का संविधान नागरिकों के अधिकारों के लिए विस्तृत प्रावधान प्रदान करता है। सरकार कार्यस्थलों पर सुरक्षा और स्वास्थ्य जोखिमों के प्रबंधन के लिए सभी आर्थिक गतिविधियों को विनियमित करने और प्रत्येक कामकाजी पुरुष और महिला के लिए सुरक्षित और स्वस्थ काम करने की स्थिति सुनिश्चित करने के उपाय प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है। सरकार मानती है कि श्रमिकों की सुरक्षा और स्वास्थ्य का उत्पादकता और आर्थिक और सामाजिक विकास पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। रोकथाम आर्थिक गतिविधियों का एक अभिन्न अंग है क्योंकि काम पर उच्च सुरक्षा और स्वास्थ्य मानक उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि नए और मौजूदा उद्योगों के लिए अच्छा व्यावसायिक प्रदर्शन।

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